उरी में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए राजवा गांव के निम्ब सिंह रावत का परिवार शोक में डूबा हुआ है. लेकिन गमगीन माहौल में डूबा पूरा गांव निम्ब सिंह की शहादत पर गर्व महसूस कर रहा है. निम्ब सिंह के बेटे और बेटी का कहना है कि वे भी सेना में भर्ती होंगे और दुश्मनों से लड़ेंगे. वहीं उनके परिवार ने कहा है कि सरकार कब तक चुप बैठी रहेगी? अब पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए.
जन्मस्थल को पूज्यनीय बनाय
सारोठ चोराहे से दस किलोमीटर दूर राजवा गांव वो पूज्यनीय धरा बन गया है जहां पर देश के जांबाज निम्ब सिंह रावत का जन्म 20 सितंबर 1968 को हुआ था. आंखों में आंसूओं का समुद्र और रोते बिलखती 4 मासूम बेटियों के सर पर अब भले ही पिता का साया न हो लेकिन इनका मानना है कि वे भी अब पापा की तरह बहादुर बनकर दिखाएंगी.
अपने पिता की शहीदी से अंजान 5 वर्षीय पुत्र चंदन अब भी यही सोचता है कि उसके पिता देश की रक्षा कर रहे हैं. उरी में हुई पाक की नापाक करतूत से निम्ब सिंह की पत्नी रोडी देवी की मांग सूनी हो गई है. रुआंसे गले और दर्द भरी सिसकियों के बीच गले से बस यही निकल रहा था कि भारत मां का बेटा शहीद हो गया.
'एक महीने पहले परिवार से मिलने आए थे'
निम्ब सिंह की पत्नी रोडी देवी ने बताया कि राखी से पहले वो घर आये थे. एक महीने तक घर पर रहने के बाद वो वापस असम एनजीपी गए थे. करीब 10 दिन पहले उनका फोन भी आया और उन्होने वहां मोबाइल टांवर ना आने के कारण वापस फोन न करने को कहा था. उसके बाद वो पति निम्ब सिंह की आवाज नहीं सुन सकी थी. 25 साल पहले वैवाहिक सुत्र में बंधे रोडी देवी और निम्ब सिंह की चार बेटियां और एक बेटा है.
'भारत माता के बेटो का गांव'
गांव में ही रहने वाले रिटायर फौजी और उनके मित्र मिठु सिंह ने बताया कि उनका गांव भारत माता के बेटो का गांव है. इस गांव में करीब 10 से 12 फौजी हैं. उन्होने बताया कि शहीद का परिवार बहुत गरीब है. बहुत ही मेहनत से निम्ब सिंह ने अपने परिवार को संभाला है. मिठु सिंह ने आतंकियों को ललकारते हुए कायर बताया और सामने से लड़ने की चेतावनी दी.
पिता भी थे फौजी
1939 में द्धितीय विश्व युद्ध में अपना लोहा मनवाने वाले निम्ब सिंह के पिता केसर सिंह भी फौजी थे. द्धितीय विश्व युद्ध के दौरान 7 साल जर्मनी की जेल में रहने के बाद वह एक साल राजवा गांव में रहे फिर 29 साल तक राजस्थान पुलिस भीलवाडा में अपनी सेवाएं दी. 1993 में पिता केसर सिंह और 2002 में माता तोफी देवी के निधन के बाद निम्ब सिंह को उनके पिता का सपना पूरा करना था. वही देशभक्ति का जज्बा और केसर सिंह की रगो में दौडता खून निम्ब सिंह की रगों में भी दौड़ता था.
पिता की चाहत के लिए फौज में हुए थे भर्ती
पिता की चाहत और भारत माता की रक्षा के लिए 1993 में ही निम्ब सिंह फौज में भर्ती हो गए थे. बिहार दानापुर में परीक्षण की सफलता के बाद निम्ब सिंह 6 विहार बटालियन का हिस्सा बने. 2004 से लेकर 2007 तक 24 डीआईवी हेडक्वार्टर बीकानेर में भी निंब सिंह ने अपनी सेवाएं दी.सिपाही के पद पर निम्ब सिंह का हौसला और कार्यकुशलता देखकर 2010 में निम्ब सिंह को हवलदार की उपाधि से नवाजा गया.
'हर हाल में आतंकवाद का खात्मा करे सरकार'
निम्ब सिंह के भाई सुखदेव का कहना है कि सरकार हर हाल में आतंकवाद का खात्मा करे. आखिर यह देश कब तक ऐसे ही जवानों की शहादत का नुकसान उठाता रहेगा. उन्हाने निम्ब सिंह के बारे में बताया कि छुट्टी पर आने के दौरान सभी भाई आपसी प्यार और स्नेह के साथ एक दूसरे से मिलते थे. उन्होंने अपने परिवार का एक चिराग खो दिया है. निम्ब सिंह के परिजनों ने सरकार से मांग रखी है कि उनकी चारो बेटियों आशा, दीपा, लता और पायल व पुत्र चंदन की पढ़ाई सरकार द्वारा करवाई जाए और उन्हें नौकरी दी जाए.
हर छात्र को सुनाई जाएगी शहादत की कहानी
गांव में ही रहने वाले शिक्षक मनोज पंवार ने बताया कि गांव में निम्ब सिंह की शहीदी की सूचना मिलते ही स्कूल में शोक सभा आयोजित कर अवकाश कर दिया गया. उन्होंने बताया कि गांव के स्कूल में पढ़ने वाले हर बच्चें को निंब सिंह की शहादत की कहानी बताकर नौजवानों को भारत माता की रक्षार्थ फौजी बनने की प्रेरणा दी जायेगी.