पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सरकार बनते ही नारदा मामले की जांच फिर से शुरू हो गई है और ममता बनर्जी कैबिनेट के दो मंत्रियों के घर सीबीआई ने छापेमारी की है. ममता के करीबी माने जाने वाले कैबिनेट मंत्री फिरहाद हकीम, कैबिनेट मंत्री सुब्रत मुखर्जी, टीएमसी के विधायक मदन मित्रा और पूर्व बीजेपी नेता सोवन चटर्जी को पूछताछ के लिए सीबीआई दफ्तर लाया गया है. सीबीआई ने ममता के दोनों मंत्रियों सहित चारों नेताओं को नारदा मामले में गिरफ्तार कर लिया है.
फिरहद हकीम का सियासी सफर
बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री फिरहाद हकीम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी नेताओं में गिना जाता है और टीएमसी का मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं. वो सुर्खियों में तब आए थे, जब 2016 के विवादित नारदा स्टिंग में उनका नाम आया था. इस बार उनके मंत्री पद की शपथ लेते ही राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने नारदा मामले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत दी थी. फिरहाद हकीम तीसरी बार ममता सरकार में मंत्री है और जिस तरह से उनके खिलाफ सीबीआई ने शिकंजा कसना शुरू किया है, इससे जाहिर है कि आने वाले समय में केंद्र बनाम राज्य के बीच सियासी संग्राम छिड़ सकता है.
फिरहाद हक़ीम का जन्म 1 जनवरी 1959 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था. उनके पिता का नाम अब्दुल हक़ीम है फिरहाद हक़ीम के पिता अब्दुल हाकिम एक लॉ अफसर थे. फिरहाद का परिवार बिहार के गया जिले से आकर कोलकाता में बसा है. फिरहाद हक़ीम ने हेरम्बा चंद्र कॉलेज से बीकॉम किया किया और नब्बे के दशक में अपना सियासी सफर शुरू किया.
ममता बनर्जी के करीबी फिरहाद हकीम
फिरहाद हक़ीम ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1990 में की थी. तब वह पश्चिम बंगाल के कोलकाता नगर निगम के पार्षद बने थे. 2009 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुआ तो फिरहाद हकीम पहली बार टीएमसी के टिकट पर चुनाव में अलीपुर विधानसभा क्षेत्र से खड़े हुए और अपने प्रतिद्वंदी कौस्तव चटर्जी को मात देकर विधायक विधायक बने. इसके बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा. इसके बाद 2011 में विधानसभा का चुनाव हुआ तो वह कोलकाता पोर्ट विधानसभा क्षेत्र से जीतकर ममता सरकार में शहरी और नगरीय मामलों के कैबिनेट मंत्री बने.
इसके बाद तीसरी बार 2016 कोलकाता पोर्ट से जीत दर्ज की. जब 2018 में सोवन चटर्जी ने कोलकाता नगर निगम के मेयर पद से इस्तीफा दिया तब टीएमसी ने फिरहाद हक़ीम को नगर निगम के उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया और उन्होंने 121 वोट पाकर इतिहास रचा और कोलकाता के पहले मुस्लिम मेयर बने.
2021 में हुए पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में फिरहाद हकीम कोलकाता पोर्ट से खड़े हुए और और अपने प्रतिद्वंदी तथा बीजेपी के नेता 'अवध किशोर गुप्ता' को वोटों की बड़ी मार्जिन से मात देकर ममता सरकार की कैबिनेट में शामिल हुए.
सुब्रत मुखर्जी का सियासी सफर
बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री सुब्रत मुखर्जी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मजबूत सिपहसलार माने जाते हैं. नारदा केस में वो शिकंजे में आ गए हैं. कांग्रेस के साथ अपना सियासी सफर शुरू किया था और बल्लीगंज सीट की अपनी कर्मभूमि बनाया. 1971 और 1972 में वह बल्लीगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए. 1972 में, उन्हें सिद्धार्थ शंकर रे के मंत्रालय में सूचना और सांस्कृतिक मामलों के राज्य मंत्री बनाया गया.
बल्लीगंज विधानसभा क्षेत्र से वह हार गए क्योंकि कांग्रेस पार्टी वाम मोर्चा द्वारा सत्ता विरोधी लहरों के बीच हार गई थी. 1982 में वह जोरबागन विधानसभा क्षेत्र में स्थानांतरित हो गए और 1996 तक इसका प्रतिनिधित्व किया. वह 1996 और 2001 में चौरंगी से विधान सभा के लिए चुने गए. 1999 ममता बनर्जी के साथ हाथ मिलाया और कांग्रेस छोड़कर टीएमसी का दामन थाम लिया. साल 2000 में वह टीएमसी उम्मीदवार के रूप में कोलकाता के मेयर बने.
टीएमसी का दामन थाम ममता के करीबी बने
2001 में वह टीएमसी के टिकट पर विधानसभा के लिए भी चुने गए. उन्होंने 2004 में कलकत्ता उत्तर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन वे हार गए. 2005 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने ममता का साथ छोड़ दिया, लेकिन बाद और कांग्रेस में घर वापसी कर गए. इसके बाद 2006 के राज्य चुनावों में वह चौरंगी सीट में तीसरे स्थान पर आए. 2009 में वह कांग्रेस के टिकट पर बांकुरा लोकसभा क्षेत्र से लड़े और हार गए.
कांग्रेस का दामन थामने के बाद एक के बाद एक चुनाव हारने के चलते मई 2010 में उन्होंने कांग्रेस को फिर से छोड़ कर टीएमसी शामिल हो गए. उन्होंने 2011 का विधानसभा चुनाव बल्लीगंज सीट से लड़ा था. साल 2011 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग मंत्री बनाया गया था. दिसंबर 2011 में उन्हें पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. इसके बाद 2016 में दोबारा से कैबिनेट में शामिल हुए और तीसरी बार फिर से ममता सरकार में कद्दावर मंत्री हैं. हालांकि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बांकुरा सीट से टीएमसी के टिकट पर लड़े, लेकिन भाजपा के सुभाष सरकार से हार गए. नारदा मामले में एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में है.