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Rajasthan Assembly Election Result 2018: बीजेपी पिछड़ी, वसुंधरा ने दिखाई ताकत

वसुंधरा राजे 2003 में मुख्यमंत्री बनी थीं, जिसके बाद 2008 में बीेजपी को हार का मुंह देखना पड़ा था और कांग्रेस की सरकार बनी थी. 2013 में एक बार फिर राजे के नेतृत्व में बीजेपी को सत्ता मिली .

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2018 Election Results: वसुंधरा राजे (फोटो-ट्विटर)
2018 Election Results: वसुंधरा राजे (फोटो-ट्विटर)

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राजस्थान में पिछले दो दशक से हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन देखने को मिला है. इस बार भी राज्य की जनता ने एक बार फिर कांग्रेस पर भरोसा जताते हुए इस परंपरा को बरकरार रखा है. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीत के कीर्तिमान स्थापित करती जा रही भारतीय जनता पार्टी ने इस बार इतिहास बदलने के दावे जरूर किए, लेकिन वह महज चुनावी उद्घोष ही बनकर रह गए.

मौजूदा चुनाव नतीजों से एक बात ये भी स्पष्ट होती दिख रही है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ जिस गुस्से की बात की जा रही थी और एग्जिट पोल में कांग्रेस द्वारा क्लीन स्वीप करने के जो आंकड़े सामने आ रहे थे, असल नतीजे उससे उलट आ रहे हैं. राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान भले ही 'मोदी से बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं' जैसे नारों की गूंज सुनाई दी हो, लेकिन बीजेपी के प्रदर्शन को सम्मानजनक माना जा रहा है.

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दरअसल, 2003 और 2008 और 2013 के चुनावी नतीजों को देखा जाए हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीटों का अंतर दिलचस्प रहा है. 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 120 सीटें मिली थीं और वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी थी. राजे ने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी. इसके बाद 2008 के चुनाव हुए तो कांग्रेस को 96 सीटें मिलीं और बीजेपी 78 सीटों के साथ बहुमत से 22 सीट दूर रह गई.

यानी सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद 2008 में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी को 78 सीटें मिलीं. वहीं, 2013 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो बीजेपी ने कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता से बाहर किया, बल्कि 163 सीट पाकर एकतरफा जीत हासिल की और कांग्रेस महज 21 सीटों पर रह गई. फिलहाल, अब तक के जो नतीजे आ रहे हैं, उनमें कांग्रेस बहुमत के आकंड़े से जरूर आगे बढ़ गई है, लेकिन बीजेपी भी 80 से ज्यादा सीटों पर बढ़त बनाए हुए है.

एक और वजह ये भी है कि सत्ता के गलियारों में वसुंधरा राजे के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे थे. साथ ही बार-बार ये भी आरोप लग रहे थे कि वसुंधरा राजे और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में तालमेल सही नहीं है, जिसके चलते पार्टी में आंतरिक कलह की चर्चा हो रही थी. जब वसुंधरा राजे तमाम गुटबाजी से आगे बढ़ते हुए चुनाव में गईं तो एग्जिट पोल के एकतरफा नतीजों से आगे बढ़कर बीजेपी बहुमत के आंकड़े से ज्यादा दूर नहीं रही. हालांकि, अभी फाइनल नतीजे आने बाकी हैं.

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