सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के मुद्दे पर शुक्रवार को हरियाणा और पंजाब के सीएम की एक अहम बैठक होनी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह पहली बैठक होने जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मीटिंग होने के बाद इसका निष्कर्ष 15 अक्टूबर तक जवाब में दाखिल करना है. इस मीटिंग में केंद्र सरकार का कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं होगा. एसवाईएल के पानी को लेकर पंजाब पानी देने को तैयार नहीं है. हरियाणा पानी से कम कुछ स्वीकार ने को तैयार नहीं है.
तो क्या मामले का समाधान नहीं चाहता पंजाब?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बयान दिया है कि इस मीटिंग के नतीजों पर जाना थोड़ी जल्दबाजी होगी. भगवंत मान के ऊपर अपनी पार्टी और विपक्ष का दबाव है कि किसी भी कीमत पर पंजाब से पानी की एक बूंद हरियाणा को न दी जाए. वहीं आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल जहां हरियाणा से आते हैं, तो वहीं हाल ही में हरियाणा की आदमपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हैं. 2024 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी AAP को फैसले का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. लिहाजा केजरीवाल चाहते हैं कि इस मसले को किसी भी तरीके से ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा. भगवंत मान का बयान भी इसी तरह का संकेत दे रहा है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल पहले ही साफ कर चुके हैं कि एसवाईएल का पानी हरियाणावियों का हक है और उन्हें यह जरूर मिलेगा. इस मामले में एक समय सीमा भी तय होनी चाहिए.
हरियाणा को पानी देना पंजाब के साथ धोखा होगा
अकाली दल के नेता सुखबीर बादल साफ कह चुके हैं कि हरियाणा का पानी पर कोई हक नहीं है. अगर किसी भी सूरत में हरियाणा को पानी दिया जाता है तो आम आदमी पार्टी के नेताओं का पंजाब के साथ बड़ा धोखा होगा, जिसका खामियाजा उनके नेताओं को भुगतना पड़ेगा. सुखबीर बादल तो यहां तक कह चुके हैं कि यह बड़ी चिंता और निंदा का मामला है कि अब तक पंजाब के मुख्यमंत्री ने हरियाणा के साथ चर्चा करने से पहले पंजाब सरकार का रुख साफ ही नहीं किया है. नदी के पानी पर पंजाब का विशेष अधिकार है, लिहाजा पानी हरियाणा को नहीं दिया जाना चाहिए.
पहले भी हो चुकी हैं कई बैठकें
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और हरियाणा के सीएम मनोहरलाल भी मुलाकात कर चुके हैं. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र शेखावत भी इस मुद्दे को मॉनिटर कर चुके हैं लेकिन तमाम मीटिंगों और आदेशों के बावजूद इस मामले का हल अभी तक नहीं निकल पाया है.