देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर महीनों से किसान अपनी मांगों को लेकर बैठे हुए हैं. जिनमें मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान हैं. ऐसे में इसका प्रभाव इन क्षेत्रों में होने वाले चुनावों पर पड़ना भी तय है. इसकी पहली कसौटी पंजाब में होने वाले लोकल चुनावों में सामने आएगी.
पंजाब में जल्द ही लोकल बॉडीज के चुनाव होने जा रहे हैं. जिससे सबकी नजर किसान आंदोलन के कारण पड़ने वाले 'राजनैतिक प्रभाव' पर रहेगी. पंजाब में 8 नगर निगमों अबोहर, बठिंडा, बटाला, कपूरथला, मोहाली, होशियारपुर, पठानकोट, मोगा और 109 नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों के लिए रविवार को चुनाव होने जा रहे हैं.
ये चुनाव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि इसमें पंजाब की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के साथ ही अकाली दल, आम आदमी पार्टी और बीजेपी सभी अपने-अपने पार्टी सिंबल पर चुनावी मैदान में हैं. कुल 9,222 उम्मीदवारों में से 2,832 प्रत्याशी निर्दलीय हैं. वहीं, राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के 2,037 उम्मीदवार, अकाली दल के 1,569, बीजेपी के 1,003 ,जबकि आम आदमी पार्टी के 1,606 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. इन चुनावों की मतगणना 17 फरवरी को होगी.
भारतीय जनता पार्टी, अकाली दल के अलग होने के बाद अपने ही दम पर पंजाब में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, इसलिए ये चुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम हैं. हालांकि किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी के प्रत्याशियों को इन निकाय चुनावों में पूरे पंजाब में जगह-जगह भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा है.
इसके साथ ही इन चुनावों में घोषित सीटों में से तकरीबन 50% सीटों पर बीजेपी अपने उम्मीदवार भी नहीं उतार सकी है. जिससे साफ है पंजाब राज्य में किसान आंदोलन बीजेपी को भारी चोट पहुंचाने जा रहा है. इस बीच कई जगह ये भी देखने को मिला कि बीजेपी प्रत्याशियों का क्षेत्रीय जनता ने भी विरोध किया.