प्रचंड बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज, 19 राज्यों में सरकार चला रही दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को 150 साल बाद दिखे चंद्रग्रहण के अगले ही दिन जैसे ग्रहण लग गया. वो भी उस सूबे में जहां लोकसभा हो या विधानसभा पार्टी की पिछले कुछ सालों में तूती बोल रही थी. लोकसभा में जब वित्त मंत्री अरुण जेटली मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पेश कर रहे थे और उनकी एक-एक घोषणा पर प्रधानमंत्री समेत सत्ता पक्ष के सांसद मेजे थपथपा रहे थे, उसी समय कुछ ही सौ किलोमीटर दूर अजमेर और अलवर में लोकसभा चुनाव में ही उसके उम्मीदवार वोटों की लड़ाई में धूल चाट रहे थे. बात सिर्फ लोकसभा उपचुनाव की ही नहीं बल्कि विधानसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव में भी मांडलगढ़ से बीजेपी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा.
राजस्थान की सत्ता का सेमीफाइनल माने जाने वाले दो लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा. वसुंधरा राजे अपनी पूरी कैबिनेट लगाने के बावजूद एक भी सीट वापस नहीं ले पाईं और राज्य की तीनों सीटों पर कांग्रेस ने जीत का परचम लहरा दिया. बीजेपी खेमा मायूस है तो राजस्थान में आठ महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस इस जीत को संजीवनी मानकर आत्मविश्वास से लबरेज है. राजस्थान के अलवर, अजमेर लोकसभा और मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर पार्टी को जबर्दस्त जीत मिली है.
राजस्थान की ये तीनों सीट बीजेपी के पास थीं. अजमेर सीट से बीजेपी सांसद प्रो सांवर लाल जाट, अलवर से सांसद चांद नाथ योगी और मांडलगढ़ विधानसभा से विधायक कीर्ति कुमारी के निधन के चलते उपचुनाव हुए थे.
अलवर लोकसभा सीट से कांग्रेस के डॉ. करण सिंह यादव तो बीजेपी ने डॉ. जसवंत यादव को 1 लाख 56 हजार 319 वोटों से मात दी. वहीं अजमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के डॉ. रघु शर्मा ने बीजेपी के रामस्वरूप को करीब एक लाख मतों से मात दी. मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी बीजपी कई राउंड आगे रहने के बाद पिछड़ गई और 13 हजार मतों से उसे हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस उम्मीदावर विवेक धाकड़ ने बीजेपी के शक्ति सिंह को हराकर यहां से जीत का परचम लहराया.
उपचुनाव में अक्सर देखा गया है कि सत्ताधारी दल ही जीत दर्ज करता है, लेकिन राजस्थान के मामले में तो सत्ताधारी बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया. 2016 के बाद से राज्य में छठी बार उपचुनाव हुए हैं. इनमें से चार बार बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है.
बता दें कि 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 21 सीटें मिली थीं. जबकि बीजेपी ने 163 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी. इसके बाद 2016 में राज्य में कांग्रेस की कमान युवा नेता सचिन पायलट को दी गई. आठ महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में एक तरफ सचिन पायलट का युवा जोश और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का तजुर्बा होगा तो दूसरी तरफ वसुंधरा राजे सरकार का काम और पीएम नरेंद्र मोदी का नाम. नतीजा कुछ भी हो लेकिन उपचुनाव के परिणामों से साफ है कि टक्कर दिलचस्प होगी.