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श्रीगंगानगर में कॉन्वेंट स्कूलों में हिंदी बोलने पर लग रहा जुर्माना

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है, लेकिन अगर किसी स्कूल में इसके बोलने पर स्टूडेंट्स से जुर्माना वसूला जाए तो इससे बड़ी शर्म कि बात क्या होगी. राजस्थान में श्रीगंगानगर के प्राइवेट स्कूलों में कुछ इसी तरह से राष्ट्र भाषा का अपमान हो रहा है.

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हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है, लेकिन अगर किसी स्कूल में इसके बोलने पर स्टूडेंट्स से जुर्माना वसूला जाए तो इससे बड़ी शर्म कि बात क्या होगी. राजस्थान में श्रीगंगानगर के प्राइवेट स्कूलों में कुछ इसी तरह से राष्ट्र भाषा का अपमान हो रहा है. यह मामला तब सामने आया जब निजी स्कूलों में हो रही फीस बढ़ोतरी की शिकायत मिलने के बाद शिक्षा विभाग द्वारा ने इसकी जांच की. निरीक्षण के दौरान बच्चों ने कहा कि अगर भूल से भी वो हिंदी शब्द का इस्तेमाल कर लेते हैं तो हर दिन पांच से 50 रुपये तक जुर्माना लगता है.
 
श्रीगंगानगर में हाईप्रोफाइल स्कूल सुविधा के नाम पर अभिभावकों को जमकर लूट रहे हैं. किसी स्कूल में हिंदी बोलने पर बच्चों से जुर्माना वसूला जा रहा है तो कहीं प्रवेश परीक्षा और री-एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से लूट मचाई जा रही है. एक तरफ हमारी सरकारें हिंदी के प्रचार-प्रसार पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है, तो दूसरी तरफ हमारी हिंदी बोलने पर कॉन्वेंट स्कूलों में स्टूडेंट्स को सजा के रूप में आर्थिक और मानसिक दंड भुगतना पड़ रहा है.

श्रीगंगानगर के अधिकतर कॉन्वेंट स्कूलों ने हिंदी बोलने पर कुछ इसी तरह के नियम-कायदे बना रखे हैं. इन स्कूलों में पढ़ने वाले विधार्थियों की मानें तो भूल से भी अगर हिंदी शब्द का उपयोग कर लेते हैं तो प्रतिदिन पांच से 50 रुपये तक जुर्माना लगता है.

राज्य में निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिये बनाई गई राज्य स्तरीय फीस निर्धारण कमेटी के अनुसार निजी स्कूल भले ही मनमर्जी से फीस नहीं बढ़ा सकेंगे. बावजूद इसके श्रीगंगानगर मे कॉन्वेंट स्कूलों ने राज्य स्तरीय फीस निर्धारण कमेटी के नियमों को धता बताकर अपने ही नियम कायदे निर्धारित कर रखे हैं. फीस बढ़ोतरी में रोक के बावजूद ये स्कूल अभिभावकों से मोटी रकम वसूल रहे हैं. जिले में चल रहे अधिकतर कॉन्वेंट स्कूलों मे नौवीं-दसवीं कक्षा में प्रवेश परीक्षा ली जाती है और आवेदन पत्र की कीमत पांच सौ रुपये है. फीस देने के बावजूद आठ सौ रुपये बतौर परीक्षा शुल्क वसूला जाता है.

शहर के कुछ बड़े निजी स्कूलों कि आमदनी करोड़ों रुपये है. बावजूद इसके साल दर साल फीस बढ़ाई जा रही है. जांच अधिकारियों ने स्कूलों की रिपोर्ट से जिला प्रशासन को अवगत करवाते हुए स्कूल शिक्षा निदेशक और राज्य स्तरीय फीस निर्धारण कमेटी को भेजी है. जांच में कई स्कूलों की रिपोर्ट में कई गड़बड़झाले उजागर हुएं है. ये स्कूल अनधिकृत तौर पर विभिन्न मदों में बच्चों से साल भर वसूली करते हैं. और उसी राशि को कहीं खर्च होना भी नहीं दिखाते हैं. निरीक्षण दल ने जांच में पाया कि पहली से 8वीं तक की कक्षाओं में प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें पढ़ाई जा रही हैं. हर क्‍लास में औसतन 20 से 22 किताबें पढ़ाई जा रही हैं. स्कूल संचालकों द्वारा लगाई गई किताबों में एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित किताबों की संख्या मात्र 2 ही है.

निजी स्‍कूल के संचालकों का कहना है कि स्कूल द्वारा ली जाने वाली अधिकतम फीस 32,650 रुपये है. शिक्षा विभाग द्वारा की गयी जांच मे पाया गया कि स्कूल संचालकों द्वारा स्कूलों में किताब-कॉपियां लेने के लिए बच्चों को बाध्य किया जाता है. यही नहीं, यूनिफॉर्म आदि भी स्कूलों में और दुकान विशेष से लेने के लिए बाध्य किया जाता है.
 
हालांकि मामला उजागर होने के बाद जांच रिपोर्ट राज्य सरकार और फीस निर्धारण कमेटी के पास पहुच चुकी है जो ऐसे स्कूलों के खिलाफ कारवाई करने के लिये अधिकृत है.

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