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अकाल तख्त के जत्थादारों को हटाने का विरोध, अकाली दल के सामने SGPC पर नियंत्रण बनाने की चुनौती

शिरोमणि अकाली दल आंतरिक कलह और एसजीपीसी के कथित विवादित फैसले से गंभीर संकट में है. कई नेताओं के विरोध और इस्तीफे ने पार्टी नेतृत्व के सामने चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. सुखबीर सिंह बादल के लिए एसजीपीसी नियंत्रण का सवाल अहम है. उधर बिक्रम सिंह मजीठिया के बयान की भी आलोचना हो रही है, और पार्टी की तरफ से उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया जा सकता है.

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सुखबीर सिंह बादल
सुखबीर सिंह बादल

शिरोमणि अकाली दल इस समय गहरे संकट में है, क्योंकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा श्री अकाल तख्त के जत्थेदार को बदलने के हालिया फैसले से पार्टी में आंतरिक विभाजन और बढ़ गए हैं. इसे विवादित फैसला बताया जा रहा है और कई राज्य और जिला स्तर के नेताओं ने नाराजगी जताई है और कुछ ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है. अकाल तख्त ने सुखबीर बादल को धार्मिक मुद्दे पर गलतियों के लिए सजा दी थी.

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बादल परिवार के सपोर्टर्स ने इस फैसले को समर्थन दिया है, जबकि वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने इसका कड़ा विरोध किया. एसएडी के भीतर गहराते मतभेदों के चलते पार्टी और भी टूटती नजर आ रही है. अब अकाली दल का कहना है कि बिक्रम मजीठिया और अन्य के बयान को पार्टी की अनुशासन समिति को भेजा जा रहा है, जवाब मिलने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा और कार्रवाई की जाएगी.

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एसजीपीसी प्रमुख गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने भी उठाए सवाल

पूर्व एसजीपीसी प्रमुख गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने भी जत्थेदारों के हटाने के फैसले की कड़ी आलोचना की और इस पर सवाल उठाया. हरियाणा इकाई के शरणजीत सिंह सहोटा, सरबजीत सिंह सबी, कुलदीप सिंह चीमा समेत कई नेताओं ने विरोध जताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

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सुखबीर बादल के लिए भी बड़ी संकट की घड़ी

पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के लिए यह बड़ा संकट है, ताकि वह एसजीपीसी पर नियंत्रण बनाए रख सकें, जो कि वर्तमान में हरजिंदर सिंह धामी के इस्तीफे के बाद बिना अध्यक्ष के है. 28 मार्च को अमृतसर में होने वाले एसजीपीसी बजट सत्र को अहम माना जा रहा है, जहां जत्थेदारों की नियुक्ति और हटाने पर फैसले होने की संभावना है.

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अकाली दल के पार्टी नेतृत्व द्वारा पिछले कुछ वर्षों में सिख संस्थानों पर प्रभाव डालने के लिए माफी मांगने के बाद अब दोबारा वही गलती करने का आरोप लग रहा है. आलोचकों का कहना है कि अकाली दल ने या तो इस फैसले का सीधे समर्थन किया है या उसने मौन रहकर इसे बढावा दिया है.

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