राजस्थान में विधानसभा चुनाव के रुझान के मुताबिक सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस में से किसी भी दल को बहुमत मिलती नहीं दिख रही है. इसकी वजह है टिकट कटने से नाराज होकर लगभग 50 सीटों पर दोनो दलों के बागी खड़े हो गए. इस प्रकार जहां राज्य में मुख्य मुकाबला दो दलों के बीच होता है, ऐसे में इन सीटों पर बागियों ने मुकाबला रोचक कर दिया है.
राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में इस बार 199 सीटों के लिए 7 नवंबर को मतदान हुए थे. जिसमें लगभग पांच दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय और दर्जन भर सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. वहीं, जाट नेता हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी मारवाड़ और शेखावटी की जाट बहुल सीटों पर सेंधमारी करती दिख रही है.
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सत्ताधारी बीजेपी की बात करें तो इस बार पार्टी ने लगभग 70 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे थे. हालांकि, बीजेपी अपने कई बागियों को मनाने में कामयाब रही थी, लेकिन टिकट कटने से नाराज वसुंधरा राजे सरकार के मंत्री सुरेंद्र गोयल ने जैतारण से, राजकुमार रिणवा ने रतनगढ़ से, ओमप्रकाश हुड़ला ने महुवा और धनसिंह रावत ने बांसवाड़ा विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाजपा को चुनौती दी हुई है. वहीं विधायक अनिता कटारा सागवाड़ा से, देवेंद्र कटारा डूंगरपुर से, नवनीत लाल निनामा घाटोल से, किशनाराम नाई श्रीडूंगरगढ़ से और गीता वर्मा सिकराय से निर्दलीय मैदान में हैं.
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राज्य में कांग्रेस की सत्ता वापसी को भांपते हुए इस बार पार्टी में टिकट के काफी दावेदार थे, लिहाजा टिकट कटने पर बागी भी खड़े हुए. जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री महादेव सिंह खंडेला ने खंडेला से, दुष्कर्म केस में फंसे राजस्थान के पूर्व मंत्री बाबूलाल नागर ने दूदू से, पूर्व मंत्री रामकेश मीणा ने गंगापुर सिटी से और पूर्व विधायकों में संयम लोढ़ा ने सिरोही से, पूर्व डिप्टी सीएम कमला बेनीवाल के बेटे आलोक बेनीवाल ने शाहपुरा से और विक्रम सिंह शेखावत ने जयपुर की विद्याधर नगर सीट से निर्दलीय खड़े होकर कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी.
वहीं भाजपा से नराज होकर अलग हुए वरिष्ठ नेता व विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने भारत वाहिनी पार्टी से जयपुर की सांगानेर सीट से ताल ठोका है.
पहले भी निर्दलियों ने बनवाई है सरकार
गौरतलब है कि साल 2008 में जब कांग्रेस 96 सीटों पर अटक गई थी और सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़े से 5 सीटें पीछे रह गई थी, तब बीएसपी के कुल 6 विधायक मंत्री पद का प्रस्ताव पाकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इसी प्रकार साल 1993 में जब बीजेपी की सुई 96 पर अटक गई थी तब चार निर्दलीयों को अपने साथ मिलाकर भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने थे.
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