सरबजीत को अपने गांव से फिर अपने गांव तक पहुंचने में तेईस साल लग गए. वो गांव तो लौटे, लेकिन जिंदा नहीं. गांव पहुंचने से पहले उनके शव का पोस्टमार्टम किया गया और हर पल देश की नजरें उनका पीछा करती रहीं.
तेईस साल बाद मुल्क नसीब तो हुआ लेकिन जिस शख्स ने जिंदा सरहद पार किया था, वो लौटा तो ताबूत और तिरंगे में लिपटा हुआ.
रात के दो बज चुके थे जब सरबजीत का शव अपने पैतृक गांव अमृतसर के भिखीविंड पहुंचा और शव पहुंचते ही पूरा गांव चीत्कार कर उठा.
शाम के 7.50 बज रहे थे जब इंडियन एयरलाइंस की स्पेशल प्लेन सरबजीत के शव को लेकर लाहौर से अमृतसर पहुंची. बहन को उम्मीद थी कि वो पाकिस्तान के चंगुल से अपने भाई को आजाद करवा लेगी लेकिन ऐसा हो न सका.
खेतों की ओर पैदल निकला आदमी जहाज में सवार होकर आया. लेकिन रूह रूठ चुकी थी और सांसें थम चुकी थीं. घड़ी की सुइयों को न जाने क्या हो गया था. समय पहाड़-सा लग रहा था.
रात करीब 9.21 बजे स्पेशल हेलीकॉप्टर के जरिए सरबजीत का शव अमृतसर से भिखीविंड पहुंचा. बिटिया ने पापा के बेजान शरीर को देखा तो आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा.
परिवार का पहाड़ सा गम बांटने के लिए पंजाब सरकार ने बाहें फैला दी. पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल कदम-कदम पर शव के साथ चले और उस परिवार को ढांढस बंधाते रहे जिनके गम ने पूरे हिंदुस्तान को हिलाकर रख दिया है.
गमगीन माहौल के बीच रात करीब 9.40 बजे सरबजीत का शव पोस्टमार्टम के लिए पट्टी हॉस्पीटल पहुंचा.
अमृतसर के पट्टी में पोस्टमार्टम के बाद सुखबीर का शव उनके पैतृक घर भिखीविंड के लिए रवाना हुआ और महज आधे घंटे के अंदर गांव का बिछुड़ा लाल अपने गांव में था. गांव से इस जाने और आने के बीच करीब 23 साल का लंबा फासला था और नफरत में लिपटी सरहद की इस दूरी ने फासले को पूरा करने के लिए जान भी नहीं बख्शी.
सरबजीत अपने वतन भी लौटे तो अंतिम संस्कार के लिए. भिखीविंड में शहीद की अंतिम यात्रा निकाली जाएगी और पूरे राजकीय सम्मान के साथ दोपहर दो बजे सरबजीत पंचतत्व में विलीन हो जाएंगे.