पंजाब की राजनीति में आम आदमी पार्टी ने नया अध्याय शुरू कर दिया है. 117 में से 92 सीटों वाली प्रचंड जीत के बाद पंजाब को उनका नया मुख्यमंत्री भी मिल गया. कॉमेडी से राजनीति तक का सफर तय करने वाले भगवंत मान ने आज शहीद भगत सिंह के गांव खट्कड़ कलां में शपथ ली. उनके शपथ लेने के साथ ही पंजाब की एक नई राजनीति की झलक भी दिखी है, जिसमें 'दलित राजनीति' की धार है और 'राष्ट्रवादी' हुंकार है.
आप की नई राजनीति, पंजाब के बदलेगी तस्वीर?
भगवंत मान ऐलान कर चुके हैं कि अब पंजाब के हर दफ्तर में डॉ. बीआर अंबेडकर और शहीद भगत सिंह की तस्वीर लगाई जाएगी. पहले राजनेताओं की फोटो लगाने की परंपरा को पूरी तरह बदल दिया जाएगा. अब कहने को सिर्फ 'दो' तस्वीरें लगाने की बात है, लेकिन राजनीति के लिहाज से इसे काफी अहम माना जा रहा है.
अंबेडकर जहां देश के लिए दलितों के मसीहा हैं तो भगत सिंह सच्चे देशभक्त. ऐसे में पंजाब में आम आदमी पार्टी एक साथ दलित राजनीति और राष्ट्रवाद को साधने जा रही है. कांग्रेस ने जरूर पंजाब को पहला दलित सीएम दिया, चुनाव के दौरान भी 'दलित चेहरे' के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी को प्रमोट किया, लेकिन पंजाब की जनता ने इस बार 'चेहरे' से ज्यादा 'प्रतीक' पर ध्यान दिया. यही कारण है कि चरणजीत सिंह चन्नी के चेहरे पर बीआर अंबेडकर की तस्वीर वाला दांव ज्यादा चला. अब सत्ता में आने के बाद भी आप संयोजक अरविंद केजरीवाल से लेकर सीएम भगवंत मान तक लगातार कह रहे हैं कि वे अंबेडकर और भगत सिंह के सिद्धांतों पर चलने वाले हैं.
पंजाब की दलित राजनीति, AAP कहां खड़ी?
पंजाब में 32 फीसदी आबादी दलित समाज की है. देश के किसी भी राज्य में ये दलितों की सबसे ज्यादा संख्या है. लेकिन इतने ताकतवर वोटबैंक के बावजूद पंजाब को पहले 'दलित सीएम' के लिए दशकों इंतजार करना पड़ा. चरणजीत सिंह चन्नी सीएम बने तो कहा गया कि 32 फीसदी आबादी में कांग्रेस जबरदस्त सेंधमारी कर सकती है. लेकिन चुनाव के बाद जो नतीजे आए, उसमें साफ दिखता है कि दलितों ने कांग्रेस को नकार दिया है, बसपा का वोट भी काफी गिरा है और आम आदमी पार्टी इस समाज की पहली पसंद के रूप में उभरी है. पंजाब की 34 रिजर्व सीटों में से 26 पर आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की. वहीं दलित राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा मानी जाने वालीं मायावती की पार्टी बसपा को महज एक सीट और 1.77 फीसदी वोट मिल पाया.
अस्सी-नब्बे के दशक में कांशीराम ने यूपी में दलित राजनीति को एक नई धार दी थी. एक ऐसी चेतना जगाई गई थी कि तब बहुजन समाज पार्टी ने ना सिर्फ यूपी में अपना सियासी ग्राफ बढ़ाया, बल्कि उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में भी वो मजबूत दिखी. लेकिन अब पंजाब में स्थिति बदली है. यहां पर दलित वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी हो गई है. अगर पार्टी अपने वादे पूरे करती है, तो बाकी देश के दलितों के लिए वो एक विकल्प बन सकती है.
'राष्ट्रवादी' चेहरा मजबूत करने पर जोर
उत्तराखंड में जरूर AAP 'राष्ट्रवादी' पिच पर चलकर ज्यादा सफलता हासिल नहीं कर पाई, लेकिन पंजाब की धरती पर शहीद भगत सिंह को राजनीति के केंद्र में लाना पार्टी को जबरदस्त फायदा दे गया. भगत सिंह की राष्ट्रभक्ति निर्विवाद है. युवाओं के बीच तो उनकी लोकप्रियता बेमिसाल है. पंजाब चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भगत सिंह की उस लोकप्रियता को अच्छे से भुनाया. सिर्फ सरकारी दफ्तरों में उनकी तस्वीर लगाने का ऐलान नहीं हुआ, बल्कि दूसरे कई ऐसे 'प्रतीक' देखने को मिले जो पंजाब की जनता को बड़े संदेश देने का काम कर रहे हैं. सीएम भगवंत मान का भगत सिंह की तरह पीली पगड़ी पहनना, शपथ समारोह के दौरान उमड़े हुजूम में पीले रंग का छाए रहना बड़े संदेश देता है. इस पीले रंग के जरिए ही आम आदमी पार्टी ने पंजाब की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है.
राष्ट्रवाद का जो रास्ता आप ने अब अपनाया है, इसका एक मॉडल दिल्ली में पहले ही दिख चुका है. दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम की शुरुआत की है, जिसमें रोजाना 45 मिनट की एक क्लास रखी जाती है. केजरीवाल ने इस नई मुहिम को लेकर कहा था कि अब बच्चे सिर्फ इंजीनियर, डॉक्टर नहीं, देश भक्त इंजीनियर और डॉक्टर बनेंगे. देशभक्ति पाठ्यक्रम के अलावा दिल्ली की सड़कों पर तिरंगा लगाना, दूसरे राज्यों में चुनावी प्रचार के दौरान तिरंगा यात्रा निकालना भी आम आदमी पार्टी की 'नई राजनीति' एक झलक है जिसका नया केंद्र अब पंजाब बनने जा रहा है.