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गहलोत बनाम पायलट: अहमद पटेल के जाने के बाद राजस्थान में कांग्रेस का लिटमस टेस्ट से सामना

सचिन पायलट ने इस साल जुलाई में गहलोत के खिलाफ विद्रोह का परचम उठाया था. कई लोगों के लिए, यह मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ ज्योतिरादित्य सिंधिया की असरदार बगावत के रिपीट जैसा था

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट (फाइल फोटो)
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पायलट ने जुलाई में गहलोत के खिलाफ विद्रोह का परचम उठाया था
  • सोनिया और राहुल गांधी ने भी पायलट को मनाने के लिए दखल किया था
  • इसके लिए पायलट से कई मौखिक वादे भी किए गए थे

अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस को राजस्थान में लिटमस टेस्ट जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्य के पूर्व पार्टी प्रमुख सचिन पायलट के बीच प्रायोगिक शांति समझौता कसौटी पर है. 

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पायलट ने इस साल जुलाई में गहलोत के खिलाफ विद्रोह का परचम उठाया था. कई लोगों के लिए, यह मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ ज्योतिरादित्य सिंधिया की असरदार बगावत के रिपीट जैसा था. लेकिन कमलनाथ सरकार ढहने के उलट, गहलोत सरकार को प्रियंका गांधी की ओर से कुछ आखिरी मिनट में की गई फायरफाइटिंग ने बचा लिया. सोनिया और राहुल गांधी ने भी पायलट को मनाने के लिए दखल किया. इसके लिए पायलट से कई मौखिक वादे भी किए गए. 

सोनिया ने बाद में पायलट की चिंताओं पर गौर करने और गहलोत सरकार को मजबूती देने के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया जिसमें अहमद पटेल, अजय माकन और केसी वेणुगोपाल शामिल थे. अक्टूबर के पहले हफ्ते में अहमद पटेल के कोविड-19 पॉजिटिव होने से पहले इस पैनल की चंद बैठकें हुईं, फिर केसी वेणुगोपाल की मां का निधन हो गया. तब से, बहुत कम या कोई प्रगति नहीं हुई है. 

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अहमद पटेल से अपेक्षा की गई थी कि वे गहलोत को राजी करेंगे जिससे कि शांति प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके, मंत्रीपरिषद का विस्तार हो सके और इसमें पायलट के कुछ अहम समर्थकों को शामिल किया जा सके. ये सब नवंबर के अंत तक होना था. पायलट के ये वो अहम समर्थक थे जिन्हें जुलाई में विद्रोह के दौरान बर्खास्त कर दिया गया था. मंत्रीपरिषद के विस्तार में देरी के लिए गहलोत स्थानीय निकाय चुनाव और विधानसभा उपचुनाव का हवाला देते रहे. दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों के कैम्प फॉलोअर्स एक दूसरे को कोंचते रहे. पायलट के करीबी लोकेंद्र सिंह के खिलाफ कांग्रेस विधायकों के टेलीफोन सर्विलांस में रखने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई.  

अब तक, पायलट शांत होने के साथ धैर्य रखे हुए हैं. उन्होंने बिहार के साथ-साथ मध्य प्रदेश के विधानसभा उपचुनावों में सिंधिया के गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया. एआईसीसी सचिवालय में उनके लिए एक बड़ी भूमिका निर्धारित की गई है, लेकिन पायलट किसी भी औपचारिक पद को स्वीकार करने से पहले राजस्थान की राजनीति के मुद्दों का निपटारा चाहते हैं. 

कांग्रेस हलकों में गहलोत को नेताओं में नेता माना जाता है. सादगी, गांधीवादी सिद्धांतों और देहाती समझदारी से अलग गहलोत इतने अनुभवी है कि उन्हें कोई बाध्य कर सके या उनकी इच्छा के विपरीत उन्हें झुका सके.  अहमद पटेल की तरह, गहलोत भी इंदिरा गांधी युग से ही सक्रिय है जब उन्हें नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI)  की राजस्थान यूनिट का प्रमुख बनाया गया था. इसका नियुक्ति पत्र एक विशेष तरीके से दिया गया था. एक बाइकर ने उनका नियुक्ति पत्र दिल्ली से जयपुर तक पहुंचाया. 

