राजस्थान की राजनीति में हमेशा से जाट सियासत का बड़ा महत्व रहा है. लेकिन अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के सियासी संघर्ष के चलते सूबे की जाट राजनीति में सियासी शून्य कायम हो गया. ताकतवर कौम होने के चलते भी इस समुदाय को वो महत्व नहीं मिला जिसकी ये उम्मीद लगाए बैठें थें. अब जाट राजनीति में आए इस शून्य को भरने के लिए जाट नेता और खींवसर से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनिवाल ने पूरी बिरादरी को इकट्ठा करने की कवायद शुरू की है.
आजादी के बाद राजतंत्र समाप्त हुआ और लोकतंत्र की स्थापना हुई. सामंती-जमींदारी खत्म होने के बाद राजपूत कांग्रेस के खिलाफ हो गए तो किसान वर्ग या जाट समुदाय अपनी जमीन वापस मिलने पर कांग्रेस के साथ खड़े हो गया. राजस्थान के शेखावाटी, मारवाड़ अंचल में कांग्रेस की सरकारों में जाटों ने अपनी राजनीति खूब चमकाई. समूचे शेखावाटी, मारवाड़ इलाके में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जाट विधायक और सांसद का चुनाव जीतते रहे.
मिर्धा, मदेरणा और ओला कांग्रेस के जाट दिग्गज
राजस्थान में जाट समाज को राजनीतिक और सामाजिक पहचान दिलाने में बलदेव राम मिर्धा को बड़ा श्रेय जाता है. 50 के दशक में मारवाड़ किसान सभा बना कर मिर्धा ने कांग्रेस के समानांतर संगठन खड़ा करने का प्रयास किया. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने बलदेव राम मिर्धा से मध्यस्थता कर भूमि सुधार से जुड़े अहम निर्णय लिए. जिसके बाद मारवाड़ किसान सभा और कांग्रेस की राह एक हो गई और सामंती-जमींदारी प्रथा के खिलाफ राजस्थान में जाट या किसान वर्ग कांग्रेस के झंडे तले लामबंद हुए.
बलदेव राम मिर्धा परिवार के दो सदस्य रामनिवास मिर्धा और नाथूराम मिर्धा के समय जाट राजनीति शिखर पर पहुंचा. राजस्थान का नागौर जिला इन्हीं के चलते जाट राजनीति का सियासी केंद्र बना. मिर्धा परिवार की राजनीतिक हनक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आपातकाल के बाद जब कांग्रेस का उत्तर भारत से सफाया हो गया, तब विधानसभा चुनाव में मारवाड़ की 42 सीटों में से कांग्रेस ने 26 सीटें जीत लीं. मिर्धा परिवार के अलावा परमराम मदेरणा और शीशराम ओला कांग्रेस के बड़े नेता रहें. जिन्होंने केंद्र से लेकर राज्य में अहम भूमिका निभाई.
जाट समुदाय के अन्य नेताओं में विश्वेन्द्र सिंह, बाणमेर से बीजेपी सांसद कर्नल सोना राम, रिछपाल मिर्धा, ज्योति मिर्धा, रामरारायण डूडी, महीपाल मदेरणा सरीखे नामी गिरामी नेता रहे.
गहलोत-राजे के सियासी संघर्ष में जाटों ने खोई पहचान
कांग्रेस के अशोक गहलोत और बाद में 2003 में वसुंधरा राजे के राजस्थान की राजनीति में उतरते ही चाहे जाट हो या राजपूत या ब्राह्मण इन प्रभावशाली जातियों के राजनीतिक वजूद को नियंत्रित कर दिया. जो नेता वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के लिए चुनौती बना उनका राजनीतिक वजूद या तो खत्म कर दिया गया या फिर वे हाशिये पर चले गए. मिर्धा परिवार, मदेरणा परिवार, ओला, घनश्याम तिवाड़ी हो या जसवंत सिंह जसोल के उदाहरण प्रत्यक्ष मौजूद हैं.
जाट समुदाय के दिग्गज नेताओं की धमक राज्य और केंद्र में तो थी लेकिन ये कभी अपना मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाए. ऐसे में मुख्य रूप से किसानी करने वाले जाट समुदाय का महत्वकांक्षी युवा वर्ग जो खेती किसानी के फायदेमंद नहीं होने कारण नौकरी में अपना भविष्य देखता है, नाराज हो गया. गौरतलब है कि गहलोत सरकार के खिलाफ युवाओं के गुस्से की लहर पर सवार होकर वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री तो बन गईं, लेकिन 50 लाख नौकरी देने का वादा पूरा नहीं कर पाईं. अब इन युवाओं विशेषकर जाट समुदाय को इकट्ठा करने के लिए खींवसर के निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं.
राजस्थान में तीसरे मोर्चे की धमक
राजस्थान की राजनीति में नागौर, सीकर, झुंझनू, भरतपुर और जोधपुर को एक तरह से जाट बेल्ट कहा जाता है. जाट समुदाय का लगभग 60 सीटों पर प्रभाव है. हनुमान बेनीवाल को जिस तरह से जाट युवाओं का समर्थन मिल रहा है. ये समाज बेनीवाल को राजस्थान के पहले जाट सीएम के तौर पर देखना चाहता है. बेनीवाल की बढ़ती सियासी ताकत को देखते हुए ही बीजेपी के अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी ने बेनीवाल को समर्थन देने की बात कही है. उन्होंने कहा है कि भारत वाहिनी पार्टी राजस्थान की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. लेकिन जिन सीटों पर बेनीवाल के प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित होगी उन सीटों पर उनका समर्थन किया जाएगा. तिवाड़ी ने यह भी कहा है कि बेनिवाल से बात चीत के बाद ही वे अपनी पार्टी के उम्मीदवार तय करेंगे.
इधर अपने मेवाड़ दौरे पर विधायक हनुमान बेनीवाल ने कहा है कि राजस्थान में कांग्रेस-बीजेपी के खिलाफ तीसरे मोर्चे का गठन किया जाएगा. साथ ही जयपुर की विशाल रैली में नई पार्टी की घोषणा भी की जाएगी. बेनीवाल ने युवाओं को 5000 रुपया बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही है. जो कांग्रेस द्वारा घोषित 3500 रुपये के बेरोजगारी भत्ते के जवाब में है. बेनीवाल का दावा है कि तीसरे मोर्चे के समर्थन के बिना किसी की सरकार नहीं बनेगी.
बहरहाल अब देखना होगा कि दशकों से कायम सियासी शून्य को खत्म करने के लिए हनुमान बेनीवाल की अपील पर जाट सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है.