कनाडा की सरकार ने हाल ही में गारंटीड इन्वेस्टमेंट सर्टिफिकेट (GIC) की लिमिट को $10,000 कनाडाई डॉलर से बढ़ाकर $20,635 करने की घोषणा की है. इसका असर उन हजारों भारतीय छात्रों पर पड़ेगा जो विदेश में पढ़ाई करने की योजना बना रहे थे. कनाडा में पढ़ाई करने जाने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए जीआईएस एक अनिवार्य शर्त है. यह एक वर्ष के लिए छात्रों के रहने के खर्च को कवर करता है.
भारतीय छात्रों को पहले जीआईसी के रूप में 16 लाख रुपये जमा करने होते थे. कनाडा के इस फैसले के बाद उन्हें अब 25 लाख रुपये जमा करने होंगे. यानी छात्रों को अतिरिक्त 9 लाख रुपये का प्रबंध करना होगा. कनाडा में पढ़ाई के लिए जाने वाले भारतीयों में पंजाब के युवाओं की संख्या सर्वाधिक होती है. यह पता लगाने के लिए कि क्या नई जीआईसी लिमिट भारतीय छात्रों को प्रभावित करेगी, हमने चंडीगढ़ स्थित कनाडा के इमीग्रेशन विशेषज्ञों से बात की.
चंडीगढ़ के सेक्टर 8 स्थित एक इमीग्रेशन एजेंसी के साथ कंसल्टेंट के रूप में काम करने वाली सीमा बनर्जी ने कहा कि नई जीआईसी सीमा 1 जनवरी, 2024 से लागू होगी. उन्होंने कहा कि इस फैसले से अपने बच्चों को कनाडा में पढ़ने के लिए भेजने के इच्छुक परिवारों पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है, लेकिन इस फैसले से छात्रों को फायदा होगा.
सीमा बनर्जी ने कहा, 'इसे केवल एक वित्तीय बोझ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. इसे उन छात्रों के तनाव को कम करने के लिए उठाए गए एक कदम के रूप में देखें, जो फीस का भुगतान करने और जीवनयापन की लागत को पूरा करने के लिए छोटी-मोटी नौकरी करने को मजबूर होते हैं'. बनर्जी ने कहा कि छात्रों के पास अपने वीजा आवेदन जमा करने के लिए 15 दिनों से अधिक का समय है. वे 31 दिसंबर, 2023 तक पुरानी जीआईसी राशि का भुगतान कर सकते हैं.
महंगाई और बेरोजगारी के बावजूद कनाडा छात्रों की पसंद
गैसोलीन की ऊंची कीमतों के कारण अगस्त 2023 में कनाडा की वार्षिक मुद्रास्फीति दर जुलाई के 3.3 प्रतिशत से बढ़कर 4.0 प्रतिशत हो गई. कनाडा में रहने की लागत बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए यहां रहने की अनुमानित वार्षिक लागत लगभग 15,000 कनाडाई डॉलर (9.25 लाख) आंकी गई है. ऐसा लगता है कि कनाडा ने जीआईसी लिमिट बढ़ाने का निर्णय जीवनयापन की बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए लिया है.
कनाडा में वर्तमान बेरोजगारी दर 5.8 प्रतिशत है जिसका कारण रियल एस्टेट सेक्टर की नौकरियों में कटौती और मुद्रास्फीति है. बेरोजगारी के बावजूद, कनाडा पंजाब के छात्रों के बीच पसंदीदा स्थलों में से एक बना हुआ है. विभिन्न इमीग्रेशन सेंटरों के दौरे से पता चला कि अधिकांश पंजाबी छात्र अब भी कनाडा में रुचि रखते हैं, जहां उन्हें तीन साल की छोटी अवधि के भीतर परमानेंट रेजीडेंस हासिल करने का मौका मिलता है. ऑस्ट्रेलियाई या अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करना कनाडा जितना आसान नहीं होता.
