शिरोमणी अकाली दल ने इसी साल अपने 100 साल का सफर पूरा किया है. 14 दिसंबर 1920 को शिरोमणि अकाली दल की स्थापना हुई थी, लेकिन पंजाब विधानसभा चुनाव से महज डेढ़ साल पहले पार्टी में दो फाड़ हो गया है. अकाली दल के राज्यसभा सदस्य सुखदेव ढींडसा और अकाली टकसाली नेताओं ने मिलकर नई पार्टी का गठन किया है, जिसका नाम शिरोमणि अकाली दल डेमोक्रेटिक रखा है. पहले ही किसानों की नाराजगी झेल रहे सुखबीर सिंह बादल के लिए ढींडसा नई मुसीबत बनकर सामने खड़े हो रहे हैं.
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा शिरोमणि अकाली दल डेमोक्रेटिक नाम से इस हफ्ते के अंत तक क्षेत्रीय दल के रूप में रजिस्ट्रेशन की अर्जी निर्वाचन आयोग में लगाएंगे. उन्होंने पार्टी का संविधान बनाकर तैयार कर लिया है. ढींडसा ने अपने विरोधी खासकर 'बादल परिवार' को बड़ा झटका देने का कदम उठाया है.
मालवा में हैं ढींडसा का जनाधार
दरअसल, पंजाब में महज डेढ़ साल के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. सुखदेव सिंह ढींडसा ने अपने समर्थकों के साथ शिरोमणि अकाली दल डेमोक्रिटिक का गठन कर पंजाब की राजनीति में बादल परिवार को चुनौती देने की कोशिश की है. ढींडसा 2022 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल को कितना राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकते हैं, यह तो आने वाला समय तय करेगा. लेकिन फिलहाल बादल परिवार को चिंता में डाल दिया है. ढींडसा का जनाधार पंजाब के मालवा इलाके में है, जहां करीब चार दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटें आती हैं.
सत्ता की धुरी है मालवा
पंजाब की राजनीति में मालवा को सत्ता की धुरी कहा जाता है. सूबे के ज्यादातर मुख्यमंत्री इसी इलाके के बने हैं. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल इसी मालवा के इलाके से आते हैं. सुखदेव सिंह ढींडसा भी मालवा के हैं. वो मालवा के हर इलाके के गांव, कस्बे को अच्छी तरह से जानते और वहां की सियासी नब्ज को समझते हैं. बादल परिवार जिस मालवा के जरिए सत्ता हासिल करते रहे हैं, अब उसकी सियासी जमीन पर ढींडसा अपना राजनीतिक आधार खड़ा करने जा रहे हैं.
पंथक हलकों में ढींडसा का सम्मान
सुखदेव सिंह ढींडसा के शिरोमणि अकाली दल डेमोक्रेटिक बनने के बाद मालवा के राजनीतिक समीकरण पर असर पड़ना तय माना जा रहा है. इस इलाके से आने वाले अकाली दल के नेता और कार्यकर्ता ढींडसा का दामन थाम रहे हैं. सुखदेव सिंह ढींडसा अपनी मातृ पार्टी रही शिरोमणि अकाली दल की एक-एक खूबी और खामी से बखूबी वाकिफ हैं. पंथक हलकों में उनका उतना ही सम्मान है जितना प्रकाश सिंह बादल का. ढींडसा 84 साल के हैं और उम्र के सात दशक उन्होंने अकाली ऐर पंथक सियासत में बिताए हैं.
अकाली-भाजपा का पुल रहे हैं
इतना ही नहीं ढींडसा अकाली दल और बीजेपी के बीच समन्वयक का भी काम करते रहे हैं. वहीं, किसानों के मुद्दे पर जिस तरह से सुखबीर बादल ने बीजेपी को लेकर आक्रमक रुख अख्तियार किए हुए हैं और उनकी पत्नी हरसिमरत कौर ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिया है. ऐसे में ढींडसा बीजेपी के साथ भी नए समीकरण तलाश सकते हैं, क्योंकि ढींडसा कहते रहे हैं कि पंजाब के हितों के लिए वह किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं.