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वाघा: बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी में पहली बार पाक रेंजर्स की तरफ से आया सिख जवान

वाघा बॉर्डर पर हर दिन होने वाली बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी के लिए तैनात पाकिस्तान रेंजर्स के जवानों में एक सिख भी शामिल हो गया है. यह जवान जब गुरुवार शाम नजर आया तो दोनों तरफ के लोगों ने जोरदार तालियां बजाईं.

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बीटिंग रिट्रीट के जरिए जाहिर की जाती है दोस्ती
बीटिंग रिट्रीट के जरिए जाहिर की जाती है दोस्ती

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वाघा बॉर्डर पर हर दिन होने वाली बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी के लिए तैनात पाकिस्तान रेंजर्स के जवानों में एक सिख भी शामिल हो गया है. यह जवान जब गुरुवार शाम नजर आया तो दोनों तरफ के लोगों ने जोरदार तालियां बजाईं.

बीटिंग रिट्रीट में पाकिस्तान की तरफ से शामिल इस जवान का नाम अमरजीत सिंह है. अमरजीत गुरुनगरी ननकाना साहिब के रहने वाले हैं. उन्होंने इसी साल ट्रेनिंग पूरी की है. अमरजीत 2009 से पाकिस्तान रेंजर्स में हैं.

पाकिस्तानी सेना में 2005 में शामिल हुआ पहला सिख
ननकाना साहब के ही रहने वाले हरचरण सिंह पाकिस्तान की आर्मी में शामिल हुए पहले सिख हैं. 2005 में हरचरण पाकिस्तानी फौज में इंटर सर्विस सिलेक्शन बोर्ड की एग्जाम पास कर आए. उनसे पहले कोई सिख पाकिस्तानी आर्मी में नहीं था. इसी तरह 2009 में ज्ञान चंद पाकिस्तान की फॉरेन सर्विस में शामिल किए गए पहले हिंदू थे.

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PAK ने हिंदू सैनिक को नहीं दिया शहीद का दर्जा
वहीं, वजीरिस्तान में 2013 में एक हिंदू सैनिक अशोक कुमार ने पाकिस्तानी आर्मी की तरफ से लड़ते हुए जान गंवाई थी. पाकिस्तानी फौज ने उन्हें शहीद का दर्जा देने से इनकार कर दिया था. इस पर काफी विवाद भी हुआ.

दो बार रोकी गई बीटिंग द रिट्रीट
वाघा बॉर्डर पर 1959 से बीटिंग द रिट्रीट की शुरुआत हुई थी. इसका गवाह बनने के लिए दोनों देशों के हजारों लोग हर रोज जुटते हैं. यह वाघा बार्डर पर हर शाम दोनों देशों के झंडे उतारने का प्रोग्राम होता है. 1965 और 1971 में भारत-पाक की जंग के दौरान यह रिट्रीट नहीं हुई थी.

156 सेकेंड का होता है कार्यक्रम
बंटवारे के बाद से सालों से तनावभरे माहौल के बीच भी इस दोस्ती को बीटिंग रिट्रीट के जरिए जाहिर किया जाता है. यह सेरेमनी करीब 156 सेकंड चलती है . इस दौरान, दोनों देशों के जवान मार्च करते हुए बॉर्डर तक आते हैं.

दोनों देशों के गार्डों में होता है मुकाबला
पाकिस्‍तान की ओर से रेंजर्स और भारत की ओर से बीएसएफ के जवान इसमें शामिल होते हैं. इस दौरान दोनों देशों के गार्ड नाक से नाक की बराबरी तक आते हैं. जवान मार्च के दौरान अपने पैर जितना ऊंचा ले जाते हैं, उसे उतना बेहतर माना जाता है.दोनों देशों के जवान जितनी बार जोर से चिल्लाते हैं, दर्शकों की भीड़ उतना ही उनका हौसला बढ़ाती है, ताकि जवान एक-दूसरे से बेहतर प्रदर्शन कर सकें.

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