जिन्हें घर लौटना था, उनमें से कई कभी नहीं लौटेंगे. जो बच गए वो कफन के बंदोबस्त में लगे हैं. जिन्हें बच्चों का दूध लाना था, वो अर्थी के लिए बांस खोज रहे हैं. जिनके इंतजार में थीं माएं वो अब मशान की ओर दौड़ी हैं. समझ लीजिए कफन कम पड़ गया है. लकड़ी कम पड़ गई है. लाशों के रखने की जगह कम पड़ गई है.
चश्मदीदों का कहना है कि ये अजीब किस्म का हादसा है, और हादसा भी नहीं हत्या है. क्योंकि सवाल ही सवाल हैं, और जवाब कुछ नहीं. लेकिन अमृतसर हादसों को लेकर कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने जरूरी हैं और इन्हीं जवाबों में असली गुनहगार छिपा हुआ है.
सवाल नंबर एक
ट्रेन की पटरी के बिल्कुल पास रावण दहन की इजाजत कैसे मिली?
सवाल नंबर दो
प्रशासन ने मेले के लिए सुरक्षा का जरूरी बंदोबस्त क्यों नहीं किया?
सवाल नंबर तीन
डीएम ने ट्रेनों की रफ्तार धीमी रखने के लिए रेलवे को क्यों नहीं कहा?
सवाल नंबर चार
मेले के दौरान ये सुनिश्चित क्यों नहीं किया कि लोग पटरी पार न करें?
सवाल नंबर पांच
पुलिस ने आयोजकों से पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था को समझा क्यों नहीं?
ये वो सवाल हैं जिनके जवाब पंजाब ही नहीं देश का बच्चा-बच्चा चाहता है, लेकिन अब जांच के फंदे में इन सवालों को टाला जा रहा है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पांच लाख मुआवजे का ऐलान किया है और जांच के आदेश दिए हैं.
बहरहाल...तो दाम लग चुका है. कटे हुए पैर का. कटे हुए हाथ का. निकली हुई आंख का. टूटी हुई सांस का. ये एक ऐसी रस्म है जो सियासत और सत्ता के लिए इस देश के आम लोगों की जिंदगी को सस्ती बना देती है.
पंजाब के अमृतसर में शुक्रवार को एक भयावह हादसे में रावण दहन देख रहे लोग तेज रफ्तार ट्रेन की चपेट में आ गए, जिससे कम से कम 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि अमृतसर के जोड़ा फाटक इलाके में रेलवे ट्रैक के नजदीक रावण का पुतला जलाया जा रहा था. जैसे ही पुतले में पटाखे का विस्फोट होना शुरू हुआ और आग की लपटें तेज हुईं, लोग रेल पटरी पर चले गए. कुछ लोग रावण दहन देखने के लिए पहले से ही रेल पटरी पर खड़े थे.