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अनूठा है यहां का दशहरा, रावण को जलाया नहीं, मारा जाता है

विजयदशमी पर पूरे देश में बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का वध अलग अलग ढंग से किया जाता है,  लेकिन राजस्थान के सीकर जिले के बाय में रावण का पुतला नहीं बनाया जाता है बल्कि रावण बने व्यक्ति का काल्पनिक वध किया जाता है.

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प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो

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विजयदशमी पर पूरे देश में बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का वध अलग अलग ढंग से किया जाता है,  लेकिन राजस्थान के सीकर जिले के बाय में रावण का पुतला नहीं बनाया जाता है बल्कि रावण बने व्यक्ति का काल्पनिक वध किया जाता है. सीकर जिले के दांतारामगढ के बाय गांव की पहचान दशहरे मेले के लिए देश भर में है. दक्षिण भारतीय शैली में होने वाले इस मेले को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है. इस मेले की खास बात ये है कि विजयादशमी के दिन राम रावण की सेना के बीच युद्ध होता है. इसमें बुराई के प्रतीक रावण का वध किया जाता है.

इससे पहले गांव के सीनियर स्कूल के मैदान में दोनों सेना आमने सामने होती है. यहां दोनों सेनाओं के बीच काल्पनिक युद्ध होता है, जिसमे रावण को मार दिया जाता है. रावण की मृत्यु के बाद शोभायात्रा निकाल कर विजय का जश्न मनाया जाता है. शोभायात्रा भगवान लक्ष्मीनाथ मंदिर पहुंच कर पूरी होती है. इस दौरान भगवान की आरती की जाती है और नाच गाकर उत्सव मनाया जाता है. आयोजन समिति के मंत्री नवरंग सहाय भारतीय का कहना है कि मेले में करीब 50 हजार से ज्यादा लोग शामिल होते हैं.

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मंदिर के पुजारी रामावतार पाराशर के अनुसार मेले की शुरुआत करीब 162 साल पहले हुई थी. अंग्रेजों ने गांव वालों पर कर लगा दिया था. इसके विरोध में गावंवासी एकजुट हो गए और अनशन-आंदोलन शुरू कर दिया. गांव वालों के अनशन के आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा और कर को हटाया गया. इस आंदोलन में जीत के उपलक्ष्य में विजयादशमी मेला शुरू किया गया जो जारी है.

उन्होंने बताया कि काल्पनिक युद्ध में करीब दो सौ लोग शामिल होते है. इसमें सभी जाति धर्म के लोग खुले दिल से सहयोग करते हैं. पाराशर के अनुसार बाय का दशहरा मेला कौमी एकता और सद्भाव की मिसाल है. मेले में गांव के मुस्लिम लोग भी सक्रिय भागीदारी निभाते है और आयोजन की व्यवस्था में हर तरह से खुल कर सहयोग करते हैं.

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