
देश के कई अन्य राज्यों की तरह पंजाब के गांवों में कोरोना की महामारी का असर दिखने लगा है. गांव के गांव में पॉजिटिव लोगों की संख्या तो बढ़ रही है साथ में मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है. खासकर 40 की उम्र के आस-पास के लोग बन रहे कोरोना का शिकार बन रहे हैं. पंजाब के गांवों में इस समय सन्नाटा और मातम का माहौल है.
राज्य के संगरूर जिले का गांव किलाबोरियां की आबादी लगभग साढ़े तीन हजार है. कई गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर 1991 में सरकार ने कई कमरों वाली डिस्पेंसरी भी बनाई है और अब जब कोरोना की महामारी गांवों में पैर पसार रही है तो इस डिस्पेंसरी की जरूरत गांव के लोगों को सबसे ज़्यादा है लेकिन डिस्पेंसरी के अंदर जाते ही लटका हुआ मोटा ताला और बाहर लावारिस हालत में पड़े हुए आवारा कुत्ते कहीं ना कहीं अपने आप में बता रहे हैं कि कई सालों से इस डिस्पेंसरी में कोई आया ही नहीं है.
गांव के लोगों का कहना है कि गांव में ना कोई टेस्टिंग हुई है और ना ही वैक्सीनेशन. सब कुछ भगवान भरोसे ही है.
संगरूर जिले का नेमोल गांव. इस गांव की आबादी करीब साढ़े 7 हजार है. गांवों में सरकारी और प्राइवेट स्कूल के साथ-साथ गुरुद्वारा, मंदिर और मस्जिद सब कुछ बना हुआ है. पक्की सड़कें हैं, बावजूद इसके गांव की गलियां सूनी पड़ी हुई है. यहां तक कि गांवों की गलियों में किसी तरह की रौनक नहीं है. ना कोई घर से बाहर निकलता है और न ही कोई किसी के घर जाता है.
अगर गांव की बात करें तो यहां पर कई दर्जन लोग कोरोना से पॉजिटिव हैं और कई की मौत भी हो चुकी है. गांव की गलियों का ये सन्नाटा अपने आप बता रहा है कि गांव के हालात दरअसल हैं क्या.
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गांवों की पहचान होता हर बरगद का पेड़ और उसके नीचे बना हुआ चबूतरा जहां तमाम गांवों के युवा और बुजुर्ग पूरा दिन इकट्ठा हुआ करते थे, लेकिन कोरोना की महामारी ने गांव की गलियों के साथ-साथ बरगद के नीचे वाले चबूतरे को भी सूना कर दिया है और सन्नाटा तथा डर का माहौल साफ दिखाई देता है.
नेमोल गांव के मालविंदर सिंह जिनकी उम्र महज 40 साल थी. घर में अकेले कमाने वाले थे. पत्नी MSC पास हैं. घर में उनके पीछे 10 महीने और साढ़े तीन साल की दो बेटियां हैं. पत्नी पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट चुका है. छोटी मासूम बेटी बार-बार टकटकी लगाए अपने पिता की तस्वीर को देखती रहती है. लेकिन उसे शायद ये नहीं मालूम कि यादों के तौर पर अब उसके पास ये तस्वीर ही बची है.
मालविंदर सिंह के पिता अपाहिज हैं और मां बुजुर्ग. घर की जिम्मेदारी मालविंदर की पत्नी हरसिमरन पर आ पड़ी है. पति ने हाल ही में पटवारी की नौकरी के लिए हरसिमरन का फॉर्म भी भरवाया था और अब उनकी चाहत पति के सपने को पूरा करने की है.
नेमोल गांव के ही बलदेव खान की उम्र 55 वर्ष थी. बलदेव खान अपनी बेटी की शादी करना चाहते थे. घर में बेरोजगार छोटा बेटा भी है, लेकिन कोरोना की महामारी ने बलदेव को उनके सपनों से दूर कर दिया. घर में मातम का माहौल है और कोरोना की वजह से मौत होने के बाद भी घर के लोग इस बीमारी को भूल गए. ऐसा लगता है दुखों का पहाड़ इस घर पर इस कदर टूटा है कोई कुछ भी बोलने की हालत में नहीं हैं.