अपने प्यासा सावन तो सुना होगा लेकिन प्यासा 'चावल' शब्द आप शायद आप पहली बार सुन रहे होंगे. पंजाब देश का तीसरा बड़ा चावल उत्पादक राज्य है लेकिन यहां उगाया जाने वाला चावल अपनी पानी और उर्वरक की मोटी खुराक के चलते सुर्खियों में है. एक अनुमान के मुताबिक पंजाब में एक किलो धान उगाने के लिए 17 लीटर तक पानी का इस्तेमाल किया जाता है. केवल पानी ही नहीं बल्कि पंजाब में धान की फसल उगाने के लिए खेतों में खाद भी दिल खोल कर डाली जाती है. देश के सबसे ज्यादा चावल पैदा करने वाले राज्यों पश्चिम बंगाल और हरियाणा में क्रमश: प्रति हेक्टेयर 122 किलो और 187 किलो खाद का इस्तेमाल होता है जबकि पंजाब में 184 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से खाद डाली जाती है.
दरअसल पंजाब के किसानों को गेहूं की फसल के मुकाबले चावल पर ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा चावल उगा रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक पंजाब में हर साल लगभग 14 लाख टन चावल का उत्पादन होता है लेकिन चावल उगाने का फायदा सिर्फ किसानों को होता है जबकि राज्य सरकार चावल उत्पादकों को मुफ्त बिजली, उर्वरक, बीज, कीटनाशकों और सिंचाई पर सब्सिडी दे कर खुद कंगाल होती जा रही है.
पंजाब सरकार हर साल किसानों को दी जा रही सब्सिडी पर बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा खर्च कर रही है. मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान पंजाब के 1,90,000 किसानों को 8,275 करोड़ रुपए की मुफ्त बिजली देने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा केंद्र सरकार की तरफ से खाद पर मिलने वाली 5000 करोड़ रुपए की सब्सिडी अलग से है. पंजाब के किसानों को कृषि के उपकरण, कीटनाशक और बीज खरीदने पर भी सब्सिडी दी जाती है.
भूजल का खतरनाक स्तर तक दोहन
ज्यादा एमएसपी मिलने के कारण पंजाब में भूजल का खतरनाक स्तर तक दोहन हो रहा है. ज्यादा फसल उगाने के लिए पंजाब के किसान, खेतों में ज्यादा पानी और खाद डालते हैं. इससे पंजाब में धान का उत्पादन तो बढ़ा ही लेकिन इससे पर्यावरण पर भी विपरीत असर पड़ा है.
पंजाब में धान उगाने के लिए ना केवल जमकर भूमिगत पानी का दोहन होता है बल्कि जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए जरूरत से ज्यादा उर्वरकों का इस्तेमाल भी होता है जिससे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचता है. पंजाब में 71 फ़ीसदी सिंचाई ट्यूबवेल के जरिए की जा रही है और ज्यादातर किसानों ने डीजल से चलने वाले ट्यूबवेल का इस्तेमाल बंद कर दिया है क्योंकि उनको बिजली मुफ्त में मिल रही है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में ट्यूबवेल से सींचा जा रहा कृषि क्षेत्र, जो 1990-91 में 2233 हज़ार हेक्टेयर था, साल 2018-19 में बढ़ कर 2907 हज़ार हेक्टेयर हो गया. भूमिगत पानी के अत्यधिक दोहन से पानी का जलस्तर खतरनाक सीमा तक नीचे गिर गया है.
ट्यूबवेल लगाने में खर्च हो रहे पांच लाख
लगातार गिर रहे जलस्तर के कारण किसानों को अपने ट्यूबेल और ज्यादा गहरे करने पड़े हैं जिससे ना केवल ट्यूबवेल लगाने की कीमत दोगुनी हो गई है बल्कि धान की फसल की लागत भी बढ़ रही है.
मोहाली के किसान गुरप्रीत सिंह के मुताबिक दो-तीन साल पहले दो से तीन लाख रुपये खर्च करके एक ट्यूबवेल लगाया जा सकता था लेकिन अब इसकी लागत चार से पांच लाख रुपये हो गई है. लेकिन ज्यादा पानी और खाद के इस्तेमाल से राज्य में धान का उत्पादन भी बढ़ा है. साल 1980-81 तक पंजाब में 3,233 हजार मीट्रिक टन धान का उत्पादन होता था जो 2018-19 में बढ़कर 12,828 हजार मैट्रिक टन तक पहुंच गया. इस साल लगभग 14 लाख टन धान उगाया गया है.
इसके अलावा राज्य में धान का कृषि क्षेत्रफल जो 2010-11 में 2,830 हजार हेक्टेयर था 2018 -19 में बढ़कर 3,103 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया. हालांकि राज्य सरकार अब धान की परमल किस्म के बजाए बासमती उत्पादन पर ज्यादा जोर दे रही है जिससे पर्यावरण को कम नुकसान होता है और आमदनी भी ज्यादा होती है.
पंजाब के किसान दूसरी फसल उगाने को तैयार
केंद्र के तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली पहुंचे पंजाब के ज्यादातर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य खोने का डर है. धान की फसल बेचने पर भले ही अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा एमएसपी मिल रहा हो लेकिन इस फसल को उगाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है. राज्य में भले ही किसानों को मुफ्त बिजली दी जा रही हो लेकिन किसानों को कई -कई घंटों लंबे पावर कट से जूझना पड़ता है.
धान की फसल उगाने के लिए किसानों को सरकार की मेहरबानी पर निर्भर रहना पड़ता है, ऐसे में अगर धान की फसल से एमएसपी हटा ली जाए तो खर्चा, लागत से दोगुना है. किसान दूसरी फसलें उगा कर भी अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं लेकिन धान और गेहूं को छोड़कर बाकी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुविधा उपलब्ध नहीं है.
सरकार से वित्तीय मदद चाह रहे किसान
ऐसा नहीं है कि पंजाब के किसानों ने इससे पहले फसलों की विविधता को नहीं अपनाया. किसान गन्ने और कपास की फसल को आजमा चुके हैं. कपास की फसल पर बीमारियों का हमला होने की वजह से फसल बर्बाद हो गई, वहीं गन्ना मिलों ने कई सालों से किसानों का बकाया नहीं चुकाया है.
किसान चाहते हैं कि उनको गेहूं और धान पर तो एमएसपी मिलता ही रहे इसके अलावा मक्की और दूसरी फसलों पर भी एमएसपी की मांग जोर पकड़ती जा रही है. बेहतर खेती करना पंजाब के हर किसान का सपना है लेकिन वह बिना सरकारी मेहरबानी के सच साबित नहीं हो सकता.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक अगर सरकार चाहती है कि किसान फसलों के विविधीकरण को अपनाए तो उनको कुछ समय तक वित्तीय मदद देनी ही होगी.