चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ टीम बनाने की रणनीति विफल होने को कांग्रेस की बड़ी चूक या 'ऐतिहासिक भूल' के तौर पर देखा जाएगा. सबसे पुरानी पार्टी के लिए चिंता की बात यह है कि कांग्रेस के पास 2024 के चुनावों के लिए नेतृत्व को लेकर कोई प्लान बी नहीं है.
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले करीब 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी शामिल हैं, जहां कांग्रेस सत्ता में है. राजस्थान में अंदरूनी कलह, गुजरात जैसे राज्यों में आम आदमी पार्टी का उदय और कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अनिश्चित भाग्य ने कांग्रेस को गांधी परिवार के अधीन और ज्यादा कमजोर बना दिया है.
नेतृत्व के मुद्दे को लेकर जी-23 के आंदोलन फिर शुरू करने और कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाने की भी अटकलें हैं.
2022-27 के कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यकाल के लिए राहुल गांधी के 87 वें AICC प्रमुख के तौर पर लौटने की संभावनाएं भी स्पष्ट नहीं हैं. कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव अगस्त 2022 में होने हैं. लेकिन राहुल ने अभी तक अपना मन नहीं बनाया है. अगर वह कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ते हैं, तो उनकी जीत (शायद सर्वसम्मति से) पूर्व निष्कर्ष की तरह होगी. लेकिन गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना सहित दूसरे राज्यों में चुनावी प्रदर्शन कांग्रेस परिवार के अंदर उनकी विश्वसनीयता को और कम कर सकता है.
यदि गांधी परिवार एक गैर गांधी को कांग्रेस के नेता के रूप में प्रचारित करने का निर्णय लेते हैं, तो इसे प्रशांत किशोर की सिफारिश से ली गई सलाह के तौर पर देखा जाएगा. प्रशांत के सुझावों से लंबे समय तक कांग्रेस को फायदा मिल सकता है. हालांकि, श्रेय दिए बिना उनके उपायों को चुनने के लिए आलोचना का सामना भी करना पड़ सकता है. अटकलों के मुताबिक प्रशांत के साथ कांग्रेस की बातचीत इसलिए फेल हो गई, क्योंकि पार्टी के दिग्गज उन्हें फ्री हैंड, पसंद का पद या पार्टी के खजाने तक पहुंचने देने का विरोध कर रहे थे.
यहां ये जानना जरूरी है कि मीडिया के एक वर्ग के बनाए गए नैरेटिव को छोड़ दें तो किशोर को I-PAC के मुखिया या रणनीतिकार के तौर पर देश की सबसे पुरानी पार्टी ने कभी खारिज नहीं किया. किशोर को कांग्रेस में जगह देने और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने वाले हाई प्रोफाइल 'एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप' में सदस्यता देने की पेशकश की गई थी. यदि उनकी सत्यनिष्ठा या I-PAC के साथ जुड़ाव पर कोई संदेह होता तो कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव उनके लिए पहले स्थान पर नहीं होता.
AICC महासचिव और मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला का ट्वीट इसकी गवाही देता है. उन्होंने लिखा कि प्रशांत किशोर से बातचीत कर और प्रेजेंटेशन फॉलो करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने एक अधिकार प्राप्त कार्य समूह 2024 का गठन किया है. साथ ही प्रशांत किशोर को परिभाषित जिम्मेदारी के साथ हिस्से के रूप में पार्टी में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है.
प्रशांत किशोर की अपेक्षाएं और धारणा कांग्रेस आलाकमान से अलग थीं. इस बात पर ही टकराव की स्थिति पैदा होती है. किशोर का प्रेजेंटेशन में संगठनात्मक सुधार, नेतृत्व के मुद्दे को सुलझाने, गठबंधन बनाने के मुद्दे और 370 लोकसभा सीटों पर ध्यान केंद्रित करने पर था.
दिलचस्प बात यह है कि पीके से पार्टी या संगठन ने नहीं, बल्कि गांधी परिवार ने संपर्क किया था. यह स्पष्ट है कि सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी अपनी इच्छा से किसी भी चीज को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त राजनीतिक पकड़ रखते हैं. इसका एक क्लासिक उदाहरण राहुल का 2019 का चुनावी नारा, 'चौकीदार चोर है' था. इस पर किसी भी पार्टी मंच ने चर्चा या विचार-विमर्श नहीं किया. चुनाव के बाद, राहुल ने 'चौकीदार चोर है' के नारे को सही तरह से फैलाने में पार्टी नेताओं की विफलता पर निराशा व्यक्त की थी.
यह तीसरी बार था, जब कांग्रेस और पीके ने कार्यात्मक संबंध स्थापित करने की कोशिश की गई. 2017 में, किशोर ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अभियान को व्यवस्थित करने की कोशिश की थी, लेकिन इसका परिणाम विनाशकारी हुआ. 2021 के दौरान पीके ने सोनिया गांधी के साथ कई बैठकें कीं. यहां उन्होंने प्रमुख संगठनात्मक बदलाव के विषय पर चर्चा की. इस दौरान टिकट वितरण प्रणाली, चुनाव गठबंधन और फंड कलेक्शन को लेकर भी बात हुई.
प्रशांत किशोर जी-23, एआईसीसी पदाधिकारियों, क्षेत्रीय क्षत्रपों, युवा नेतओं के रूप में जाने जाने वाले कई असंतुष्ट पार्टी नेताओं से सीधे मिलते रहे. सोनिया गांधी ने तब कांग्रेस के साथ उनकी भागीदारी की संभावना तलाशने के लिए एके एंटनी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अंबिका सोनी की 3 सदस्यीय समिति नियुक्त की. पैनल के एक सदस्य ने तब बताया था कि कई मध्य और युवा नेताओं ने किशोर का मसौदा तैयार करने के कदम का समर्थन किया था.