पंजाब के किसान संगठन अपनी मांगों को लेकर बड़ा आंदोलन कर रहे हैं. वे पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर बैठे हैं. उनको आगे दिल्ली जाने नहीं दिया जा रहा है लेकिन इस बीच सवाल उठ रहे हैं कि वे आखिर किसान भी हैं या नहीं? पंजाब के ज्यादतर किसान अपने खेतों में काम करते दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या खेत में काम करने वाले किसानों को आंदोलन के बारे में जानकारी है? आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट में जानिए खेतों में काम करने वाले किसानों की राय.
यह तस्वीर संगरूर की है. संगरूर पंजाब का वह जिला है, जहां कई बड़े किसान संगठन भी हैं. धरना-प्रदर्शन में सबसे ज्यादा किसान यहीं से होते हैं. मंगवाल गांव के 60 वर्षीय किसान हरदीप सिंह के पास 15 एकड़ की खेती की जमीन है. पंजाब हरियाणा बॉर्डर पर किसान आंदोलन कर रहे हैं लेकिन वह अपने खेत में काम कर रहे हैं. हमारे पूछे जाने पर कि वे आंदोलन में शामिल क्यों नहीं हुए?
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'आंदोलन पर गए किसानों के खेत की भी हो रही देखभाल'
खेत में काम करने वाले किसान हरदीप सिंह ने कहा, "हम उनके साथ हैं. वे हमारे साथी हैं लेकिन खेतों में काम करना भी जरूरी है, क्योंकि आप ज्यादातर घरों में अकेले-अकेले किसान हैं. उनका धरने में जाना और खेतों में काम करना मुश्किल है, इसीलिए वह धरने पर गए हुए हैं. हम पीछे अपना खेत भी देख रहे हैं और साथ ही उनके खेत भी देख रहे हैं, जैसे कि खेत में गेहूं की फसल है उसको पानी लगाना, लेकिन वह हमारे ही लड़ाई लड़ रहे हैं.
हरदीप सिंह ने बताया, "हमारे खेतों में अभी सिर्फ गेहूं और धान की फसल ही हो रही है. इन्हीं पर हमें एमएसपी पर खरीद हो रही है, जबकि हमारे खेतों में वह फैसले भी हो सकती हैं लेकिन उनके दाम हमें सही नहीं मिलते. जैसे खेत में कपास, मक्का, सरसों इसी लड़ाई को तो वह बॉर्डर पर बैठे लड़ रहे हैं. अगर सभी फसलों पर हमें एमएसपी मिल जाए तो हम इन फसलों को छोड़कर दूसरी फैसलें लगा लेंगे, क्योंकि धान के चलते हमारा पानी भी नीचे जा रहा है."
'बॉर्डर पर हमारी भलाई के लिए लड़ रहे किसान'
बुजुर्ग किसान जसवीर सिंह अपनी गेहूं की फसल की देखभाल करते हुए दिखाई दिए. हम उनके पास गए तो उन्होंने भी कहा जो किसान आंदोलन की लड़ाई लड़ रहे हैं, वे हमारे साथी हैं, उन्होंने बताया कि उनके पास 6 एकड़ जमीन है. वह गेहूं और धान की खेती करते हैं लेकिन जो नेता लड़ाई लड़ रहे हैं. वह उनके भले के लिए उनके अच्छे के लिए ही लड़ रहे हैं. हमें उन पर पूरा भरोसा है, क्योंकि अगर हमें सभी फसलों पर एमएसपी मिल जाएगी यानी कि सभी फसलों की खरीद की गारंटी मिल जाएगी, तो हमें बहुत अच्छा लगेगा.
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किसान जसवीर सिंह ने कहा, "हम और फैसले भी लगा सकते हैं लेकिन जब दम नहीं मिल रहा, इसलिए हम सिर्फ गेहूं और धान की खेती ही करते हैं. हमें सभी को पता है. हम सभी को जानकारी है. ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ खेतों में काम कर रहे हैं. हमें कुछ पता नहीं, जब दूसरी फसलों का सही दाम नहीं मिल रहा तो हमारे सिर पर लाखों का कर्ज भी हो रहा है. हमारे घरों से दूसरे किसान आंदोलन लड़ रहे हैं. हम पीछे उनकी मदद कर रहे हैं. उनके खेत देख रहे हैं. अगर उनको कोई जरूरत होती है वहां तो हम जहां से राशन का सामान उनको देकर आते हैं."
26 फरवरी को ट्रैक्टर मार्च, 14 मार्च को महापंचायत
किसान नेता गुरविंदर सिंह से बात की, क्योंकि कई किसान संगठन इस आंदोलन में शामिल नहीं हैं. सिर्फ कुछ किसान संगठन ही एमएसपी की लड़ाई लड़ रहे हैं. गुरविंदर सिंह ने बताया, "लड़ाई लड़ने का सभी का अलग-अलग ढंग और तरीका होता है. मांगें हमारी एक ही है. यह पिछले दिल्ली आंदोलन की मांगे हैं, जो रह चुकी थी. हम भी लड़ाई लड़ रहे हैं. हम उनका पूरा समर्थन कर रहे हैं. वह दिल्ली जाने का फैसला किया था, उन्होंने दिल्ली जाने नहीं दिया गया.
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बहुत लोग हरियाणा के बॉर्डर पर बैठे हैं. हमने पंजाब के भाजपा नेताओं के घर घिरे हुए हैं, जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह, भाजपा के नेता सुनील जाखड़ और केवल सिंह ढिल्लों इसके साथ ही जब किसानों पर आंसू गैस चलाई गई थी उसके बाद हमने पंजाब में रेलवे ट्रैक जाम किए थे. हम सभी उनके साथ हैं जो किसान खेतों में काम कर रहे हैं या बॉर्डर पर बैठे हैं.
यह लड़ाई मिलकर ही लड़ी जाती है. आंदोलन भी देखना होता है. खेतों में भी काम करना होता है और दूसरे तरीके से भी लड़ाई लड़नी होती है. आंदोलन लड़ाई किसानों को अकेला ना समझा जाए. हम 26 फरवरी को ट्रैक्टर मार्च कर रहे हैं. 14 मार्च को दिल्ली में महापंचायत होगी. जहां देश के सभी किसान संगठन शामिल होंगे.