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मिलनसार, गहलोत को संजय कांग्रेस सर्किल्स में ‘गिल्ली बिल्ली’ नाम से जाना जाता है क्योंकि वे जादूगरों के परिवार से नाता रखते हैं और खुद भी कुछ ट्रिक्स जानते हैं. टीटोटलर गहलोत सिर्फ सात्विक खाना खाने में यकीन रखते हैं और सूर्यास्त से लेकर नए सवेरे तक कुछ भी खाने से परहेज करते हैं.  

कुछ साल पहले, उन्होंने एक साक्षात्कारकर्ता से कहा था, “अगर मैं राजनीति में नहीं आया होता तो मैं एक जादूगर होता. मुझे हमेशा सामाजिक काम करना और जादू की ट्रिक्स सीखना पसंद था. भविष्य में शायद मुझे जादूगर बनने का मौका न मिले, लेकिन मेरी आत्मा में अभी भी जादू है.” कहा जाता है कि इंदिरा गांधी के आवास पर युवा राहुल और प्रियंका के सामने गहलोत ने जादू के करतब दिखाए थे. 

जैसा कि मैंने ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के लिए एक लेख में लिखा था, कांग्रेस में गहलोत का उत्थान शानदार रहा है. राजीव गांधी युग में, युवा गहलोत को शक्तिशाली हरिदेव जोशी और शिवचरण माथुर के खिलाफ खड़ा किया गया था. कहा जाता है कि गहलोत ने जोशी को राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद से बर्खास्त कराने में अहम भूमिका निभाई थी, जब राजीव गांधी ने दिल्ली से 170 किलोमीटर दूर सरिस्का नेशनल पार्क में कैबिनेट बैठक आयोजित करने का फैसला किया था.

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राजीव गांधी के निर्देशों के मुताबिक, राज्य के मंत्रियों को राजीव से मिलने के लिए आधिकारिक कारों का इस्तेमाल नहीं करना था. तत्कालीन प्रधानमंत्री दिल्ली से सरिस्का एसयूवी खुद ड्राइव करके गए थे. जब उन्होंने सरिस्का में प्रवेश किया, तो एक स्थानीय ट्रैफिक कांस्टेबल ने सीधे जाने के बजाय, उन्हें दाएं मुड़ने का संकेत दिया. यह निर्दोष प्रतीत होती त्रुटि (कुछ का दावा है कि ये जादूगर गहलोत का काम था) जोशी के लिए महंगी साबित हुई. क्योंकि यह मोड़ एक ऐसे स्थान पर चला गया जहां राज्य मंत्रियों से संबंधित सैकड़ों आधिकारिक कारें खड़ी थीं. राजस्थान तब गंभीर सूखे से गुजर रहा था. कई मोर्चों पर जूझ रहे राजीव ने तब मितव्यतिता का संदेश देने की कोशिश की थी. राजीव ने आपा खोया और जोशी ने बाद में इस्तीफा दे दिया. 

गहलोत की दुर्जेय साख और पायलट के साथ उनके चल रहे झगड़े के संदर्भ में, कांग्रेस नेताओं को लगता है कि सिर्फ अहमद पटेल ही राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुशाग्रता से मेल खा सकते थे और उन्हें पायलट को रियायतें देने के लिए मजबूर कर सकते थे. 

अब सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी पर समझौता लागू कराने की जिम्मेदारी है. सैद्धांतिक रूप से, यह उनमें से कोई भी गहलोत को समन कर साफ तौर पर अनुपालन के लिए कह सकता है. लेकिन अधिक व्यावहारिक शब्दों में, यह वैसा नहीं है जैसे कि गांधी कैसे काम करते हैं या करना पसंद करते हैं. 2014 से कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर है. इसी का नतीजा है कि गहलोत, अमरिंदर सिंह, भूपेश बघेल और वी नारायणसामी जैसे मौजूदा मुख्यमंत्रियों की सौदेबाजी की ताकत बहुत बढ़ गई है. 

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ऐसे किसी नए संकट मोचक प्रबंधक के कोई संकेत नहीं है जो अहमद पटेल के जूतों में कदम रख सके. इसलिए राजस्थान में राजनीतिक संकट ‘10, जनपथ’ के लिए पहली परीक्षा है. इसी के समान और कई दबाव देने वाले मुद्दे हैं जैसे कि G-23 असंतुष्टों के बीच नए सिरे से बेचैनी, पार्टी अध्यक्ष समेत कांग्रेस सांगठनिक चुनावों का एलान;, बंगाल, असम, तमिलनाडु चुनावों के लिए रणनीति, पुडुचेरी विधानसभा चुनाव ये सभी पार्टी के सामने खड़े हैं. वक्त तेजी से निकलता जा रहा है. 

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