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दुनिया भर के टाइगर लवर्स में शोक की लहर, नहीं रही बाघों की रानी 'मछली'

टाइगर क्विन के नाम से जाने जानी वाली रणथम्भौर की यह बाघिन मछली पिछले कई दिनों से बिमारी से जूझ रही थी और रणथम्भौर से सटे एक होटल परिसर में डेरा डाले हुए थी.

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टाइगर क्विन ऑफ रणथम्भौर मछली
टाइगर क्विन ऑफ रणथम्भौर मछली

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रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ दिखाई दिया. जंगली जानवरों से लेकर वनाधिकारियों और वन्यजीव प्रेमियों की आंखें नम थीं. क्योंकि रणथम्भौर नेशनल पार्क सहित सरिस्का के खत्म हुए टाइगर रिजर्व को आबाद करनें वाली टाइगर क्विन ऑफ रणथम्भौर के नाम से दुनिया भर में मशहूर सबसे उम्रदराज 'मछली' नामक बाघिन टी 16 लम्बी बिमारी के बाद इस दुनिया से चल बसी.

इस बाघिन को मिले कई अवॉर्ड
टाइगर क्विन के नाम से जाने जानी वाली रणथम्भौर की यह बाघिन मछली पिछले कई दिनों से बिमारी से जूझ रही थी और रणथम्भौर से सटे एक होटल परिसर में डेरा डाले हुए थी. इसने गुरुवार सुबह 9 बजकर 40 मिनट पर अपनी आखिरी सांस ली. मछली नामक इस बाघिन को लाइफ टाइम अचिवमेन्ट अवार्ड सहित कई अवार्डों से नवाजा गया था. जो वाइल्ड लाइफ में किसी और को नहीं मिला है.

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गार्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया
टाइगर मछली की मौत पर हर कोई दुखी था. वनविभाग व जिला प्रशासन के आलाधिकारियों सहित वन्यजीव प्रमियों की मौजूदगी में उसे गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. पूरे सम्मान के साथ रणथम्भौर के आमा घाटी क्षेत्र में उसका दाह संस्कार किया गया.

20 साल थी बाघिन 'मछली'
रणथम्भौर टाइगर नेशनल पार्क में कई सालों तक अपना राज कायम रखनें वाली मछली बाघिन टी16 करीब 20 साल की हो चकी थी जो वाइल्ड लाइफ में अपने आप में एक अनोखा उदाहरण है. रणथम्भौर सहित सरिस्का को आबाद करनें वाली यह बाघिन 20 वर्ष की उम्र होने वजह से दुर्बल हो चुकी थी. उसके शरीर के अंगों ने भी काम करना बन्द कर दिया था. उसके सभी दांत पहले ही टूट चुके थे. उसे दिखाई देना भी बंद हो चुका था. पिछले पांच-छह दिनों से रणथम्भौर की यह महारानी पार्क क्षेत्र से सटे एक होटल परिसर में डेरा डाले हुए थी. बिमारी की वजह से चल फिर भी नही पा रही थी. जिसे देखते हुए चिकित्साको द्वारा उसे मांस में दवाईयां डालकर देने का प्रयास भी किया गया था. बाघिन की निगरानी के लिए सीसी टीवी कैमरे लगाए गए थे. साथ ही वन विभाग द्वारा स्टाफ तैनात किया गया था. मछली की जिन्दगी को लेकर रणथम्भौर से जुड़े सभी लोग ने उसके लिए दुआ भी की मगर किसी की दुआ काम नही आई. मछली की हालत बेहद खराब होती चली गई.

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वन अधिकारियों की आखें हुईं नम
रणथंम्भौर के चीफ कंजरवेटर योगेश कुमार साहू ने नम आंखो से बताया कि पार्क में घुसते ही तालाब के पास मछली मिलती थी. इतनी खूबसूरत टाइग्रेस शायद कभी इस नेशनल पार्क को नहीं मिल पाए. जिला कलेक्टर कैलाश चन्द वर्मा खुद मछली को गार्ड ऑफ आनर देने आए थे. इनका कहना है कि जो कोई टूरिस्ट आता था मछली के बारे में पूछे या उसे देखे बिना नहीं जाता था. मछली नहीं होती तो न रणथम्भौर इतना आबाद होता और न हीं सरिस्का फिर से बसता.

