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पंजाबः कांग्रेस के भीतर उठे तूफान के बाद बच गई कैप्टन की कुर्सी, लेकिन नेतृत्व पर सवाल!

पंजाब कांग्रेस इकाई में नेतृत्व परिवर्तन के लिए उठी आवाज खामोश होती नहीं दिखाई दे रही है. पंजाब में कैप्टन का किला ध्वस्त करना इतना आसान नहीं है क्योंकि पार्टी के ज्यादातर विधायक अभी भी उन्हीं के पाले में हैं.

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पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल-पीटीआई)
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल-पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पार्टी हाईकमान द्वारा तीन दिनों तक दिल्ली में सुना गया दुख-दर्द
  • विधायकों-मंत्रियों में छाया रहा धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी का मामला
  • क्या कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व में लड़े जाएंगे अगले विधानसभा चुनाव?

पंजाब कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के लिए उठा तूफान अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध में उठे स्वरों को दबाने के लिए तीन सदस्य कमेटी का गठन करके दरबार लगाया तो दो दर्जन से अधिक नेताओं और विधायकों ने कैप्टन के खिलाफ शिकायतों का पिटारा खोल दिया.

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विधायकों और मंत्रियों ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर दलितों और पिछड़ों की अनदेखी का आरोप तो लगाया ही. साथ ही चुनावी वायदों को पूरा करने में रही नाकामी को भी उजागर किया लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा जो इन मुद्दों पर भारी रहा वह है धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी से जुड़े 170 मामले.

कैप्टन सरकार इन मामलों की जांच को लेकर बैकफुट पर है. सरकार के अपने ही मंत्री और विधायक कैप्टन की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं. नवजोत सिंह सिद्धू तो यहां तक कह चुके हैं कि कैप्टन असली दोषियों को बचाना चाहते हैं. अपनों से ही घिरी कैप्टन सरकार अब आम लोगों के बीच भी इस मुद्दे को अक्सर विश्वास खोती जा रही है.

उधर पार्टी हाईकमान और खुद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सरकार और पार्टी की साख बचाने के लिए डैमेज कंट्रोल शुरू तो किया लेकिन उस पर भी सवाल खड़े हो गए. कैप्टन ने दो पूर्व विधायकों के बेटों को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देनी चाही तो विपक्ष ने चुनाव घोषणा पत्र में घर-घर नौकरी देने का वायदा याद दिला दिया.

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दो उपमुख्यमंत्री बनाने का फॉर्मूला!
इस बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हालांकि खुद दर्जनभर विधायकों के संपर्क में थे और पूरे मामले पर नजर रखे हुए हैं लेकिन विवाद सुलझता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है.

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तीन दिनों तक मंत्रियों और विधायकों से मिलने के बाद अब कांग्रेस द्वारा गठित तीन सदस्य समिति अपनी रिपोर्ट पार्टी हाईकमान को सौंपेगी. पार्टी सूत्रों के मुताबिक कैप्टन की कैबिनेट में दो उपमुख्यमंत्री बनाने का फॉर्मूला सुझाया जा सकता है जिसमें से एक दलित वर्ग से हो सकता है.

वहीं, पंजाब कांग्रेस प्रधान का चुनाव भी लंबित है. कैप्टन के विरोधी इस पद पर भी नजरें गड़ाए हुए हैं लेकिन पार्टी के समक्ष सबसे बड़ी समस्या एक ऐसे चेहरे को ढूंढने की है जो दोनों पक्षों को मंजूर हो.

कैप्टन का किला ध्वस्त करना आसान नहीं 
कुल मिलाकर पंजाब कांग्रेस इकाई में नेतृत्व परिवर्तन के लिए उठी आवाज खामोश होती नहीं दिखाई दे रही है. पंजाब में कैप्टन का किला ध्वस्त करना इतना आसान नहीं है क्योंकि पार्टी के ज्यादातर विधायक अभी भी उन्हीं के पाले में हैं.

पंजाब कांग्रेस की गुटबाज़ी एक ऐसे समय में उजागर हुई है जब राज्य में विधानसभा चुनावों को सिर्फ आठ महीने का समय रह गया है. एक तरफ राज्य के लोग कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता कुर्सी बचाने और हथियाने में लगे हुए हैं. कैप्टन सरकार अपनी नाकामियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के नेताओं के निशाने पर हैं.

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भले ही अबकी बार उठे सियासी तूफान में कैप्टन की कुर्सी न डगमगाई हो लेकिन उनके नेतृत्व पर तो सवाल खड़ा हो ही गया है. बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस साल 2022 के विधानसभा चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में लड़ेगी या नहीं.

 

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