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ममता ही नहीं, अमित मित्रा को भी छह महीने में बनना होगा विधायक, वरना कुर्सी पर खतरा

ममता बनर्जी इस बार अपनी परंपरागत सीट भवानीपुर छोड़कर नंदीग्राम से चुनावी मैदान में उतरी थीं, लेकिन यहां वो शुभेंदु अधिकारी को मात नहीं दे सकीं. नंदीग्राम सीट पर ममता को करीब 2 हजार मतों से हार का मूुह देखना पड़ा है, जबकि उनकी पार्टी टीएमसी को 213 सीटों के साथ प्रचंड बहुमित मिला है.

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ममता बनर्जी और अमित मित्रा (फाइल फोटो)
ममता बनर्जी और अमित मित्रा (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ममता बनर्जी तीसरी बार बंगाल की सीएम बनीं
  • ममता नंदीग्राम सीट पर शुभेंदु से हार गई हैं
  • अमित मित्रा इस बार चुनाव ही नहीं लड़े थे

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भले ही तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी हों, लेकिन इस बार उन्हें नंदीग्राम सीट पर बीजेपी के शुभेंदु अधिकारी के हाथों मात खानी पड़ी है. वहीं, ममता कैबिनेट में एक बार फिर अमित मित्रा की भी एंट्री हो गई है जबकि उन्होंने इस बार किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ा था. इस तरह से ममता बनर्जी और अमित मित्रा विधानसभा के सदस्य नहीं हैं. ऐसे में अब दोनों नेताओं का छह महीने के अंदर विधायक बनना जरूरी हो गया है नहीं तो ममता को सीएम की और अमित मित्रा को मंत्री पद की कुर्सी छोड़नी पड़ेगी.  

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ममता बनर्जी इस बार अपनी परंपरागत सीट भवानीपुर छोड़कर नंदीग्राम से चुनावी मैदान में उतरी थीं, लेकिन यहां वो शुभेंदु अधिकारी को मात नहीं दे सकीं. नंदीग्राम सीट पर ममता को करीब 2 हजार मतों से हार का मूुह देखना पड़ा है, जबकि उनकी पार्टी टीएमसी को 213 सीटों के साथ प्रचंड बहुमित मिला है. ऐसे में नंदीग्राम से हारने के बाद भी ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर 5 मई को शपथ ली. अब उन्हें अपनी कुर्सी को बचाए रखने के लिए 5 नंवबर 2021 से पहले पश्चिम बंगाल की किसी सीट से विधानसभा का सदस्य होना अनिवार्य है. 

अमित मित्रा ने नहीं लड़ा चुनाव, बने मंत्री

वहीं, टीएमसी के दिग्गज नेता अमित मित्रा को एक बार फिर से मंत्रिमंडल में जगह दी गई है. अमित मित्रा इस बार खराब स्वास्थ्य के कारण चुनाव नहीं लड़े थे. ऐसे में उन्हें इस बार फिर मंत्री बनाकर ममता बनर्जी ने उनपर बहुत बड़ा भरोसा जताया है और उन्हें पिछले कार्यकाल की तरह इस बार भी वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है. अमित मित्रा बंगाल के खड़दह विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. टीएमसी के वरिष्ठ नेता अमित मित्रा ने 10 मई को मंत्री पद की शपथ ली है, यानी उन्हें 10 नंवबर तक हार हाल में विधानसभा का सदस्य होना जरूरी है. 

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बता दें कि संविधान की धारा 164 (4) के अनुसार ममता बनर्जी और अमित मित्रा को 6 माह में विधानसभा का सदस्य होना अनिवार्य है. ऐसे में दोनों नेताओं को अपने मंत्री पद को बचाए रखने के लिए 10 नंवबर से पहले विधानसभा का सदस्य बनना होगा. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि बिना विधानसभा का सदस्य चुने हुए केवल छह महीने तक ही कोई मंत्री पद पर बना रह सकता है. ऐसे में उसे 6 महीने के अंदर विधानसभा या फिर विधान परिषद सदस्य के लिए चुना जाना जरूरी है. पश्चिम बंगाल में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है, लिहाजा दोनों को विधानसभा के जरिए ही चुनकर आना होगा. 

पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं, जिनमें से 292 सीटों पर चुनाव हुए हैं और दो सीटों पर 13 मई को वोटिंग है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और वित्त मंत्री अमित मित्रा को अपनी कुर्सी को बचाए रखने के लिए सीटें रिक्त करानी होंगी. ऐसे में देखना है कि ममता बनर्जी और अमित मित्रा के लिए कौन दो विधायक अपनी सीट छोड़ते हैं. हालांकि, टीएमसी के बहुमत से काफी संख्या में जीतकर विधायक आए हैं, जिसके चलते उन्हें सीटें रिक्त कराने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो फिर चुनौती खड़ी हो जाएगी.

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सुभाष कश्यप कहते हैं कि अगर चुनाव नहीं होते हैं ते एक विकल्प यह हो सकता है कि ममता बनर्जी और अमित मित्रा 6 महीने की अवधि में अपना इस्तीफा दें और बाद में दोबारा मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. हालांकि, विधानसभा का सदस्य चुने बिना मंत्री पद की शपथ लेने का ये प्रावधान भी केवल दो बार ही लागू हो सकता है. इसके बाद उसे चुनाव जीतना जरूरी है, लेकिन ममता बनर्जी अगर 6 महीने में विधानसभा सदस्य चुनकर नहीं आती हैं तो उनकी पूरी सरकार को इस्तीफा देना होगा और फिर दोबारा से शपथ लेनी होगी.  

 

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