दिल्ली में चुनावी हार के बाद अब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं. पंजाब में नेता प्रतिपक्ष प्रताप बाजवा ने दावा किया कि AAP के करीब 30 विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं. हालांकि इन दावों को सीएम भगवंत मान ने खारिज कर दिया. इसके अलावा संख्या के मामले में AAP के लिए ज्यादा चिंता की बात नहीं है. कारण, पार्टी के पास 117 में से 94 विधायक हैं जबकि निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है, जिसके सिर्फ 16 विधायक हैं. वहीं अकाली दल के पास 3 और भाजपा के पास महज दो विधायक हैं.
हालांकि आम आदमी पार्टी को इस धारणा का सामना करना पड़ रहा है कि दिल्ली से पंजाब सरकार चलाई जा रही है. आप में कलह दिल्ली की हार से शुरू हुई है, लेकिन इसका पंजाब में गहरा असर होने की संभावना है. आप के लिए सबसे बड़ा डर यह है कि दिल्ली की छवि उन्हें भी मुश्किल में न डाल दे. जहां एक वर्ग का मानना है कि दिल्ली चुनावों के मद्देनजर भगवंत मान अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे हैं, वहीं पार्टी के भीतर कुछ अन्य लोगों का मानना है कि राज्य में अब एक सुपर सीएम होगा. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भगवंत मान के करीबी ग्रुप में केजरीवाल के कई वफादार लोग शामिल बताए जाते हैं. इनमें से ही एक हैं बिभव कुमार, जो दिल्ली के पूर्व सीएम केजरीवाल के करीबी सहयोगी हैं. उनको हाल ही में पंजाब पुलिस ने जेड+ श्रेणी में डाल दिया. इस पर विपक्ष ने तीखा हमला किया.
दिल्ली में हार का कितना होगा असर?
विपक्ष के नेता (एलओपी) प्रताप बाजवा के इस दावे के बावजूद कि आम आदमी पार्टी के 30 विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं, AAP ने इन दावों को खारिज कर दिया है. लेकिन कई लोग इस संभावना से इनकार नहीं करते हैं कि 2027 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों में स्थिति बदल सकती है. ऐसे में सवाल ये भी है कि जिस "दिल्ली मॉडल" के लिए पंजाब ने वोट दिया था, उसे अब दिल्ली के लोगों ने ही नकार दिया है. तो ऐसे में इसका पंजाब में भी हो सकता है. लेकिन इससे सीएम भगवंत मान बेफिक्र नजर आए. दिल्ली में कपूरथला हाउस के बाहर मीडिया को संबोधित करते हुए पंजाब सीएम ने कहा कि वह अपने वादों पर खरा उतरने की योजना बना रहे हैं.
भगवंत मान ने पहली बार किया पंजाब मॉडल का जिक्र
एक समय था जब आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपने बहुचर्चित दिल्ली मॉडल का हवाला देकर वोट मांगे थे, लेकिन मंगलवार को पंजाब के सीएम भगवंत मान ने पहली बार पंजाब मॉडल की बात की. उन्होंने कहा, "पंजाब को ऐसा मॉडल बनाया जाएगा कि इसे पूरे देश में दिखाया जाएगा. हम पंजाब में कोई गारंटी नहीं तोड़ेंगे. हमने उन मोर्चों पर काम किया है, जिनका हमने वादा भी नहीं किया था. चाहे टोल टैक्स हो या कई विधायकों की पेंशन खत्म करना."
यहां तक कि भगवंत मान के अपने मंत्री भी कहते हैं कि दिल्ली की हार के बाद चुनावी वादों को पूरा करना सबसे अहम होगा. दो साल बाकी हैं, लेकिन अब चाहे उनकी अपनी पार्टी हो या विरोधी, सभी मौके की तलाश में हैं और खंजर लिए बैठे हैं.
भगवंत मान के अपने ही विधायक उठा रहे सवाल
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की बड़ी हार पर बात करते हुए आप विधायक और भगवंत मान के आलोचक कुंवर विजय प्रताप सिंह ने कहा, "दिल्ली में हार पंजाब में खराब शासन व्यवस्था को दर्शाती है. पंजाब सरकार राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति सहित कई मुद्दों पर काम करने में विफल रही है."
दिल्ली में केजरीवाल द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल न होने वाले अमृतसर उत्तर के विधायक ने कहा, "इस बैठक का कोई खास उद्देश्य नहीं था. यह भी विधायकों की संख्या के बारे में थी और मैंने फोन पर इसकी जानकारी दी है. पंजाब में यह आत्ममंथन का समय है."
