कृषि कानून के खिलाफ किसानों का गुस्सा जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे शिरोमणि अकाली दल के तेवर भी मोदी सरकार और बीजेपी को लेकर सख्त होते जा रहे हैं. किसानों के मुद्दे पर अकाली दल ने पहले केंद्र में मंत्री की कुर्सी छोड़ी फिर एनडीए से नाता तोड़ा और अब बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि कृषि कानूनों का विरोध करने वालों को टुकड़े-टुकड़े गैंग कहा जा रहा है जबकि सही मायने में बीजेपी ही असली टुकड़े-टुकड़े गैंग है. बीजेपी के खिलाफ तीखे तेवर अख्तियार करने वाला अकाली का यह कदम किसानों के साथ-साथ पंजाब में अपनी खिसकती सियासी जमीन को साधने का बड़ा दांव माना जा रहा है.
बीजेपी के खिलाफ अकाली शख्त
सुखबीर सिंह बादल ने मंगलवार (15 दिसंबर) को कहा कि बीजेपी ने राष्ट्रीय एकता को टुकड़ों में तोड़ दिया है, बेशर्मी से मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को उकसाया है और अब अपने सिख भाइयों के खिलाफ ऐसा कर रही है. बीजेपी देशभक्ति वाले पंजाब को सांप्रदायिक आग में धकेल रही है. सुखबीर ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की नीतियां देश के भाईचारे को तोड़ने वाली हैं. सुखबीर बादल ने अपनी पत्नी हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे का जिक्र करते हुए कहा कि क्या केंद्र से इस्तीफा देकर वह देशद्रोही हो गई हैं. क्या बीजेपी के साथ सियासी संबंध तोड़ने से अकाली दल देशद्रोही हो गया. पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पद्म विभूषण लौटाकर देशद्रोही हो गए हैं.
सुखबीर बादल ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा ऐसे समय खोला है, जब मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून के खिलाफ सबसे ज्यादा पंजाब के किसानों में गुस्सा है. तीन महीने पहले पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन देश भर में फैल गया है. पंजाब और हरियाणा के किसान कृषि कानून को रद्द कराने की मांग को लेकर दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले बीस दिन से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार कानून को वापस लेने पर तैयार नहीं है. ऐसे में बीजेपी के कुछ नेताओं ने किसान आंदोलन पर निशाना साधते हुए उन्हें खालिस्तानी और टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थक बताया था, जिसे लेकर किसान संगठन काफी नाराज हैं. ऐसे में बीजेपी पर करारा हमला बोलकर सुखबीर बादल ने अपने राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने का दांव चला है.
पंजाब में किसान राजनीति
पंजाब की सियासत किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. पंजाब के किसानों में कृषि कानून के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है. किसान संगठनों के द्वारा यह कहा जा रहा है कि किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ही आमदनी का एकमात्र जरिया है, जो नए कृषि कानून के चलते खत्म हो जाएगा. इसके अलावा ये कानून मौजूदा मंडी व्यवस्था का खात्मा करने वाला बताया जा रहा है, जिसे रद्द करने की मांग को लेकर किसान इस कड़ाके की ठंड में आंदोलन कर रहे हैं.
पंजाब कांग्रेस इस मुद्दे पर किसानों और किसान संगठनों का सहयोग हासिल करने के मामले में शिरोमणि अकाली दल को काफी पीछे छोड़ चुकी थी. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कृषि से जुड़े कानूनों के खिलाफ विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर खुद को किसानों का हमदर्द बताने का बड़ा कदम उठाया है. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी किसान के समर्थन में खुलकर खड़ी है, ऐसे में अकाली दल कैसे पीछे रहने वाली थी.
किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस को मिला फायदा
दरअसल, पंजाब में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि कोई भी राजनीतिक दल इन्हें नजरअंदाज कर अपना वजूद कायम रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में किसानों के कर्ज माफी के वादे ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी में कराई थी जबकि उससे पहले किसानों को मुफ्त बिजली वादे के बदौलत ही अकाली दल सत्ता पर काबिज होती रही है. किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं के बीच कांग्रेस का कर्ज माफी का वादा अकाली दल की दस साल पुरानी सरकार को सत्ता से बेदखल करने में कारगर रहा था.
