राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के सरकारी अस्पताल में करीब दो महीने में 80 से ज्यादा बच्चों की मौत का मामला सामने आया है. गोरखपुर अस्पताल कांड के बाद बांसवाड़ा की इस घटना से सरकार में हड़कंप मचा है.
हालांकि राज्य सरकार ने स्वास्थ्य अधिकारियों की एक टीम को तुरंत बांसवाड़ा भेज कर दो दिन के अंदर पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है. आदिवासी बहुल क्षेत्र में गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में सही पोषाहार न मिलने से उनके बच्चे अत्याधिक कमजोर पैदा हो रहे हैं. जिसके बाद इनमें से कई नवजात बच्चे मौत का शिकार हो चुके हैं.
बता दें कि बांसवाड़ा जिले के राजकिय महात्मा गांधी चिकित्सालय में बीते 53 दिनों में ऐसे 81 नवजात बचचों की दुनिया में कदम रखने के चंद दिनों में ही मौत के शिकार हो गए हैं. इनमें 50 बच्चे जुलाई के महीने में और 31 बच्चे 22 अगस्त तक मौत के मुंह मे जा चुके हैं. सभी मृतक नवताज शिशु 1 से 20 दिनों की उम्र के हैं. पिछले आठ माह के आंकड़ों की बात कि जाए तो यहां पर जुलाई माह मे एकाएक मौतों का आंकड़ा काफी हद तक ऊपर बढ़ गया. यही हाल अगस्त 2017 तक बना दिखाई दिया है. इससे पहले 6 माह में जनवरी में सबसे ज्यादा 33 और जुन मे 21 बच्चों कि सबसे कम मौते हुई थी.
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शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रंजना चरपोटा ने बताया कि बच्चों की मौतों के पीछे सबसे बड़ी वजह उनका कमजोर पैदा होना, प्रसव से पहले गर्भवती को सही पोषक ना मिलना है. साथ ही अधिकांश बच्चे जो कि अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में इलाज के लिए पहुंचते हैं उनका वजन डेढ़ किलो से भी कम पाया गया है. प्रसव के पूर्व प्रसुताओं में हिमोग्लोबिन भी कम होता है प्रसव पूर्व देखभाल सही नहीं हो पाने के कारण प्रसव भी समय से पूर्व हो रहे हैं. इस स्थिति मे बचने कि गुंजाइश कम हो जाती है.
स्थिति यहां तक हो गई है की ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर गर्भवती महिलाएं कैल्शियम कि गोलियां भी समुचित मात्रा में नहीं ले पाती हैं. ऐसे में कैल्शियम कि कमी होने पर वे घर के लेपे हुए आंगन कि मिट्टी खाकर केल्शियम कि कमी को पूरी करती है जिसकी वजह से जन्म लेने वाले नवताज शिशुओं में कीड़े पड़ जाते हैं.
एक नवजात शिशु के परिजन रामलाल ने बताया कि हमारे बच्चे से सांस नहीं ली जा रही है इसलिए डॅाक्टर ने दूसरे अस्पताल में ले जाने को बोला पर हमारे पास रुपये न होने की वजह से नहीं ले जा सकता बाकि भगवान जो करे वो सही हैं.
बांसवाड़ा जिले में करीब 33 डॅाक्टरों का पद खाली है. आदिवासी इलाके होने की वजह उनकी बोली समझने में भी डॅाक्टरों को दिक्कत आती है. हालांकि सीएमएचओ ने अपनी रिपोर्ट में अस्पताल की लापरवाही को भी बच्चों की मौत का एक कारण बताया है.
गौरतलब है कि गोरखपुर और बांसवाड़ा में एक के बाद एक अस्पतालों की लापरवाही से 100 से भी ज्यादा बच्चों की मौतें हो रही है. और सरकारें बस रिपोर्ट ही मांग रही है. कोई कड़ा एक्श्न नहीं ले रही है.