कर्नाटक के विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव एक साथ हुए हैं और नतीजे भी आ गए हैं. कर्नाटक में बीजेपी का किला ध्वस्त कर कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है तो यूपी के निकाय चुनाव में बीजेपी ने मेयर सीट से लेकर नगर पालिका और नगर पंचायत तक की सीटों पर जीत का परचम फहराया है. इन दोनों ही राज्यों में मुस्लिम मतदाता की संख्या अच्छी-खासी है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न दोनों ही राज्यों में एक जैसा रहा है या फिर अलग-अलग दिखा?
कर्नाटक में 14 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं तो यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता है, लेकिन मुसलमानों ने दोनों ही राज्यों में अपने वोट देने का तौर-तरीका अलग-अलग अपनाया. कर्नाटक में मुस्लिमों ने बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर एक पार्टी यानि कांग्रेस के पक्ष में वोट किया तो यूपी निकाय चुनाव में वो किसी एक पार्टी के साथ बंधे नहीं रहे. इस तरह से दो राज्य के चुनाव और एक कौम, लेकिन वोटिंग पैटर्न अलग-अलग दिखा.
यूपी के निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न
उत्तर प्रदेश के शहरी निकाय चुनाव के नतीजे से साफ जाहिर होता है कि मुसलमानों के वोट देने का तौर-तरीका बदल गया है. बीजेपी के खिलाफ एक ही पार्टी के पीछे एकजुट होने के पिछले चुनाव के रुझानों से हटकर मुस्लिम मतदाताओं ने शहरी निकाय चुनाव में अपनी पसंद के उम्मीदवारों के लिए वोट डाले हैं, जिनमें छोटे दलों से लेकर बड़े दल के कैंडिडेट शामिल हैं. मुसलमानों ने किसी सीट पर बसपा तो किसी सीट पर सपा को वोट किया, लेकिन कुछ सीटों पर बसपा-सपा के मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर निर्दलीय, आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के पक्ष में खड़े नजर आए.
मेरठ नगर निगम मेयर चुनाव में एआईएमआईएम प्रत्याशी मो. अनस भले ही जीत दर्ज नहीं कर सके, लेकिन 1.28 लाख वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे. मुरादाबाद मेयर सीट पर बीजेपी के विनोद अग्रवाल कांग्रेस के मोहम्मद रिजवान को करीब साढ़े तीन हजार वोटों से जीते हैं. सहारनपुर मेयर सीट पर मुस्लिमों की पसंद बसपा बनी तो फिराजोबाद और अलीगढ़ सीट पर सपा को वोट किया. इसके अलावा लखनऊ से लेकर बरेली, गाजियाबाद, प्रयागराज और कानपुर में भी मुस्लिम वोटिंग पैटर्न ऐसे ही रहा.
हालांकि, मुस्लिम मतदाता नगर निगम की मेयर सीटों पर सपा, बसपा, कांग्रेस और AIMIM के बीच नहीं बंटता तो बीजेपी को जीत दर्ज करना आसान नहीं था. सहारनपुर, मुरादाबाद, मेरठ, अलीगढ़ और फिरोजाबाद सीट पर मुस्लिम वोटों के बिखराव का ही बीजेपी को फायदा मिला है. नगर पालिका और नगर पंचायत चुनाव में एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवारों को पश्चिमी यूपी की कई मुस्लिम इलाकों में सपा और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक वोट मिले हैं.
हर दल के उम्मीदवारों को वोट देकर लिखी नई इबारत
नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने बीजेपी के पक्ष में वोटिंग किया. इस वजह से पांच नगर पंचायत के अध्यक्ष पद पर बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार जीते हैं. गोपामऊ, सुल्तानपुर चिलकाना, सिरिसी, धौराटांडा, भोजपुर धर्मपुर नगर पंचायत और 60 से ज्यादा मुस्लिम पार्षद बीजेपी के टिकट पर जीते हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी रामपुर में अपना मेयर बनाने में कामयाब रही तो शाहपुर, पाकबड़ा, जोया, कैमरी नगर पंचायतों में AAP के मुस्लिम उम्मीदवारों ने सपा, बसपा और कांग्रेस प्रत्याशी को मात दी.
