लोकसभा चुनाव के लिहाज से उत्तर प्रदेश काफी अहम राज्य है, जहां पर देश की सबसे ज्यादा संसदीय सीटें है. सियासत में इसीलिए कहावत है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. कांग्रेस इसी रास्ते पर चलकर दिल्ली की गद्दी पर लंबे समय तक काबिज रही है, लेकिन उसी मैदान को पूरी तरह से खुला छोड़ दिया है. 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस उपचुनाव में कैंडिडेट नहीं लड़ा रही है जबकि बीजेपी छोटे से बड़े हर चुनाव को जीतकर 2024 में क्लीन स्वीप का सपना संजोय रही है.
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी लोकसभा, रामपुर और खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं. कांग्रेस ने उपचुनाव में किसी भी सीट पर अपने कैंडिडेट नहीं उतारे हैं. इससे पहले आजमगढ़, रामपुर लोकसभा और गोला गोकार्णनाथ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस अपना उम्मीदवार नहीं उतार सकी. ऐसे में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी तर्क दे रहे हैं कि उपचुनाव लड़कर सिर्फ समय खराब करना है. ऐसे में उपचुनाव लड़ने से किसी तरह का कोई फायदा नहीं होना वाला है, जिसके चलते पार्टी ने उपचुनाव नहीं लड़ रही है.
UP में लगातार गिर रहा कांग्रेस का ग्राफ
बता दें कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के गिरते सियासी ग्राफ को देखते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी को महासचिव बनाकर यूपी का प्रभार सौंपा गया था. तब राहुल गांधी ने कहा था कि प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि साल 2022 के विधानसभा के लिए यूपी में काम करने के लिए जिम्मा सौंपा है. निचले स्तर पर संगठन को मजबूत करें.
प्रियंका गांधी तीन सालों से यूपी में काफी ऐक्टिव थीं. वह सूबे के अलग-अलग हिस्सों में लगातार दौरे कर रही थीं और योगी सरकार के खिलाफ आक्रमक तरीके से मोर्चा खोल रखा था. इतना ही नहीं सपा और बसपा पर बीजेपी के बी-टीम होने का आरोप लगाती रहीं. इन सबके बावजूद कांग्रेस न तो साल 2019 के लोकसभा में ही कुछ बेहतर कर पाई और न 2022 के विधानसभा चुनाव में ही कुछ कमाल कर पाई. 2019 में राहुल गांधी अमेठी जैसी सीट पर हार गए और 2022 के चुनाव में कांग्रेस के विधायक घटकर दो पर आ गए.
UP में कांग्रेस का सबसे बुरा दौर!
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. प्रियंका गांधी ने भी 2022 के चुनाव हारने के बाद से यूपी जाना छोड़ दिया है. कांग्रेस ने कई संगठनात्मक बदलाव किए हैं. कांग्रेस ने कुछ दिन पहले ही अपने प्रदेश अध्यक्ष और छह प्रांतीय अध्यक्ष बनाए हैं. कांग्रेस ने अजय कुमार लल्लू की जगह बसपा से आए दलित चेहरे बृजलाल खाबरी को उत्तर प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी है.
बृजलाल खाबरी के मदद के लिए अजय राय से लेकर नसीमुद्दीन सिद्दीकी और नकुल दुबे जैसे नेताओं को प्रांतीय अध्यक्ष बनाया है ताकि सूबे में खोए हुए अपने सियासी आधार को वापस और समीकरण को मजबूत किया जा सके. आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह जरूरी था कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस स्वयं का पुनर्निर्माण के लिए उपचुनाव मैदान में उतरे ताकि आम चुनाव में स्वयं को एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश कर सके.
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली थीं जबकि प्रदेश में पार्टी की खोई जमीन वापस लाने के लिए प्रियंका गांधी लंबे समय से यूपी में ऐक्टिव थीं. इसके बाद भी कांग्रेस को वांछित सफलता नहीं मिली. ऐसे में कांग्रेस उपचुनाव से भी खुद को बाहर रख रही है और पूरा मैदान बीजेपी-सपा के लिए छोड़ रखा है. ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ता असमंजस में है कि सूबे में बचा-खुचा राजनीतिक आधार भी दूसरी पार्टी में खिसक सकता है, क्योंकि पार्टी का कैंडिडेट न होने से सपा या फिर बीजेपी को वोट देना उनकी मजबूरी है.
कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस उपचुनाव में जाती है तो उनका एक महीने का समय खराब हो जाएगा. उन्होंने तो यहां तक आरोप लगाया कि ये निकाय चुनाव से पहले उपचुनाव कराये भी इसलिए जा रहे हैं ताकि दूसरे दलों को तैयारी का समय न मिले और उनकी तैयारी प्रभावित हो. ऐसे में अब उनका फोकस निकाय चुनाव पर है. उपचुनाव लड़कर कांग्रेस समय नहीं खराब करना चाहती है, क्योंकि उपचुनाव में तो जीत सत्ताधारी पार्टी की ही होनी है.
असमंजस में हैं पार्टी के नेता
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस जिस तरह उपचुनाव से खुद को बाहर किया है, उससे कांग्रेस के लिए आगे की राह काफी कठिन हो सकती है. रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार थे. रामपुर में नवाब काजिम अली ने तो बकायदा पर्चा भी खरीद लिया था, लेकिन पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया तो उन्होंने बीजेपी को समर्थन कर दिया था. ऐसे ही गोला गोकार्णनाथ सीट पर भी कांग्रेस का अपना सियासी ग्राफ रहा है, लेकिन पार्टी ने वहां पर भी चुनाव नहीं लड़ी.
रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है और कांग्रेस फिर से चुनाव में अपना कैंडिडेट नहीं उतारा है. ऐसे ही खतौली विधानसभा सीट पर भी चुनाव नहीं लड़ रही है. इससे कांग्रेस को सियासी फायदा कम और राजनीतिक नुकसान भविष्य में ज्यादा हो सकता है. यूपी में कांग्रेस 1993 के बाद से सभी 403 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा था, जिसके चलते उसका सियासी आधार धीरे-धीरे दूसरी पार्टी में खिसकता चला गया. यह तर्क 2022 के चुनाव में कांग्रेस नेता खुद दे रहे हैं और उपचुनाव में उसी राह पर चल रही है. ऐसे में कांग्रेस यूपी में कैसे वापसी कर पाएगी?