मानसिक अवसाद से ग्रसित झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की बहन मेसुनी देवी भरतपुर के 'अपना घर आश्रम' में मिलीं. करीब 7 सालों बाद उनके परिजनों को मेसुनी देवी का पता चला. परिजनों के अनुसार, वह 2012 में परिजनों से बिछड़ गई थीं. अपना घर आश्रम में कई सालों तक उनका इलाज चला. इलाज से ठीक होने पर मेसुनी देवी ने अपना पता बताया. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी खुशी जाहिर करते हुए शुक्रिया कहा. साथ ही कहा कि मैं जल्द ही भरतपुर आऊंगा. बताया जा रहा है कि 2013 में महिला सड़क किनारे घूमते हुए मंदबुद्धि हालत में मिली थी.
अपना घर आश्रम राजस्थान के भरतपुर में दीन दुखियों, बेशहारा, मन्द बुद्धि लोगों को 18 वर्षों से आश्रय देने का काम करता है. अपना घर आश्रम के निदेशक डॉक्टर बीएम भारद्वाज ने बताया कि अपना घर आश्रम में बेसहारा मंदबुद्धि और लावारिस हालत में घूमते हुए लोगों को रखा जाता है. उनको परिवार की तरह पाला पोषा जाता और उनका इलाज किया जाता है. इसी दौरान वर्ष 2013 में एक महिला लावारिस हालत में जो मंदबुद्धि थी वह घूमती हुई मिली. महिला को यहां लाया गया और इलाज के बाद जब ठीक होने लगी तो उसने अपना पता बताया और कहा कि वह झारखंड के मुख्यमंत्री की बहन है. जानकारी मिलने पर परिजनों को सूचित किया गया और परिजन उसे लेकर अपने घर गए हैं.
इसके अलावा फोन पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी उनसे बात की है और कहा है कि वह जल्द ही भरतपुर आकर अपना घर आश्रम को देखेंगे और यह भी तय करेंगे कि आश्रम जैसी सुविधाएं झारखंड में भी स्थापित की जाएं. दरअसल, मां माधुरी व्रज वारिस सेवा सदन अपना घर जो जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर अछनेरा मार्ग पर गांव बझेरा के पास स्थित है. इसकी स्थापना डॉक्टर बी एम भारद्वाज और उनकी पत्नी डॉक्टर माधुरी ने वर्ष 2002 में की थी.
इस आश्रम के उन लोगों को शरण देकर उनकी सेवा की जाती है जो मानसिक, शारीरिक रूप से विकलांग, विक्षिप्त, असहाय, दीन दुखी और परित्यक्त होते हैं. इस आश्रम में इन लोगों को प्रभुजी कहकर सम्बोधित किया जाता है. उनके खाने, पीने, सोने सहित उनका इलाज भी वहीं किया जाता है और उनकी हालत ठीक होने के बाद उनके परिजनों का पता जाना जाता है. जहां उनके परिजनों से संपर्क किया जाता है. कुछ परिजन तो सही होने पर अपने लोगों को यहां से ले जाते है तो कुछ परिजन उनको यहां से नहीं ले जाते हैं.
अपना घर आश्रम में इस समय 3000 से ज्यादा असहाय महिला पुरुष आश्रय पा रहे हैं. करीब 50 से ज्यादा बच्चे भी रहते हैं जिनको यहां आश्रय ले रही महिलाओं ने जन्म दिया है लेकिन जन्म देने वाली महिलाओं को अपने बच्चों के बारे में कुछ भी पता नहीं है क्योंकि ये वे महिलाएं मानसिक रूप से विकलांग हैं.
अपना घर आश्रम की स्थापना करने वाला दंपत्ति 53 वर्षीय डॉ बीएम भरद्वाज और 47 वर्षीय उनकी पत्नी डॉ माधुरी भरद्वाज हैं. वो पेशे से होमियोपैथिक चिकित्सक हैं. दोनों ने स्कूली शिक्षा एक साथ ली थी. जब वे कक्षा 8 या 9 में थे तभी दोनों में प्रेम हो गया. दोनों के विचार थे- अपने जीवन में दीन दुखी और बेसहारा लोगों की सेवा करना. इसके बाद स्कूली शिक्षा लेने के दौरान उन्होंने एक दूसरे का हमसफर बनने का संकल्प कर लिया. तभी यह भी संकल्प लिया कि शादी के बाद वे अपनी कोई संतान पैदा नहीं करेंगे बल्कि दीन दुखी, बेसहारा लोगों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करेंगे.