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राजस्‍थान में मृदा जांच घरों का बुरा हाल, कृषि वैज्ञानिकों की कमी

राजस्थान में कुल 101 मृदा जांच घर खोले गए थे, लेकिन मृदा की जांच करने वाले कृषि वैज्ञानिक नहीं मिले तो इनमें से 67 जांच केंद्र को सरकार ने पीपीपी मोड पर एलटीसी कमर्शियल कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को सौंप दिया.

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राजस्थान में कुल 101 मृदा जांच घर खोले गए थे
राजस्थान में कुल 101 मृदा जांच घर खोले गए थे

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राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस की मनमोहन सरकार और नरेंद्र मोदी सरकार ने दो बार मिट्टी की जांच के लिए मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड जारी किए. लेकिन राज्य में आज भी मिट्टी जांच के नाम पर मिट्टी पोतने का काम जारी है. हमने जब एक मृदा जांच घर का दौरा किया तो वहां मशीन के नाम पर डिस्टल वाटर गर्म करने की एक मशीन और दूसरी पोटाश की जांच के लिए एक मशीन है. जबकि सरकारी रिकॉर्ड में यहां सभी जांच चल रही हैं.

राजस्थान में कुल 101 मृदा जांच घर खोले गए थे, लेकिन मृदा की जांच करने वाले कृषि वैज्ञानिक नहीं मिले तो इनमें से 67 जांच केंद्र को सरकार ने पीपीपी मोड पर एलटीसी कमर्शियल कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को सौंप दिया.

जयपुर से 40 किमी दूर चाकसू के कृषि दफ्तर में बना मृदा परीक्षण केंद्र का हाल हैरान करने वाला था, यहां पर चार लड़के मिट्टी की जांच करने के लिए रखे गए थे, जिनकी तनख्वाह पांच से आठ हजार रुपए है. इनमें से किसी ने मिट्टी जांच की ट्रेनिंग नहीं ली है. ये लोग ये भी नहीं बता सके कि मिट्टी के लिए क्या नुकसानदायक है.  

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वहीं, आईआईटी इलेक्ट्रिक की पढ़ाई कर वैज्ञानिक बने हनुमान सहाय को मात्र पांच हजार की पगार मिलती है. इनका काम मिट्टी की जांच कर ये बताना है कि कौन सा तत्व कितना है और इससे किन फसलों को नुकसान या फायदा हो सकता है. लेकिन इनको ये ही नहीं पता कि मिट्टी में कौन-कौन से माइक्रो न्यूट्रिएंट्स होते हैं.

वहीं, वैज्ञानिक देवनारायण ने माना कि उन्‍होंने इसकी कोई पढ़ाई नहीं की है और न ही ट्रेनिंग ली है. जबतक कोई दूसरी नौकरी नहीं लग जाती आठ हजार रुपए पर यहां काम कर रहा हूं. लेकिन सबसे बुरा हाल तो सुपरवाइजर राजेन्द्र प्रजापत का था जो आखिरी तक हमें ये बताते रहे कि वो यहां 'फास्फर' की जांच करते हैं. आखिर तक वो फास्फोरस नहीं बोल पाए.

इससे पहले राज्य के कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी के सामने भी ये पूरा मामला आ चुका है. उन्‍होंने जांच कर कार्यवाही के आदेश भी दिए थे. लेकिन अब तक इसी तरह से जांच चल रही है. जो हमने देखा वो दूसरे जिले में खुद मंत्रीजी देख चुके हैं. मगर कुछ भी नहीं बदला.

राजस्थान के कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी का कहना है कि हमने दो लैब की जांच की थी और पाया था कि वहां जांच करने वालों को पता ही नहीं था कि जो जांच कर रहे हैं वो है क्‍या? यहां तक की हजारों सैंपल के ढेर लगाए हुए थे. ये सारा काम पीपीपी मोड पर है और कंपनी को हर एक सैंपल की जांच के लिए 127 रुपए मिलता है.

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इतना ही नहीं इन सेंटर्स के बारे में किसानों को भी जानकारी नहीं है. किसी ने मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड भी नहीं बनवाया है. राजस्थान में मनमोहन सरकार के दौरान 30 लाख 32 हजार मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड जारी किए गए थे. सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इसे फिर से लॉन्‍च किया और बीजेपी सरकार के दौरान ये संख्या बढ़कर 77 लाख हो गई है.

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