पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तोलने के लिए जुटाए गए 31 करोड़ के सोने की 55 साल की कानूनी लड़ाई राजस्थान सरकार के पक्ष में गई है. 55 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तोलने के लिए राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के छोटी सादड़ी में 56 किलो 863 ग्राम सोना जुटाया गया था. मगर लाल बहादुर शास्त्री छोटी सादड़ी आने से पहले ही दुनिया से चल बसे. इसके बाद यह सोना सरकार के पास सुरक्षा के लिए रखा हुआ था मगर इसके कई दावेदार पैदा हो गए थे.
छोटी सादड़ी के गोमाना के रहने वाले गणपत लाल आंजना ने कोर्ट में शिकायत की थी कि 1965 में उन्होंने ही सोना तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को तोलने के लिए दिया था. जब शास्त्री जी का निधन हो गया तो चित्तौड़गढ़ के कलेक्टर के पास जमा कराकर स्वर्ण बांड की रसीदें प्राप्त की थीं. इसलिए यह सोना उन्हें वापस दे दिया जाए. इस बीच गोमाना के ही गुणवंत ने गणपत लाल और उसके साथियों के खिलाफ सोने को लेकर धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज करवा दी. इस वजह से सोना जब्त हो गया था और मामला उदयपुर की निचली अदालत में चल रहा था.
निचली अदालत ने 11 जनवरी 1975 को गणपत लाल और उसके साथियों को सजा सुनाई और कहा कि सोना को स्वर्ण नियंत्रक अधिकारी को सौंपा जाए. सजा होने पर गणपत ने डीजे कोर्ट में अपील की और 7 अगस्त 1978 को वह बरी हो गया था. इसके बाद सोने को लेकर किसी ने कोई वाद दायर नहीं की जिसके बाद सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बृजेंद्र रावत ने चित्तौड़गढ़ के सीजीएसटी को सोना सौंपने का आदेश दिया है.
क्या था मामला
यह पूरा मामला तब का है जब 16 दिसंबर 1965 में चित्तौड़गढ़ के छोटी सादड़ी में लाल बहादुर शास्त्री की यात्रा होनी थी. उस समय गणपत लाल आंजना ने शास्त्री जी को तोलने के लिए 56. 863 ग्राम सोना इकट्ठा किया था मगर शास्त्री जी की यात्रा नहीं हो पाई. ताशकंद समझौते के लिए गए शास्त्री जी का निधन हो गया. इसके बाद 26 फरवरी 1966 को गणपत लाल आंजना ने उस वक्त के सरकार के गोल्ड बॉन्ड स्कीम के तहत सोना जमा कराकर रसीद ले ली थी.
दरअसल अनाज की कमी होने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1962 में गोल्ड कंट्रोल एक्ट के तहत गोल्ड बॉन्ड स्कीम निकाली थी जिसमें कोई भी व्यक्ति गोल्ड जमा कराकर बॉन्ड ले सकता था, उससे कोई पूछताछ नहीं होनी थी.