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नवीन पटनायक को क्यों नहीं भा रहा बीजेपी के खिलाफ नीतीश का विपक्षी एकता का फॉर्मूला?

पटनायक और नीतीश कुमार दोनों ही ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जनता दल से निकलकर अपनी पार्टी का गठन किया. ऐसे में पटनायक ने नीतीश से मुलाकात के बाद उन्हें अपना पुराना दोस्त बताया. लेकिन पटनायक ने कहा कि नीतीश के साथ गठबंधन को लेकर उनकी कोई चर्चा नहीं हुई. इसके अगले दिन उन्होंने साफ कर दिया कि वे विपक्षी एकता की मुहिम में साथ नहीं आएंगे.

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बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से बुधवार को मुलाकात की थी
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से बुधवार को मुलाकात की थी

ओडिशा के सीएम और बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक इन दिनों चर्चा में है. वजह नीतीश कुमार से उनकी मुलाकात. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों को साथ लाने की कवायत में जुटे नीतीश कुमार ने बुधवार को पटनायक से मुलाकात की थी. नीतीश कुमार से मुलाकात के अगले दिन ही नवीन पटनायक ने दिल्ली पहुंचकर पीएम मोदी से मुलाकात की. इस बैठक के बाद पटनायक ने साफ कर दिया कि वे 2024 के आम चुनाव में विपक्ष के साथ आने की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि उनकी पार्टी बीजद अकेले ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ेंगी. आइए जानते हैं कि आखिर पटनायक को क्यों नीतीश कुमार का विपक्षी एकता का फॉर्मूला नहीं भाया? 

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नीतीश कुमार और उनका विपक्षी एकता का फॉर्मूला

नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ मिलकर 2020 में बिहार का विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन 2022 में उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़कर राजद, कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई. इसके बाद से नीतीश कुमार 2024 से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के मिशन में लग गए हैं. 
 
नीतीश ने पिछले महीने दिल्ली में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी. इसके बाद वे दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से भी मिलने पहुंचे थे. नीतीश अलग अलग राज्यों में जाकर क्षेत्रीय क्षत्रपों से मुलाकात कर रहे हैं. उन्होंने पिछले दिनों सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से भी मुलाकात की थी. इसी क्रम में वे ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से भी मुलाकात करने पहुंचे थे. पटनायक से मुलाकात के बाद उन्होंने गुरुवार को मुंबई जाकर महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे और एनसीपी चीफ शरद पवार के साथ भी बैठक की. 

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पटनायक का स्टैंड नीतीश कुमार के लिए झटका

पटनायक और नीतीश कुमार दोनों ही ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जनता दल से निकलकर अपनी पार्टी का गठन किया. ऐसे में पटनायक ने नीतीश से मुलाकात के बाद उन्हें अपना पुराना दोस्त बताया. पटनायक ने कहा, हमारी जानी पहचानी दोस्ती है और हम कई साल पहले सहयोगी थे. बैठक में किसी भी गठबंधन पर कोई चर्चा नहीं हुई.

 
नवीन पटनायक का स्टैंड नीतीश कुमार के लिए झटका माना जा रहा है. क्योंकि नीतीश ने अब तक जिन नेताओं से मुलाकात की है, उन्होंने बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता पर हामी ही भरी है. लेकिन पटनायक का स्टैंड इन सब नेताओं से अलग रहा.

नीतीश से मुलाकात के बाद पीएम मोदी से मिले पटनायक

नीतीश कुमार से मुलाकात के अगले दिन ही पटनायक दिल्ली में पीएम मोदी से मिले. उन्होंने इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि वे केंद्र और विपक्ष के बीच समान दूरी वाले अपने रुख को क्या बनाए रखेंगे? इस पर बीजद प्रमुख ने कहा, हमेशा से हमारी यही योजना रही है. 

