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राहुल का गोत्र बताने के पीछे ब्राह्मण कार्ड, राजस्थान में कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी

राजस्थान की सियासत में कभी सिरमौर रहे ब्राह्मण कार्ड को कांग्रेस ने फिर चला है. राहुल गांधी ने अपनी जाति और गोत्र बताया तो सीपी जोशी खुले तौर पर ब्राह्मण दांव चल रहे हैं.

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो-twitter)
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो-twitter)

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राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण नेताओं का एक लंबे समय तक दबदबा रहा है. प्रदेश में कभी कांग्रेस की राजनीतिक धुरी ब्राह्मणों के इर्द-गिर्द घूमती थी, लेकिन वक्त के साथ कमजोर हुई. ऐसे में कांग्रेस ने एक बार फिर अपने परंपरागत मतदाताओं को साधने की रणनीति बनाई है. यही वजह है कि सीपी जोशी जहां खुले तौर पर ब्राह्मणों को राजनीति का सिरमौर मानते हैं. वहीं, राहुल ने भी अपनी जाति के बहाने ब्राह्मण कार्ड का दांव चला है.

विधानसभा चुनाव की जंग फतह करने उतरे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को पुष्कर की ब्रह्मा मंदिर में विधिवत पूजा की. इस दौरान राहुल ने अपना गोत्र उजागर किया. पुष्कर में राहुल गांधी ने कौल ब्राह्मण और दत्तात्रेय गोत्र के नाम से पूजा की. राहुल के पहले कांग्रेस नेता सीपी जोशी ने ब्राह्मण जाति का दांव चला. कुछ दिनों पहले ही एक जनसभा में सीपी जोशी ने कहा था, 'उमा भारती जी की जाति मालूम है किसी को? ऋतंभरा की जाति मालूम है? इस देश में धर्म के बारे में कोई जानता है तो पंडित जानते हैं.' ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस का ब्राह्मण कार्ड क्या राज्य की सत्ता में वापसी की राह आसान करेगा?

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30 सीटों पर ब्राह्मणों का प्रभाव

राजस्थान में कांग्रेस के पास ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सीपी जोशी, गिरिजा व्यास और रघु शर्मा जैसे बड़े चेहरे हैं. प्रदेश में 8 पर्सेंट वोट ब्राह्मण समाज का है. प्रदेश की करीब 30 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका में है. कांग्रेस ने राजस्थान में पार्टी प्रभारी की कमान अविनाश पांडेय के हाथों में है. इसके अलावा प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष भी ब्राह्मण समाज से ताल्लुक रखने वाले रघु शर्मा हैं.

आजादी के बाद कांग्रेस के 5 ब्राह्मण सीएम

आजादी के बाद से लेकर 90 के दशक तक राजस्थान कांग्रेस में ब्राह्मण नेताओं का सुनहरा दौर रहा था. आजादी के बाद से लेकर 1990 तक पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने थे. 1949 से लेकर 1990 तक राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण नेताओं का दबदबा रहा. 1990 में हरिदेव जोशी आखिरी सीएम थे और उसके बाद से लगातार राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मणों का दबदबा कम हुआ है.

हालांकि, राज्य में कांग्रेस के सबसे प्रमुख चेहरे के तौर पर पार्टी महासचिव अशोक गहलोत और सचिन पायलट की होती है. ये दोनों चेहरे ब्राह्मण समुदाय से नहीं आते हैं.  यही वजह रही गहलोत को एक कार्यक्रम में कहना पड़ा कि राजस्थान में सीएम के लिए कांग्रेस के दो ही नहीं बल्कि पांच चेहरे और भी हैं. इनमें उन्होंने तीन ब्राह्मण चेहरों के नाम गिनाए.

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ब्राह्मणों पर दांव

राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में टिकट की अगर बात की जाए तो कांग्रेस ने ब्राह्मण समाज से 20 लोगों को इस बार उम्मीदवार बनाया है. जबकि पिछले चुनाव में ब्राह्मण समुदाय को 17 टिकट दिए गए थे और लोकसभा में एक भी नहीं था. हालांकि, उपचुनाव में कांग्रेस ने अजमेर लोकसभा सीट पर रघु शर्मा को उम्मीदवार बनाया था और उन्होंने जीत हासिल कर पार्टी का खाता खोला है. कांग्रेस ने इस बार फिर ब्राह्मण दांव चला है.

बता दें कि 1990 के बाद से लगातार राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण जाति का दबदबा कम होता आया है. हालांकि समय-समय पर राजस्थान में अलग-अलग ब्राह्मण नेता अहम पदों पर रहे हैं. लेकिन फिर भी 1990 के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री के पद पर नहीं पहुंच पाया है.

राजस्थान के प्रमुख ब्राह्मण नेताओं की बात करें तो हरिदेव जोशी के बाद नवल किशोर शर्मा एक महत्वपूर्ण नाम रहे. हालांकि नवल किशोर शर्मा ने केंद्र की राजनीति में अपनी भूमिका अदा की.

कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरे

इसके बाद वर्तमान राजनीति में सीपी जोशी, गिरिजा व्यास, रघु शर्मा, महेश जोशी, भंवरलाल शर्मा जैसे ब्राह्मण नेता अपना असर छोड़ते रहे हैं. अजमेर लोकसभा के उपचुनाव में रघु शर्मा को मिली जीत बताती है की राजस्थान में अब भी ब्राह्मण राजनीति के लिए पर्याप्त स्पेस बाकी है. जातिगत समीकरणों को आधार बनाकर टिकट दिए जाते हैं तो लंबे समय तक ब्राह्मण समाज को नजरअंदाज करना संभव नहीं है.

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ब्राह्मणों का सुनहरा दौर

बता दें कि 1949 से लेकर 1951 तक राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री रहे. उसके बाद 1951 से 1952 तक जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने. मार्च 1952 से अक्टूबर 1952 तक टीकाराम पालीवाल मुख्यमंत्री रहे. नवंबर 1952 से नवंबर 1954 तक जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री पद पर रहे. इसके बाद अगस्त 1973 से  अप्रैल 1977 तक हरिदेव जोशी ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली.

मार्च 1985 से  जनवरी 1988 तक हरिदेव जोशी एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने.  इसके बाद राजस्थान में ब्राह्मण मुख्यमंत्री के तौर पर  दिसंबर 1989 से मार्च 1990 तक हरिदेव जोशी का आखिरी कार्यकाल रहा. इसके बाद राजस्थान की राजनीति एक अलग दिशा में मुड़ गई. कांग्रेस की कमान अशोक गहलोत के हाथों में आ गई और वहीं बीजेपी की ओर से राजपूत नेता के तौर पर पहले भैरोंसिंह शेखावत और फिर वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री पद संभाला.

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