नवजोत सिंह सिद्धू को साल 1988 के रोडरेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक साल कैद की सजा सुनाई है. खास बात ये रही है कि 24 पन्नों के इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संस्कृत के एक श्लोक का हवाला दिया है. कोर्ट ने कहा, 'प्राचीन धर्म शास्त्र भी कहते रहे हैं कि पापी को उसकी उम्र, समय और शारीरिक क्षमता के मुताबिक दंड देना चाहिए. दंड ऐसा भी नहीं हो कि वो मर ही जाए बल्कि दंड तो उसे सुधारने और उसकी सोच को शुद्ध करने वाला हो. पापी या अपराधी के प्राणों को संकट में डालने वाला दंड नहीं देना उचित है.'
संस्कृत का ये है श्लोक
“यथावयो यथाकालं यथाप्राणं च ब्राह्मणे।
प्रायश्चितं प्रदातव्यं ब्राह्मणैर्धर्धपाठकै:।।
येन शुद्धिमवाप्रोति न च प्राणैर्विज्युते।
आर्ति वा महती याति न चैतद् व्रतमहादिशे।।''
कोर्ट ने इसी मामले में अपने ही पिछले फैसले पर कहा है कि सिर्फ जुर्माना लेकर छोड़ना और सजा में रहम दिखाने का फैसला सही नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि वर्तमान मामला ऐसा नहीं है जहां दो विचार संभव हों. जैसे कि पुनर्विचार किया जाए या नहीं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह ऐसा मामला है जहां सिद्धू पर केवल जुर्माना लगाते समय सजा के लिए कुछ जरूरी तथ्य खो गए हैं. इसलिए दो संभावित विचारों के बीच चयन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है.
देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि हम इस बारे में बहुत कुछ नहीं बता रहे हैं कि जांच शुरू में कैसे आगे बढ़ी. अदालत को यह देखने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा कि संबंधित लोगों पर कैसे आरोप लगाए गए हैं. आरोपों में सबूतों के तरीके, डॉक्टरों की झिझक जैसे कई मुद्दे इस अदालत के सामने आए. उसके बाद कोर्ट को लगा कि याचिकाकर्ता की गुहार उचित और संदेह से परे है. इतना ही नहीं, IPC की धारा 323 के तहत केवल एक ही ओर फैसला हो सकता है.
कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि हमारा मानना है कि केवल जुर्माना लगाने और सिद्धू को बिना किसी सजा के जाने देने के जरिए उन पर रहम दिखाने की जरूरत नहीं थी. एक असमान रूप से हल्की सजा अपराध के पीड़ित को अपमानित और निराश करती है. जब अपराधी को दंडित नहीं किया जाता है या अपेक्षाकृत मामूली सजा के साथ छोड़ दिया जाता है क्योंकि सिस्टम घायल की भावनाओं पर ध्यान नहीं देता है. अपराध के शिकार लोगों के अधिकारों के प्रति उदासीनता सामान्य रूप से समाज और विशेष रूप से अपराध के शिकार व्यक्ति के आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास को तेजी से नष्ट कर रही है.
बता दें कि इसी मामले में चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने ही सिद्धू पर 1 हजार रुपये का जुर्माने की सजा सुनाकर बड़ी राहत दी थी. लेकिन पीड़ित परिवार की ओर से इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन यानी पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले को पलटते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को एक साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई है.
क्या है पूरा मामला
साल 1988 में नवजोत सिंह सिद्धू भारतीय क्रिकेट में नए सितारे के तौर पर उभर रहे थे. इसी साल 27 दिसंबर को सिद्धू अपने एक दोस्त के साथ पटियाला के शेरावाले गेट की मार्केट में थे. यहीं पर कार पार्किंग को लेकर उनकी 65 साल के बुजुर्ग गुरनाम सिंह से कहासुनी हो गई. बात हाथापाई तक जा पहुंची. सिद्धू ने गुरनाम सिंह को घुटना मारकर गिरा दिया. उसके बाद गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. रिपोर्ट में आया कि गुरनाम सिंह की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. उसी दिन सिद्धू और उनके दोस्त रूपिंदर पर कोतवाली थाने में गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज हुआ. इसके बाद सालों तक लंबी न्यायिक प्रक्रिया जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने नवजोत सिद्धू के खिलाफ फैसला सुनाया है.
क्या हैं अब सिद्धू के पास विकल्प
फिलहाल नवजोत सिंह सिद्धू के पास सिर्फ क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने का रास्ता बचा है. लेकिन ये सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर है कि वह इस याचिका को स्वीकार करेगा या नहीं.