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राहुल गांधी की कांग्रेस में टिकट चाहिए तो जाति और धर्म बताना है जरूरी

जात पर न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर. चुनाव में कांग्रेस का ये बेहद पुराना नारा रहा है, लेकिन राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस में हो रहे बदलाव में अगर आप पार्टी का टिकट चाह रहे हैं तो आपको अपने चुनाव क्षेत्र की जातिगत गणित में माहिर होना पड़ेगा.

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अशोक गहलोत
अशोक गहलोत

जात पर न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर. चुनाव में कांग्रेस का ये बेहद पुराना नारा रहा है, लेकिन पार्टी उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस में हो रहे बदलाव में अगर आप पार्टी का टिकट चाह रहे हैं तो आपको अपने चुनाव क्षेत्र की जातिगत गणित में माहिर होना पड़ेगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत रैलियों पर भले ही पाबंदी लगाने की बात कही हो, लेकिन लगता है कांग्रेस को तो जीत के लिए जाति पर ही भरोसा है. राजस्थान में इन दिनों कांग्रेस के उम्मीदवारी का फॉर्म बांटा जा रहा है. एआईसीसी की तरफ से इस बार टिकट चाहनेवालों को फॉर्म भरना है जिसमें उन्हें बताना है कि आपके इलाके में किस जाति और धर्म के कितने लोग रहते हैं और आपके सामने का उम्मीदवार किस जाति और धर्म का होगा.

फॉर्म में पांच पन्ने की डिटेल में ये भी बताना है कि आप किस जाति और धर्म के हैं.

इस फॉर्म के हर पेज पर जिस तरह से जाति और धर्म को अहमियत दी गई है उससे ये साफ लगता है कि इस बार कांग्रेस जिसकी लाठी उसकी भैंस के आधार पर टिकट बांटेगी. लेकिन फॉर्म बांटनेवाले कांग्रेस पदाधिकारी भी इसे गलत बता रहे हैं.

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जयपुर जिला कांग्रेस के महामंत्री विमल यादव ने कहा, 'जाति-धर्म को वैसे तो इसमें नही होना चाहिए था लेकिन उन्होंने मांगा है तो सोचकर ही मांगा होगा.'

उम्मीदवारों की जाति और धर्म की भी जानकारी फॉर्म में मांगी गई है. चुनाव जितने का आधार क्या है ये जाति की संख्या पर बताना है. छोटे नेता भले ही इसे ठीक नही बता रहे हों, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भला इसमें कैसे बुराई दिख सकती है. आलाकमान ने तय किए हैं तो ये कदम भी इन्हें क्रांतिकारी दिख रहा है.

उम्मीदवारी के ये फॉर्म 17 अगस्त तक सभी बड़े-छोटे नेताओं को जिला कांग्रेस दफ्तर में जमा कराना है. इसमें विपक्षी पार्टियों के चुनावी इतिहास की भी जानकारी देनी है.

बीजेपी इसे कांग्रेस का असली चेहरा बता रही है. बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस दरअसल जाति और धर्म की ही राजनीति करती है जो बेहद शर्मनाक है.

लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इन आंकड़ों को शपथ पत्र की शक्ल में देना है और गलत भरे जाने पर अनुशासनात्मक दण्ड का भी प्रावधान है. ऐसे में जातिगत और धर्म के आधार पर आंकड़ों को लेकर उम्मादवारों के बीच जंग तेज हो गई है. साफ है अब तक चोरी-चुपके चल रहे इस खेल को खुलेआम करने से सियासत तो होगी ही.

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