पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में बीजेपी (BJP) को हराने के बाद से तृणमूल कांग्रेस (TMC) की मुखिया और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है. ममता की नजरें अब दिल्ली के सिंहासन पर भी हैं. और इसकी शुरुआत उसी दिन हो गई थी, जब सोमवार (26 जुलाई) को उन्होंने दिल्ली में कदम रखा था. ममता बनर्जी अब पूरे देश में 'खेला' करने की जुगत में हैं.
शुक्रवार को ममता बनर्जी को टीएमसी के संसदीय दल का नेता चुन लिया गया. राजनीति के लिहाज से ये एक बड़ा और अहम फैसला है. ये हैरान करने वाला भी है क्योंकि ममता न तो लोकसभा की सदस्य हैं और न ही राज्यसभा की. उसके बावजूद पार्टी ने उन्हें संसदीय दल का नेता चुना है. इससे पहले सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को जब संसदीय दल का नेता चुना गया था तब वो भी किसी सदन की सदस्य नहीं थीं.
ममता बनर्जी को लेकर घोषणा भले ही शुक्रवार को हुई, लेकिन इसका फैसला पहले ही हो गया था. बुधवार को जब ममता बनर्जी से इस फैसले को लेकर पूछा गया था तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था, "क्योंकि वो मुझसे प्यार करते हैं."
अपने दिल्ली के दौरान ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात तो की ही, साथ ही दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ (Kamal Nath), कांग्रेस नेता आनंद शर्मा (Anand Sharma) और अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi), द्रमुक नेता कनिमोझी (Kanimozhi) से मुलाकात की. इनके अलावा अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) के सरकारी आवास पर जावेद अख्तर (Javed Akhtar) और शबाना आजमी (Shaban Azmi) से भी मुलाकात की. इससे एक दिन पहले बंगाल में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को लेकर ममता ने केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) से भी मुलाकात की थी.
ये भी पढ़ें-- विपक्षी एकता की धुरी बनने में ममता की राह में क्या-क्या हैं अड़चनें?
विपक्ष का चेहरा होंगी ममता बनर्जी?
दिल्ली में विपक्षी नेताओं से ममता बनर्जी की राजनीतिक बातचीत ने ऐसी चर्चा शुरू कर दी है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के लिए बीजेपी और नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए एक संयुक्त मोर्चे को बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. कई लोगों के मन में ये सवाल भी है कि क्या इस संभावित संयुक्त मोर्चा का चेहरा ममता बनर्जी होंगी?
बुधवार को पत्रकारों के साथ चर्चा के दौरान जब ये सवाल उठा तो इस पर ममता बनर्जी ने कहा, "मैं कोई राजनीतिक ज्योतिषी नहीं हूं. ये सबकुछ सिचुएशन, सिस्टम और स्ट्रक्चर पर निर्भर करता है. ये राजनीतिक पार्टियों के साथ काम करने पर निर्भर करता है. अगर कोई और नेतृत्व करता है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं. मैं अपनी राय किसी पर नहीं थोप सकती."
ममता बनर्जी भले ही अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को स्वीकारने से कतरा रहीं हों, लेकिन दो महीने पहले विधानसभा चुनाव में मिली जीत ने 'दीदी' को बीजेपी को राष्ट्रीय राजनीति में हराने की संभावनाएं तलाशने के लिए प्रेरित किया है. जब उनसे पूछा गया कि क्या 2024 में एकजुट विपक्ष तख्तापलट कर सकता है, इस पर उन्होंने कहा, "अगर आप सीरियस हैं, तो 6 महीने में नतीजे दिखा सकते हैं." उन्होंने कहा, एक ऐसा मंच होना चाहिए जब सब साथ मिलकर काम कर सकें.
क्या सच में बन सकता है संयुक्त मोर्चा?
दिल्ली दौरे के दौरान ममता बनर्जी ने इसके मिले जुले संकेत दिए. पहला तो ये कि संसद सत्र के दौरान लगातार दो बार विपक्षी पार्टियों की बैठक रखी गई. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी इसमें थे, लेकिन तृणमूल की ओर से कोई भी नेता इस मीटिंग में नहीं था. बाद में ये कहा गया कि उन्हें इस मीटिंग का कोई औपचारिक न्योता नहीं दिया गया. लेकिन जब बुधवार को 10 जनपथ पर ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात की, तो उस वक्त राहुल गांधी भी वहां थे.
इसके अलावा जहां तक बात सोनिया गांधी और ममता बनर्जी के तालमेल की है, तो तृणमूल अपने नेता को ही लीडर के तौर पर देखेगी, उनके अलावा और कोई नहीं. इस मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने कहा था, "सोनिया जी ने मुझे बुलाया था. हमने साथ में चाय पी. राहुल जी भी वहां थे. हमने राजनीतिक हालातों पर चर्चा की. पेगासस मामले से लेकर कोविड सिचुएशन पर भी चर्चा हुई. विपक्षी एकता को लेकर भी चर्चा हुई."
एक ओर जहां राहुल संसद में मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्षी पार्टियों को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी ओर टीएमसी भी विपक्षी पार्टियों के समर्थन से समानांतर अभियान चला रही है. हालांकि, असहजता के बावजूद कांग्रेस और तृणमूल 2024 से पहले एक विकल्प तैयार करने के लिए मिलकर काम करने की कोशिश कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें-- दिल्ली में ममता की विपक्षी दलों से मेल-मुलाकात, क्या कहती है क्रोनोलॉजी?
शरद पवार को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
इस बीच एनसीपी प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. खासतौर पर तब जब मोदी के रथ को रोकने के लिए एक मोर्चा तैयार करना हो. इस हफ्ते शरद पवार और ममता बनर्जी के बीच मीटिंग होने को लेकर कई खबरें आईं, लेकिन दोनों के बीच कोई मीटिंग नहीं हो सकी.
कुछ अपुष्ट रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि दिल्ली में होने के बावजूद शरद पवार ने ममता बनर्जी को मीटिंग का टाइम नहीं दिया. जबकि, दिल्ली में उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) से मुलाकात की और उनकी सेहत की जानकारी ली. दूसरी ओर, लालू यादव ने मंगलवार को कहा था कि ममता बनर्जी ने उन्हें शिष्टाचार के तौर पर फोन लगाया था.
क्या संयुक्त मोर्चा एक सपना है?
हाल ही में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने शरद पवार के साथ कई मीटिंग की थी. इसके बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि मोदी को टक्कर देने के लिए दोनों नेता साथ आ सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तो क्या ये माना जाए कि संयुक्त मोर्चा एक सपना है? ममता बनर्जी कहतीं हैं, "अगर हम वोटों को बंटने नहीं देते हैं तो हम सत्ता में आ सकते हैं."
अभी के लिए ममता बनर्जी ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के लिए भी रास्ते खोल रखे हैं. टीएमसी के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि बंगाल के बाहर ममता की नजर अब उन राज्यों में है जहां वो अपने संगठन को मजबूत कर सकती हैं और उनका एकमात्र मकसद है या तो जीतना या फिर मुख्य विपक्षी पार्टी बनना. पार्टी से जुड़े एक सूत्र का कहना है, "हम नहीं चाहते कि हम चुनावों में 100 उम्मीदवारों को उतारें और उनमें से सिर्फ दो ही जीतकर आएं."