साइना नेहवाल और पीवी सिंधू जैसे कई शीर्ष राष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ियों को आज पैसे को लेकर कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले हर खिलाड़ी की किस्मत इतनी शानदार नहीं है.
कभी पंजाब चैंपियन रही और राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकीं मनजीत कौर आज सरकारी बेरुखी और गरीबी के कारण गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर हैं. बरनाला के कस्बा भदौड़ में झुग्गी झोपड़ी में मां के साथ रहने को मजबूर मनजीत जीवन-यापन के लिए छाछ बनाती हैं.
भदौड़ की मनजीत अपनी झुग्गी (घर) से जब बैडमिंटन का रैकेट उठाकर उसे निहारती है तो उनको सुनहरे दिन याद आते हैं. अपने शानदार खेल के लिए मिले सर्टिफिकेट उनको सकून भी देते हैं और दर्द भी.
मनजीत कौर ने बताया कि उसने चौथी क्लास में पढ़ने के दौरान ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था और इसी के चलते उसे इस खेल का जुनून हो गया. स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ बैडमिंटन में कामयाबी हासिल करती चली गई और पहले जोन जीता, फिर जिला, फिर स्टेट और फिर नेशनल लेवल तक पहुंच गई.
उन्होंने बताया कि दिल्ली में अंडर-14 राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था. पंजाब में वह बैडमिंटन चैंपियन रही. अपनी प्रतिभा के बल उन्हें टीम का कप्तान भी चुना गया. इसी दौरान उन्होंने आर्ट एंड क्रॉफ्ट का कोर्स किया और ग्रेजुएशन भी पूरी कर लिया. लेकिन सरकार ने नौकरी नहीं दी.
मनजीत ने बताया कि 22 साल पहले उसकी पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. फिर उसकी मां ने ही उसको मजदूरी कर खेल के साथ-साथ पढ़ाया भी, लेकिन सही खुराक नहीं मिलने के चलते 2009 में मनजीत को अचानक शरीर के हड्डियां में जोड़ों की तकलीफ शुरू हो गई. मां ने ही मजदूरी कर उसका इलाज करवाया, लेकिन वह पूरी तरह ठीक नहीं हुई और करियर आगे बढ़ नहीं सका.
मनजीत कौर ने सरकार के प्रति नाराजगी भी जाहिर की और कहा कि अब वह अपनी मां के साथ छाछ बनाकर बेचने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि खेल हर खिलाड़ी का शौक होता है जो कभी नहीं मरता. उनका भी दिल करता है कि वह ग्राउंड में जाए, लेकिन गरीबी और बीमारी के कारण वह मजबूर है. वह झुग्गी झोपड़ी वाले गरीब बच्चों को खिलाड़ी बनाना चाहती हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई मदद ही नहीं मिली.
मनजीत की मां सुखविंदर कौर ने दर्द बयां करते कहा कि जब तक खिलाड़ी मैदान में होता है तब तक ही उसकी पूछताछ होती है बाद में कोई नहीं पूछता. बूढ़ी मां ने भी अपनी बेटी के लिए मदद की गुहार लगाई है.