नगर निकाय चुनाव में वोटिंग पैटर्न का एक अन्य पहलू यह है कि मुसलमानों ने सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ एक ब्लॉक में यानी एकतरफा मतदान नहीं किया. इस तरह निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटर्स किसी एक पार्टी से बंधे हुए नहीं रहे जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने एकतरफा सपा को वोट दिया था. सीएसडीएस आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिमों ने विधानसभा चुनाव में 83 फीसदी वोट सपा को दिया है, जो अब तक के इतिहास में किसी एक पार्टी के पक्ष में यह सबसे ज्यादा मतदान था.
निकाय चुनाव में मुस्लिमों ने अलग-अलग सीट पर अलग-अलग तरीके से वोटिंग किया और अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट दिया. बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए समर्थन और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मुस्लिम वोटों का विभाजन दर्शाता है कि बीजेपी के लिए उनकी दिल में धीरे-धीरे जगह बन रही. हालांकि, अभी तक यह माना जाता था कि मुसलमान उस पार्टी को वोट देते हैं जो बीजेपी को हराने के लिए सबसे बेहतर स्थिति में दिखाई देती है, लेकिन निकाय चुनाव में एक दल से बंधे नहीं रहने के बजाय हर राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को वोट देकर नई इबारत लिखी है. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए यह राहत हो सकती है.
कर्नाटक में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न क्या रहा?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मुस्लिम वोटिंग पैटर्न को देखें तो मुसलमानों ने एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग किया. इसी का नतीजा है कि कर्नाटक में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व पिछली विधानसभा में सात से बढ़कर नौ हो गया है. ये सभी मुस्लिम विधायक कांग्रेस के टिकट पर जीते हैं. वहीं, जेडीएस ने 23 मुस्लिम को टिकट दिए थे, लेकिन कोई भी जीत नहीं सका. कांग्रेस ने 15 मुस्लिमों को उतारा था, जिनमें से 9 विधानसभा पहुंचे हैं और छह उम्मीदवारों को ही हार मिली, जिनमें एक सीएम बोम्मई के खिलाफ हारे हैं.
कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम समुदाय वोटिंग पैटर्न में दिलचस्प बदलाव दिखा है. देवगौड़ा के मजबूत गढ़ पुराने मैसूर क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं को जेडीएस का कोर वोटबैंक माना जाता था, जहां पर 14 फीसदी मुस्लिम हैं. इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाता जेडीएस को दरकिनार कर कांग्रेस पार्टी के पक्ष में एकजुट हो गए. इसके पीछे वजह यह मानी जा रही थी कि कांग्रेस जेडीएस को बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप लगाती रही, जिसके चलते मुस्लिमों को लगा है कि जेडीएस चुनाव के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन कर सकती है.
वहीं, बोम्मई सरकार ने कर्नाटक में चार फीसदी मुस्लिम आरक्षण को खत्म किया तो कांग्रेस ने उसे बहाल करने का वादा किया. इतना ही नहीं, कांग्रेस ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और बजरंग दल जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का की घोषणा कर मुस्लिमों के बीच अपनी जगह बनाने की कोशिश की. कांग्रेस विधानसभा चुनाव के दौरान मुस्लिमों के साथ मजबूती से खड़ी रही. मुसलमानों को लगा कि कांग्रेस ही बीजेपी को हरा सकती है, जिसके चलते उन्होंने एकजुट होकर कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग किया.
कांग्रेस को उन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में सफलता मिली, जहां मुस्लिम मतदाता प्रभावी हैं. ओल्ड मैसूरु और बॉम्बे कर्नाटक जैसे क्षेत्रों में अधिक सीटें जीतने में मदद मिली. माना जा रहा है कि कर्नाटक के 80 फीसदी से ज्यादा मुस्लिमों ने कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग किया है. मुस्लिमों को यह वोटिंग पैटर्न पश्चिम बंगाल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक में दिखा है, जहां मुस्लिम ने अपने वोटों में अलग-अलग उम्मीदवारों के बीच बिखराव करने के बजाय एकजुट होकर एक ही पार्टी के साथ गए हैं.