पंजाब में अब तक म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के 158 से ज्यादा मरीज सामने आ चुके हैं. इनमें से 32 मरीज ऐसे हैं जिन्हें कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ था. इस बात से आम लोगों की चिंता बढ़ गई है. क्योंकि अब तक तो यही माना जा रहा था कि जिन लोगों को कोरोना हुआ था उन्हें इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिए गए, जिस वजह से उन्में ब्लैक फंगस का संक्रमण फैला.
डॉक्टरों का कहना है कि ये 32 मरीज ऐसे हैं जिन्हें दूसरी बीमारियों के इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिए गए थे. इसलिए ऐसा नहीं है कि कोरोना से ठीक होने वालों में ही ब्लैक फंगस का संक्रमण बढ़ने का खतरा है.
ये पहली बार नहीं है जब ब्लैक फंगस के मामले सामने आए हैं. पहली बार ये 1855 में सामने आया था, उस वक्त इसे जिगोमाइकोसिस कहते थे. 2004 की सुनामी और 2011 में आए एक भयानक बवंडर के बाद भी ब्लैक फंगस के मामले सामने आए थे.
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ब्लैक फंगस के लिए पंजाब में नोडल अधिकारी बनाए गए डॉ. गगनदीप सिंह कहते हैं कि जिस भी व्यक्ति की इम्युनिटी कमजोर है, उसे ये बीमारी होने का खतरा है. वो बताते हैं, "ब्लैक फंगस छूने से नहीं फैलता है और अगर समय पर इसकी पहचान कर ली जाए तो इसका इलाज संभव है. कोई भी व्यक्ति जिसे किसी बीमारी के इलाज के दौरान ज्यादा स्टेरॉयड दिए गए हैं, वो ब्लैक फंगस का शिकार बन सकता है."
पंजाब में कोविड एक्सपर्ट टीम को हेड कर रहे डॉ. केके तलवार कहते हैं, "कोरोना के इलाज में ज्यादा स्टेरॉयड का इस्तेमाल होने से परेशानी हो रही है. डॉक्टरों को दूसरा विकल्प इस्तेमाल करने को कहा गया है." पंजाब में 19 मई को एपिडेमिक डिसीज एक्ट के तहत म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया था.