76 साल के नवीन पटनायक शांत स्वभाव के नेता जाने जाते हैं. 5 बार से ओडिशा के सीएम पटनायक मुद्दों के आधार पर ही हमेशा एनडीए और कांग्रेस को समर्थन देते आए हैं. इतना ही नहीं पटनायक की राजनीति राज्य केंद्रित मानी जाती है, वे देश के सियासी मुद्दों से अक्सर दूर रहते हैं. 

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पीएम मोदी से मुलाकात के बाद उन्होंने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी अकेले ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा, यही हमारा हमेशा सिद्धांत रहा है. पटनायक ने कहा, जहां तक ​​मेरी बात है, तीसरे मोर्चे की कोई संभावना नहीं है. 

पटनायक को क्यों नहीं भा रहा विपक्षी एकता का फॉर्मूला?

- ओडिशा की राजनीति पर ही फोकस

नवीन पटनायक ऐसे नेता माने जाते हैं, जिनका पूरा फोकस ओडिशा की राजनीति पर ही रहा है. केंद्रीय मुद्दों से वे अक्सर दूरी बनाकर चलते हैं. यही वजह है कि विपक्षी एकता या तीसरे मोर्चे को समर्थन नहीं करते. केंद्र में चाहें कांग्रेस की सरकार रही हो, या अभी की मोदी सरकार, पटनायक का कभी कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ. वे सरकार के साथ रहकर ही ओडिशा के मुद्दों पर फोकस करते हैं. 

- क्या कांग्रेस के साथ नहीं आना चाहते पटनायक ?

दूसरी ओर नीतीश की विपक्षी एकता की मुहिम में कांग्रेस भी साथ है. वहीं, पटनायक की पूरी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ रही है. अगर वे विपक्षी एकता में शामिल होते तो उन्हें राज्य में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करना पड़ सकता था. उनके इस फैसले से ओडिशा में आधार खो चुकी कांग्रेस के फिर से खड़े होने की उम्मीद जग सकती थी. आगे चलकर बीजद के लिए ये फैसला खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो सकता था, ऐसे में पटनायक विपक्षी एकता से दूरी बनाना ही पटनायक की समझदारी मानी जा रही है.

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- ओडिशा में लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव 

ओडिशा उन राज्यों में है, जहां लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव होते हैं. माना जा रहा है कि पटनायक विपक्षी एकता से इसलिए दूरी बनाकर चल रहे हैं, ताकि उन्हें किसी फैसले के चलते राज्य की राजनीति में उन्हें नुकसान न उठाना पड़े. 

बीजेपी के साथ कैसे हैं पटनायक के रिश्ते?

नवीन पटनायक ने 2008 में एनडीए से नाता तोड़ लिया था. इसके बाद से जब एनडीए या विपक्ष के समर्थन की बात आती है, पटनायक न्यूट्रल ही नजर आते हैं. हालांकि, वे विपक्षी दलों की बैठक में भी शामिल नहीं होते. जब भी केंद्र को तीन तलाक, जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसे फैसलों में जरूरत पड़ी, पटनायक उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नजर आए. इतना ही नहीं इस बार राष्ट्रपति चुनाव में भी बीजद ने एनडीए प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू का समर्थन किया था. हालांकि, पटनायक जिन मुद्दों पर केंद्र से सहमत नहीं होते, उनका न तो वे समर्थन करते हैं और न ही विरोध करते हैं. 

विपक्ष द्वारा उठाए गए कई मुद्दों पर बीजद वॉकआउट कर केंद्र को समर्थन देते नजर आते हैं. 2018 में जब मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, तब भी बीजद ने वॉकआउट कर दिया था. ऐसे में पहले से ही माना जा रहा था कि शायद ही नीतीश बीजेपी के खिलाफ नवीन को अपने साथ ला सकेंगे. अब पटनायक ने खुद इन कयासों पर विराम लगा दिया है और साफ कर दिया है कि वे अपनी मौजूदा राजनीतिक रणनीति के तहत ही आगे बढ़ेंगे. 

 

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