
पंजाब के जिला फरीदकोट रियासत के मालिकाना हक पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन महाराजा हरिंदर सिंह बरार की शाही संपत्ति की लंबी कानूनी लड़ाई का निपटारा कर दिया गया है. कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है. जिसमें 25 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति का अधिकांश हिस्सा उनकी बेटियों अमृत कौर और दीपिंदर कौर को देने का फैसला भी बरकरार रखा. कोर्ट ने संपत्तियों की देखभाल करने वाले महारावल खेवाजी ट्रस्ट को भंग कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में ट्रस्ट और दूसरे पक्षों की सुनवाई 26 जुलाई 2022 को पूरी हो गई थी. इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, जिसे बुधवार को सुनाया गया. सुनवाई के दौरान ट्रस्ट 1982 में महाराजा हरिंदर सिंह द्वारा लिखी गई, वसीयत को साबित नहीं कर पाया, जिसमें रियासत की देखरेख की जिम्मेदारी ट्रस्ट को सौंपी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस अदालत के समक्ष पड़े खातों और अन्य दस्तावेजों के सभी विवरण जल्द ट्रायल कोर्ट को भेज दिए जाएं. यह भी कहा है कि ट्रस्ट केवल 30 सितंबर, 2022 तक चैरिटेबल अस्पताल चलाने का हकदार होगा.
फरीदकोट में बने किले में महाराजा की कई लग्जरी महंगी गाड़िया, बग्गी, हाथ गाड़ी और तोप खाना बना है. राजा का हवाई अड्डा, लाइब्रेरी फरीदोकट में मौजूद है. वरिष्ठ वकील जसवंत सिंह जस ने बताया कि 30 सितंबर तक यदि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप महाराजा की दोनों बेटी अमृत कौर व स्व. दीपिंदर कौर के बेटे जयचंद्र और स्व. कुंवर मंजीत सिंह के वंशज आपस में समझौता कर संपत्ति बांट नहीं लेते तो 30 सितंबर के बाद सरकार द्वारा रियासत की संपत्ति पर रिसीवर तैनात करेगी.
बता दें, 1 जून 1982 में महाराजा हरिंदर सिंह ने अपनी पहली वसीयत को रद करते हुए नई वसीयत लिखी थी. 67 वर्षीय राजा ने उल्लेख किया था कि अगर उनके घर लड़का जन्म लेता है तो वह अकेला ही पूरी रियासत की तमाम जायदाद का मालिक होगा और अगर ऐसा न हुआ तो यह जायदाद ट्रस्ट के नाम हो जाएगी. ट्रस्ट की जिम्मेदारी उन्होंने छोटी बेटी को सौंपी थी. 16 अक्टूबर 1989 को राजा हरिंदर सिंह की मृत्यु हो गई.
महाराजा की बड़ी बेटी अमृतपाल कौर ने इस वसीयत को 1992 में चंडीगढ़ अदालत में चुनौती दी, जिस पर 2013 में उनके हक में फैसला आया, फैसले को ट्रस्ट द्वारा चंडीगढ़ जिला सेशन कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर 2013 में फैसला, और फिर ट्रस्ट द्वारा इसे पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर 3 जुलाई 2020 को फैसला ट्रस्ट के खिलाफ आया और अब 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी.
यहां से शुरु हुआ था विवाद-
जयचंद मेहताब राजकुमारी अमृतपाल कौर की छोटी बहन दीपिंदर कौर के बेटे हैं. निशा डी खेर जयचंद की बहन हैं. चंडीगढ़ के सेक्टर 11 में रहने वाली राजकुमारी अमृतपाल कौर ने शिकायत में कहा है कि राजा हरिंदर सिंह बरार के निधन के बाद राजकुमारी दीपिंदर कौर ने जाली वसीयत के आधार पर पूरी संपत्ति हड़प ली और महारावल खीवा जी ट्रस्ट बना दिया.
पहले वह खुद ट्रस्ट की चेयरपर्सन बनी रहीं और बाद में बेटे जयचंद और बेटी निशा को ट्रस्ट का चेयरमैन और वाइस चेयरपर्सन बना दिया था. वसीयत दिखाते हुए वकील ने बताया के फरीदकोट से लेकर मनीमाजरा, दिल्ली, शिमला जहां भी राजा की जायदाद है उसका बटवारा होगा. कुछ जगह पर सरकार का भी कब्जा है.