स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है. दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दावा किया है कि सज्जन कुमार दंगों के साक्षी रहे गवाहों को धमका रहे हैं.
गवाहों को मिले सुरक्षा
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जी के ने दावा किया है की दंगों के अहम गवाह जोगिंदर सिंह, प्रेम कौर और मिश्री कौर ने उनको बाकायदा लिखित शिकायत देकर बताया है कि सज्जन कुमार उनको धमका रहे हैं. कमेटी ने शिकायत मिलने के बाद दिल्ली के पुलिस कमिश्नर आलोक कुमार वर्मा को पत्र लिखकर गवाहों को पुख्ता सुरक्षा देने की मांग भी की है. अब दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने गवाहों को प्रभावित करने के आरोप में सज्जन कुमार को पुलिस रिमांड पर लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला भी किया हैं.
कमेटी के कानूनी विभाग के को-चेयरमैन जसविंदर सिंह जौली ने 'आज तक' को बताया कि गवाहों से पहले उनको भी लगभग चार महीने पहले एक गुमनाम पत्र के जरिए धमकाने की कोशिश की गई थी. धमकी भरे पत्र में जौली को 1984 सिख कत्लेआम के केसों की पैरवी से पीछे हटने की हिदायत धमकीकर्ता द्वारा दी गई थी. उन्होंने बताया की कमेटी ने धमकी भरा पत्र मिलने की सूचना दिल्ली पुलिस को भी दी थी.
शिरोमणी अकाली दल दिल्ली इकाई के प्रवक्ता जौली ने सज्जन कुमार पर आरोप लगाया की वह कानूनी शिकंजे में बुरी तरह फंस चुके है, इसलिए गवाहों को पहले ललचाने के बाद अब धमकाने का सिलसिला शुरू हो गया है.
गवाहों के घर जाकर दी धमकी
जौली ने शिकायतकर्ता के हवाले से जानकारी दी कि सुल्तानपुरी से कांग्रेस के पूर्व विधायक जयकिशन, उसके भाई वेदप्रकाश और उनके पुत्रों द्वारा लगातार पिछले 3-4 दिनों से जोगिंदर सिंह के घर आधी रात को दस्तक देकर 7 सितंबर को होने वाली सुनवाई के दौरान गवाही ना देने की हिदायत दी जा रही है. गवाही देने की हालात में जोगिंदर सिंह और उसके परिवार को कत्ल करने की भी धमकी दी गई है. इसी तरह ही प्रेम कौर और मिश्री कौर को भी सज्जन कुमार के 5-6 नकाबपोश लोगों द्वारा बीते 4 दिनों से उनके घर आकर धमकी देने की जानकारी कमेटी के पास आई है.
'1984 दंगे चुनावी नहीं, भावनात्मक मुद्दा'
जौली ने साफ कहा कि कमेटी कौम के कातिलों को सजा दिलाने के लिए वचनबद्ध है पर यह सजा गवाहों को सुरक्षा मिले बिना पुख्ता तौर पर नहीं हो सकती है. जौली ने 32 सालों से कातिलों के खुलेआम घूमने के पीछे मुकद्दमों के पैरोकारों द्वारा गवाहों को ना संभालने को जिम्मेवार बताया. जौली ने तल्ख लहजे में कहा कि जब कमेटी ने पीड़ितों और गवाहों को संभालने की कोशिशें आरंभ की थीं, तो हमारी कोशिशों को कुछ लोगों द्वारा चुनाव में सियासी फायदा लेने के तौर पर बताया गया था. जबकि अकाली दल के लिए 1984 कत्लेआम चुनावी मुद्दा ना होकर सिख भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है, इसलिए अगर कातिल जेल में जाते हैं तो उससे बड़ी कौम की कोई जीत नहीं हो सकती.