राजस्थान में भले ही हमेशा से भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस का नेता मुख्यमंत्री बनता रहा हो, लेकिन प्रदेश की राजनीति में निर्दलीयों का खास योगदान रहा है. भारत के आजाद होने के बाद जब पहली बार राजस्थान में चुनाव हुआ तो भी जीतने वाले नेताओं में कई निर्दलीयों का नाम शामिल था. कई बार तो निर्दलीयों की वजह से ही सरकार बनी है और इस बार भी निदर्लीय नेता तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
बात साल 1993 की है, जब करीब एक साल राष्ट्रपति शासन लागू रहने के बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. इससे पहले भैरों सिंह शेखावत दो बार से प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. 15 दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली हो गई थी. दिसंबर 1993 में हुए चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस से 0.33% ज्यादा वोट हासिल किए थे. उस वक्त बीजेपी को 38.60% और कांग्रेस को 38.27% वोट मिले थे.
उस दौरान 21 निर्दलीयों ने जीत हासिल की थी और निर्दलीयों की मदद से भैरों सिंह शेखावत ने सरकार बना ली. साल 2008 में भी कांग्रेस को 36.82% और बीजेपी को 34.27% वोट मिले थे. उस वक्त कांग्रेस ने निर्दलीयों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. इसलिए प्रदेश में हमेशा से निर्दलीयों ने कई सीटों पर कब्जा किया है. वहीं इस बार भी निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल तीसरे मोर्चे के साथ मैदान में है.
हालांकि प्रदेश की राजनीति में दूसरे उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ने वाले निर्दलीयों की संख्या में लगातार कमी नजर आ रही है.
साल-1951
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 230
विजयी- 35
साल-1957
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 324
विजयी- 32
साल-1962
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 390
विजयी- 22
साल-1969
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 434
विजयी- 16
साल-1972
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 355
विजयी- 11
साल-1977
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 728
विजयी- 5
साल-1980
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 750
विजयी- 12
साल-1985
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 995
विजयी- 10
साल-1990
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 2136
विजयी- 9
साल-1993
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 1506
विजयी- 21
साल-1998
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 604
विजयी- 7
साल-2003
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 556
विजयी- 13
साल-2008
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 1023
विजयी- 14
साल-2013
कुल निर्दलीय उम्मीदवार- 758
विजयी- 7