वरिष्ठ पत्रकार संजय गर्ग कहते हैं कि पंजाब विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का ही समय बचा है. नए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब के किसान सड़क पर हैं. पंजाब में किसान की सियासी ताकत को देखेते हुए कोई भी राजनीतिक पार्टी उनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा सकती है. यही वजह है कि किसानों के उग्र तेवरों को देखते हुए अकाली दल पहले एनडीए से अलग हुई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सुखबीर बादल ने किसान के समर्थन में मोदी सरकार के खिलाफ जिस तरह का हमला बोला है और बीजेपी को टुकड़े-टुकड़े गैंग बताया है, उससे अकाली दल के लिए किसानों के बीच जगह बनाने का मौका मिल गया है.
पंजाब के 2022 चुनाव पर नजर
अकाली दल की नजर 2022 में होने वाले पंजाब के चुनावों पर है. ऐसे में अकाली दल के लिए अपने वजूद का सवाल है. ऐसे में वह केंद्र सरकार में रहकर अपना राजनैतिक वजूद दांव पर नहीं लगाना चाहती थी. यही वजह है कि हरसिमरत कौर ने मोदी कैबिनेट की कुर्सी छोड़ दी और अब अकाली मोदी सरकार के खिलाफ मुखर होकर खुद को पंजाब के किसानों का सच्चा हितैषी साबित करने की कोशिश में जुट गई है.
किसान आंदोलन पर खालिस्तानी समर्थक होने के आरोप को लेकर सुखबीर बादल ने कहा था कि इस आंदोलन में कई बूढ़ी महिलाएं भी शामिल हैं. क्या वो खालिस्तानी लगती हैं? यह देश के किसानों को संबोधित करने का कोई तरीका है? यह किसानों का अपमान है. बादल ने कहा था कि उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारे किसानों को देशद्रोही कहने की? बीजेपी या किसी और को, किसानों को देशद्रोही कहने का हक किसने दिया? किसानों ने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया और आप इन्हें देशद्रोही कह रहे हैं? जो इन्हें देशद्रोही कह रहे हैं, वो खुद देशद्रोही हैं.
प्रकाश सिंह बादल ने अवॉर्ड लौटाया था
इसी महीने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और अकाली दल के वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल ने कृषि कानूनों के विरोध में अपना पद्म विभूषण सम्मान वापस कर दिया है. उनके अलावा अकाली दल के नेता रहे सुखदेव सिंह ढींढसा ने भी अपना पद्म भूषण सम्मान लौटाने की बात कही थी. बता दें कि प्रकाश सिंह बादल एनडीए के उन नेताओं में रहे हैं, जिनके सार्वजनिक मंचों पर चरण छूकर नरेंद्र मोदी आशीर्वाद लेते रहे हैं. हालांकि, अब कृषि कानूनों पर बीजेपी और अकाली दल आमने-सामने आ गए हैं.
बता दें कि अकाली दल और बीजेपी की दोस्ती 24 साल पुरानी रही है. दोनों दलों के बीच 1996 में गठबंधन में हुआ था. इसके बाद से लेकर अभी तक जितने भी चुनाव हुए हैं सारे अकाली और बीजेपी मिलकर लड़ी है. पंजाब में 1999 के लोकसभा और 2002 और 2017 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन के खराब प्रदर्शन के बावजूद समझौता जारी रहा था. इस दौरान बीजेपी की जितनी भी केंद्र में सरकार बनी सबसे में अकाली दल के नेता मंत्री बने.
1997 में बीजेपी के साथ आने का राजनीतिक फायदा अकाली को मिला और प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री बने. पंजाब में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी दल की सरकार ने पांच साल का सफर पूरा किया था. हालांकि, बीजेपी पंजाब में अकाली की जुनियर पार्टनर रही है. इस दौरान कई मुश्किलें भी आईं, लेकिन अकाली और बीजेपी की दोस्ती बनी रही अब किसानों के मुद्दे पर दोनों एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. हालांकि, बीजेपी के खिलाफ सख्त तेवर अख्तियार करने से अकाली को सियासी लाभ कितना मिलेगा यह तो वक्त ही बताएगा.