पंजाब में फैसले दिल्ली से होते हैं: कांग्रेस
बड़े-बड़े वादे हों, बेअदबी के मामलों में न्याय दिलाना हो या कानून व्यवस्था, सरकार इन सभी मोर्चों पर पंजाब में विफल रही है. इस बीच, कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने AAP की आलोचना करते हुए कहा, "आम आदमी पार्टी ने हमेशा झूठ की राजनीति की है और दिल्ली के नतीजों ने उनकी पोल खोल दी है. पंजाब में भी AAP की हालत दयनीय है क्योंकि वे सभी मोर्चों पर विफल रहे हैं. सीएम सिर्फ चेहरा है, लेकिन फैसले दिल्ली से होते हैं. वे सोशल मीडिया पर जो राजनीति करते हैं, उससे पंजाब के लोगों को कुछ नहीं मिला है. पुलिस स्टेशनों पर ग्रेनेड हमले हो रहे हैं. गृह मंत्री खुद क्या कर रहे हैं?"
अकाली दल के नेता दलजीत चीमा ने भी आप पर कटाक्ष करते हुए कहा, "भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के बीच एक समझौता ज्ञापन है, जिसे अब समाप्त कर देना चाहिए. वैसे भी मान केवल नाम के लिए मुख्यमंत्री हैं. उनके अपने कार्यालय के लोग दिल्ली से रिमोट कंट्रोल से संचालित होते हैं. हमें डर है कि अब सभी मंत्री स्वतंत्र हैं, हम यहां पंजाब के मंत्रियों से संपर्क करेंगे. उन्होंने राज्य से बहुत पैसा कमाया है. और सरकार गिर जाएगी और उनका सचिवालय बंद हो जाएगा क्योंकि उनके पास कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं."
पंजाब में भी विपक्ष के निशाने पर AAP सरकार
कई पूर्व कांग्रेस नेताओं को पुलिस मामलों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उनकी गिरफ्तारी हुई जिनमें सुखपाल खैरा, भारत भूषण आशु, सुंदर शाम अरोड़ा, साधु सिंह धर्मसोद और यहां तक कि बिक्रम मजीठिया भी शामिल हैं. अकाली नेता को पंजाब पुलिस की एसआईटी ने कई बार बुलाया था. पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार को भी विपक्ष के गुस्से का सामना करना पड़ा है क्योंकि उनका आरोप है कि सरकार बदले की राजनीति कर रही है और अपना बदला लेने के लिए विजिलेंस ब्यूरो का इस्तेमाल कर रही है. हालांकि सीएम मान ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इनमें कोई तथ्य नहीं है.
भगवंत मान का आत्मविश्वास डगमगा गया: बीजेपी
वहीं भाजपा के राज्य प्रमुख सुनील जाखड़ ने सोशल मीडिया पर कहा कि दिल्ली चुनावों के बाद भगवंत मान का आत्मविश्वास डगमगा गया है. अटकलों का बाजार गर्म है. उन्होंने कहा, "दिल्ली में AAP की शर्मनाक हार के बाद, जबकि पंजाब के मुख्यमंत्री के भाग्य को लेकर तमाम तरह की राजनीतिक अटकलें चल रही हैं, कम से कम एक बात तो पक्के तौर पर कही जा सकती है कि आज कपूरथला हाउस में जो कुछ भी हुआ, उससे सीएम भगवंत मान की बेचैनी दूर नहीं हुई. क्योंकि बाद में मीडिया से बातचीत करते हुए वे इतने व्यथित लग रहे थे कि चुटकले सुनाना तो दूर, आज मिलते हुए उनके अपने सुर, ताल मेल नहीं खा रहे थे."
सरकार ने क्या काम किया
-पंजाब के नागरिकों को 600 यूनिट मुफ्त बिजली दी गई.
-50,000 सरकारी नौकरियां दी गईं.
-881 AAP मोहल्ला क्लीनिक और 118 स्कूल ऑफ एमिनेंस खोले गए,
-17 टोल प्लाजा बंद किए गए हैं, 62 लाख टिप्पणीकारों को बचाया गया.
-रंगला पंजाब जैसे कार्यक्रम लाए गए.
-ड्यूटी पर मरने वालों को 1 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया.
-पुलिस आधुनिकीकरण: दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए सड़क सुरक्षा बल का गठन किया गया और 100 से अधिक टोयोटा हिलक्स दी गईं.
मान सरकार किन कामों से चूकी
-लोगों में यह धारना है कि दिल्ली का पंजाब सरकार पर नियंत्रण है.
-महिलाओं को 1000 देने का वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ.
-राज्य में खराब कानून व्यवस्था को लेकर आलोचना का सामना. आतंक-गैंगस्टर नेटवर्क, पुलिस स्टेशनों पर एक दर्जन ग्रेनेड हमले हुए.
-राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े मुद्दे.
-अर्थव्यवस्था खस्ताहाल
-खनन से 20,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य पूरा करने में विफल/अवैध खनन को रोकने में विफल.
-बेअदबी के मामलों में चुनावी वादे पूरे नहीं कर पाए.