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फर्जी हों या गड़बड़ी करने वाली पार्टियां... ECI को रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने तक का अधिकार नहीं

चुनावी चंदा में पारदर्शिता बढ़ाने को लेकर सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई थी, लेकिन इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि इसके चक्कर में राजनीतिक दलों की संख्या भी बढ़ गई. जांच के बाद इनमें से अधिकतर फर्जी या बिना चुनाव लड़ने वालीं पार्टियां पाई गईं. वजह साफ है कि उन्होंने सिर्फ चंदा लूटने और राजनीतिक ब्लैकमेलिंग के लिए पार्टी बनाई थी.

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चुनाव आयोग से रजिस्ट्रेशन लेने के बाद 2200 पार्टियों ने अब तक कोई चुनाव ही नहीं लड़ा.
चुनाव आयोग से रजिस्ट्रेशन लेने के बाद 2200 पार्टियों ने अब तक कोई चुनाव ही नहीं लड़ा.

चुनाव आयोग के सीमित अधिकारों को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है. चुनावी चंदा में गड़बड़ी हो, रजिस्ट्रेशन के बाद पार्टियों का कदाचार या फिर आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन- निर्वाचन आयोग को इन गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन तक रद्द करने का हक नहीं है. ऐसे में विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद चुनाव आयोग संसद यानी विधायिका और कार्यपालिका की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है.

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चुनावी चंदा में पारदर्शिता बढ़ाने को लेकर सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई थी, लेकिन इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि इसके चक्कर में राजनीतिक दलों की संख्या भी बढ़ गई. जांच के बाद इनमें से अधिकतर फर्जी या बिना चुनाव लड़ने वालीं पार्टियां पाई गईं. वजह साफ है कि उन्होंने सिर्फ चंदा लूटने और राजनीतिक ब्लैकमेलिंग के लिए पार्टी बनाई थी. चंदाजीवी शब्द लगता है कि ऐसे ही लोगों के लिए गढ़ा गया है.

देशभर में 2812 पार्टियां

निर्वाचन आयोग में 2800 से ज्यादा राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत हैं. दो दशक पहले 2001 में चुनावी बॉन्ड्स स्कीम आई. इस पर अमल 2018 में शुरू हुआ, तब से अब तक पार्टियों के रजिस्ट्रेशन में आश्चर्यजनक इजाफा हुआ. आंकड़े बताते हैं कि 2001 में देशभर में रजिस्टर्ड, लेकिन गैर मान्यता प्राप्त 694 राजनीतिक पार्टियां थीं. लेकिन अब इनकी संख्या 2812 पहुंच चुकी है.

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सिर्फ 6 दलों को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता

ये भी जान लीजिए कि इनमें से मान्यता प्राप्त दल सिर्फ 60 ही हैं. कांग्रेस, भाजपा, टीएमसी, एनसीपी, बसपा और सीपीएम यानी छह दल राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता प्राप्त हैं. बाकी अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं. इन क्षेत्रीय पार्टियों की भीड़ में करीब 55 दल ही ऐसे हैं जो गंभीरता से चुनाव लड़ते हैं. 

2200 पार्टियों ने कोई चुनाव ही नहीं लड़ा

कुल रजिस्टर्ड 2800 से ज्यादा पार्टियों में से 2200 ने तो रजिस्ट्रेशन के बाद से अब तक छोटा-बड़ा कोई चुनाव ही नहीं लड़ा. बाकी 2700 से ज्यादा राजनीतिक दुकानें हैं जो इन कथित राजनीतिक दलों के कर्ताधर्ताओ के लिए नोट छापने वाली मशीन से ज्यादा अहमियत नहीं रखते. 

एक्शन में है चुनाव आयोग

नकद चंदा लेकर ये धनवान लोगों को आयकर में छूट दिलवाते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए काले धन को सफेद करवाते हैं, तभी निर्वाचन आयोग ने इनके गोरखधंधों की शिकायत आयकर विभाग से करते हुए इनकी जांच कराने का आग्रह किया है. मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनते ही राजीव कुमार ने इस साल जून में ऐसे दलों की छंटनी की और 87 दलों को गैर मान्यता प्राप्त निबंधित राजनीतिक दलों को सूची में से बाहर किया. 

2200 पार्टियां आयोग के रडार पर हैं

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ये दल तो रजिस्ट्रेशन नंबर लेकर मानो भूमिगत ही हो गए. कंबल ओढ़ कर घी पीने वाले इन शातिर लोगों को सबक सिखाते हुए आयोग ने 111 ऐसे दलों की भी पहचान की, जिनका आयोग के रिकॉर्ड में नाम तो है लेकिन हकीकत की जमीन पर कोई नामो निशान नहीं है, इसके अलावा मेगा सफाई अभियान में अभी करीब 2200 पार्टियां रडार पर हैं. 

इन पार्टियों ने बरसों से आयोग को अपने आय-व्यय का ऑडिटेड ब्योरा नहीं दिया है. आयोग के सूत्रों के मुताबिक उनको इस बाबत अनगिनत नोटिस भेजे जा चुके हैं, लेकिन ये 'पार्टियां' फिलहाल पार्टीबाजी में मस्त हैं. क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना आने के बाद राजनीतिक दल किसी एक दाता से अपनी पावती रसीद बुक के जरिए दो हजार रुपए से अधिक नकद चंदा नहीं ले सकता. इससे ऊपर दस हजार रुपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक के विभिन्न मूल्य वर्ग के बॉन्ड्स के जरिए रकम पार्टी को दी जा सकती है, इसका ब्योरा, डाटा और बैंक व आयकर का खाता बस ये ही जानते हैं. 

 

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