जीआईसी की नई लिमिट से डिप्लोमा छात्रों को लगा झटका
इमीग्रेशन एजेंटों का कहना है कि जीआईसी सीमा बढ़ाने के फैसले से उन छात्रों पर असर पड़ेगा जो पूर्णकालिक नौकरी पाने के लिए एक साल की अवधि के डिप्लोमा का विकल्प चुनते हैं. पंजाब के अधिकांश छात्र छोटी अवधि के डिप्लोमा का विकल्प चुनते हैं और 4 साल की अवधि की डिग्री का खर्च वहन नहीं कर सकते. सूत्रों का कहना है कि कनाडा के 70 प्रतिशत पंजाबी छात्रों का वीजा आवेदन डिप्लोमा कोर्स के लिए होता है.
नाम नहीं छापने की शर्त पर, चंडीगढ़ स्थित एक इमीग्रेशन एजेंट ने कहा कि 2024 के बाद एक और बड़ा झटका लग सकता है, क्योंकि कनाडाई सरकार अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या सीमित कर सकती है. उन्होंने कह, 'ऐसे कई कारण हैं कि कनाडाई सरकार अंतरराष्ट्रीय छात्रों की सीमा तय करने का सहारा ले सकती है. सरकार को स्थानीय कनाडाई लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय छात्रों की आमद, जिनमें से एक बड़ी संख्या भारत से है, के कारण आवास संकट पैदा हो गया है. इसका असर 2024 के बाद दिखाई देगा'. उन्होंने कहा कि कनाडाई सरकार ग्रेटर टोरंटो, वैंकूवर, ब्रैम्पटन और सरे जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में आबादी कम करना चाहती है, जो भारतीयों के बीच लोकप्रिय हैं. सबसे ज्यादा पंजाबी आबादी क्यूबेक, मैनिटोबा, अल्बर्टा, ओंटारियो और ब्रिटिश कोलंबिया में है.
भारत-कनाडा तनाव के बीच भारतीय छात्रों की संख्या में गिरावट
भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव ने पहले ही भारतीय छात्रों की संख्या को प्रभावित किया है, जिसमें 2023 की दूसरी छमाही में गिरावट देखी गई है. इमीग्रेशन, रिफ्यूजी एंड सिटीजनशिप कनाडा (IRCC) के डेटा से पता चलता है कि जुलाई से अक्टूबर के बीच भारत से छात्र आवेदनों की संख्या में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह 2022 में 145,881 आवेदनों के मुकाबले इस साल यह घटकर 86,562 रह गया है. सूत्रों ने कहा कि आवास संकट और संभावित कैपिंग के अलावा मुद्रास्फीति से उत्पन्न चुनौतियों के बाद छात्र अब अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे अन्य देशों का रुख कर रहे हैं, लेकिन इन देशों में परमानेंट रेजिडेंस प्राप्त करना आसान नहीं है.
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने भी हाल ही में घोषणा की थी कि वह अपने यहां बाहर से आने वाले स्टूडेंट्स और वर्कर्स की संख्या को आधा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों और कम-कुशल श्रमिकों के लिए वीजा नियमों को सख्त करेगी. ब्रिटेन की सरकार ने भी छात्र वीजा शुल्क 127 पाउंड बढ़ाकर 490 पाउंड कर दिया है. तो विभिन्न देशों द्वारा उठाए गए ये कदम क्याभारत, विशेष रूप से पंजाब से होने वाले इमीग्रेशन की संख्या को प्रभावित करेंगे? विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी देश शत-प्रतिशत रोजगार नहीं दे सकता.
इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (IDC)) के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार कहते हैं, 'गतिशीलता पंजाबियों के खून में है. कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों द्वारा लिए जा रहे फैसले स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वे केवल कुशल श्रमिकों का स्वागत करेंगे. वर्तमान परिदृश्य में, भारत सरकार को कैपेसिटी बिल्डिंग पर जोर देना चाहिए ताकि विदेशों में भारतीय छोटी मोटी नौकरियों के सहारे रहने को मजबूर न होना पड़े और वे उच्च श्रेणी की नौकरियां पाएं'.