पंजाब, हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं से सरकारें कई सालों से चिंतित हैं. इसके पीछे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण वजह है, जिसके कारण लोगों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. इस बीच, राहतभरी जानकारी सामने आई है कि पिछले साल की तुलना में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आई है. ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण से भी राहत मिलने के आसार जताए जा रहे हैं. सरकारें भी लगातार किसानों से पराली न जलाने की अपील करती रही हैं.
पंजाब, हरियाणा और यूपी के आठ जिलों में साल 2020 की तुलना में इस साल कई गुना कमी आई है. पिछले एक महीने में 1795 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि 2020 के दौरान इसी अवधि में 4854 मामले दर्ज किए गए थे. आयोग के लिए इसरो द्वारा तैयार किए गए प्रोटोकॉल पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार, एक महीने के दौरान पंजाब में धान अवशेष जलाने की घटनाओं में 69.49 फीसदी, हरियाणा में 18.28 फीसदी और उत्तर प्रदेश के 8 एनसीआर जिलों में 47.61 फीसदी की कमी आई है. यह पिछले वर्ष की तुलना में आई इस साल काफी कमी है.
वर्तमान वर्ष के एक महीने की अवधि के दौरान, पंजाब में पिछले साल 4216 मामले सामने आए थे, जबकि इस साल पराली जलाने की घटनाएं 1286 हैं. इसी तरह, हरियाणा में पिछले वर्ष 596 घटनाएं सामने आईं, जबकि इस साल यह आंकड़ा 487 का है. उत्तर प्रदेश के 8 एनसीआर जिलों में, इस अवधि के दौरान पिछले साल 42 मामले दर्ज किए गए, जबकि इस साल 22 पराली जलाने की घटनाएं सामने आईं.
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दिल्ली और राजस्थान के दो एनसीआर जिलों से भी पराली जलाने की कोई सूचना नहीं मिली है. पहली बार पंजाब में 16 सितंबर को, हरियाणा में 28 सितंबर और यूपी के एनसीआर इलाकों में 18 सितंबर को पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए. पंजाब में धान के अवशेष जलाने के प्रमुख हॉटस्पॉट अमृतसर, तरनतारन, पटियाला और लुधियाना हैं. इन चार जिलों में 72% पराली जलाने की घटनाएं होती हैं. इसी तरह, हरियाणा में प्रमुख हॉटस्पॉट करनाल, कैथल और कुरुक्षेत्र .. इन 3 जिलों में पराली जलाने की 80% घटनाएं होती हैं.