इस बाघिन पर बनीं कई फिल्में
मछली 1997-98 में पहली बार रणथम्भौर में एक शावक के रुप में अपनी मां के साथ नजर आई थी. ये तीन बहनें थीं- टी 14, टी 15 और यह थी टी 16. बाद में यह पर्यटकों के बीच मछली के नाम से मशहूर हो गई थी. टाइगर क्विन ऑफ रणथम्भौर को लेकर कहा जाता है. इसने रणथम्भौर ही नहीं बल्कि सरिस्का को आबाद करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इस बाघिन ने अपने चार प्रसव के दौरान लगभग एक दर्जन बच्चों को जन्म दिया था. जिसके कारण रणथम्भौर सहित सरिस्का आबाद हुए. इसी बाघिन के परिवार के कारण आज रणथम्भौर में बाघों का कुनबा बढ़ा है. इसने रणथम्भौर भ्रमण पर आने वाले देशी विदेशी पर्यटकों को अपनी और आकर्षित किया था. टाइगर क्विन ऑफ रणथम्भौर के नाम से प्रसिद्ध मछली नामक बाघिन टी16 पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. इस पर रणथंभौर क्वीन, टाइगर फुटरेष, डेन्जर दा टाइगर पैराडाइस और क्वीन ऑफ दा टाइगर आदि दर्जनों फिल्म बनीं. जिन्हें अवार्ड भी मिले हैं. इस बाघिन को बीबीसी की और से लाइफ टाइम एचिवमेंन्ट अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया था. यह बाघिन दुनिया की पहली ऐसी बाघिन थी जिसे लाइफ टाइम एचिवमेंन्ट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था.

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इसके चेहरे पर थे मछली जैसे निशान
इस पर राज्य सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था. वन्यजीव प्रेमियों के अनुसार मछली ने जो योगदान रणथम्भौर पार्क को आबाद करने में दिया था वो बहुत ही अहम था. इस बाघिन के बारे में कहा जाता है कि इसने अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए पानी में मगरमच्छ पर अटैक किया था. जिसकी वजह से इसके तीन दांत टूट गए थे. इसी वजह से यह शिकार करने में असर्मथ हो गई थी उसके बावजूद यह बाघिन पानी व असके आस-पास के इलाको में अपने तजुर्बे से शिकार कर लेती थी. इसके चहरे पर बने मछली जैसे निशान के कारण ही इस का नाम मछली रखा गया था. साथ ही इस बाघिन को लेडी ऑफ लेक व क्रोक्रोडाईल किलर के नाम से भी जाना जाता था. मछली नामक यह बाघिन रणथम्भौर आने वाले पर्यटकों में सबसे अधिक चर्चित थी. रणथम्भौर की इस महारानी का रणथम्भौर व सरिस्का को आबाद करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा था. आज रणथम्भौर की यह महारानी इस दुनिया को अलविदा कह गई. रणथम्भौर के लिए इस टाइगर क्विन की मौत गहरी क्षति है.

'मछली' का पुतला बनाकर म्युजियम में रखने की मांग
इस बाघिन की प्रसिद्धी को लेकर वन्यजीव प्रेमियों ने बाघिन की स्मृति में इसका पुतला बनाकर राजीव गांधी म्युजियम में लगानें सहित इसकी समाधी बनानें की मांग की है. जिस पर जिला कलेक्टर कैलाश चन्द वर्मा ने राज्य सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजने की बात कही है. अगर राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है तो रणथम्भौर की इस टाइगर क्विन का पुतला राजीव गांधी म्युजियम में लगाया जाएगा ताकि रणथम्भौर भ्रमण पर आने वाले पर्यटक इस बाघिन की मौत के बाद भी इस के पुतले का दीदार कर सकें. टाइगर क्विन के नाम से प्रसिद्ध रणथम्भौर की यह महारानी अपनी अन्तिम सांस लेने के साथ ही वाइल्ड लाइफ के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गई.

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