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कांग्रेस की डूबती नैया के खेवनहार बने गहलोत, क्या CM बनेंगे?

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है. पार्टी अध्यक्ष के सामने बड़ा सवाल है कि कमान किसे सौंपी जाए. इंदिरा के लाए गहलोत को या राहुल के इशारे पर राजस्थान भेजे गए पायलट को.

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अशोक गहलोत (फोटो-PTI)
अशोक गहलोत (फोटो-PTI)

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राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है. यहां के वोटरों ने बीजेपी और वसुंधरा राजे को सरकार से बाहर कर दिया है. कांग्रेस ने राजस्थान एक साथ दो दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा और पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी. ये दो नेता हैं- अशोक गहलोत और सचिन पायलट. दोनों नेताओं का सियासी अनुभव देखें तो गहलोत सचिन पायलट पर भारी पड़ेंगे क्योंकि उन्होंने दो बार प्रदेश की कुर्सी संभाली है. हालांकि पायलट को कमतर आंकना मुनासिब नहीं होगा क्योंकि 2013 में बीजेपी की जबर्दस्त जीत और कांग्रेस की खाट खड़ी होने के बाद पायलट ही ऐसे नेता रहे जिन्हें लगभग मृत पड़ी पार्टी को जिंदा करने की कमान सौंपी गई. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने पायलट पर भरोसा जताया और उन्हें राजस्थान की बागडोर थमाई. पायलट इसमें कामयाब भी हुए और आज वहां कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है.

जमीनी नेता हैं गहलोत

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सचिन पायलट का काम बेशक सराहनीय रहा है और उन्होंने राजस्थान की जनता को दोबारा कांग्रेस के पाले में लाने की बड़ी जिम्मेदारी निभाई है, लेकिन इसका यह कतई अर्थ नहीं कि इस दौरान अशोक गहलोत प्रदेश की राजनीति से बेपरवाह रहे. राहुल गांधी ने पायलट को राजस्थान यूनिट का अध्यक्ष बनाया तो गहलोत को गुजरात का प्रभार दिया जहां कांग्रेस को पुनः पटरी पर लाना था. इतना ही नहीं, पार्टी आलाकमान ने गहलोत पर भरोसा करते हुए इसी साल मार्च में उन्हें संगठन महासचिव बनाया. वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी की जगह उन्हें यह प्रभार सौंपा गया.

संगठन प्रभारी बनाए जाने से पहले गहलोत गुजरात में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का जिम्मा संभाल रहे थे. गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भले हार गई हो, लेकिन बीजेपी की जीत इतनी आसान नहीं रही. हार के बावजूद अशोक गहलोत की काफी तारीफ की गई क्योंकि गुजरात मेंकांग्रेस विधायकों की संख्या 60 थी जिसे गहलोत की सियासी सूझबूझ ने 77 पर पहुंचाया. इसके पीछे कारण यह बताया गया कि देश का शायद ही कोई कोना हो जहां के कांग्रेस काडरों से गहलोत का संपर्क न हो. उन्हें कार्यकर्ता जमीनी नेता के तौर पर देखते हैं. राजस्थान चुनाव मेंउनकी यही करिश्मा काम कर गया.

गहलोत 'राजस्थान के गांधी'

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अशोक गहलोत के साधारण लाइफस्टाइल को देखते हुए उन्हें राजस्थान का गांधी भी कहा जाता रहा है. 1980 में सबसे पहले सांसद चुने गए और उन्हें चार बार सांसद रहने का मौका मिला है. 1999 से लेकर अब तक उन्होंने सरदारपुरा सीट से पांच बार विधानसभा चुनाव जीता है. केंद्र में भी इन्होंने अहम भूमिका निभाई है. 1982 से लेकर 1993 के बीच उन्होंने पर्यटन, नागरिक उड्डयन, स्पोर्ट्स और टेक्सटाइल्स में मंत्री पद संभाला है. 2004 से 2009 तक उन्होंने दिल्ली के महासचिव पद पर और सेवा दल सेल में योगदान दिया है.

गहलोत की क्वॉलिटी को इंदिरा ने पहचाना

अशोक गहलोत को कांग्रेस में लाने वाली इंदिरा गांधी थीं. साइंस और लॉ में ग्रैजुएट गहलोत अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री पा चुके हैं. साइंस, लॉ और इकोनॉमिक्स की पढ़ाई कर गहलोत सीधा समाज सेवा में कूद गए और पूर्वी बंगाल शरणार्थी संकट के वक्त अपने को लोगोंकी सेवा में लगा दिया. संयोगवश उनकी इस समाजसेवा को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देखा और परखा. बाद में उन्हें कांग्रेस में ले आईं और तब से गहलोत राजनीति के प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठा दिखाते रहे हैं.

इंदिरा के गहलोत और राहुल के पायलट

गहलोत को अगर इंदिरा गांधी पार्टी में ले आईं तो सचिन पायलट को राजस्थान की जिम्मेदारी सौंपने वाले राहुल गांधी हैं. आज जब पार्टी वहां सरकार बनाने जा रही है तो सबके सामने यक्ष प्रश्न है कि इंदिरा के गहलोत या राहुल के पायलट, आखिर प्रदेश की कमान कौन संभालेगा.यहां एक बात जान लेना जरूरी है कि सचिन पायलट ने राजस्थान में मृतप्राय कांग्रेस को भले जिंदा किया हो, लेकिन वहां मुख्यमंत्री का पद इतना आसान नहीं है. कांग्रेस का विधायक मंडल और अध्यक्ष राहुल गांधी उसी को जिम्मेदारी सौंपेंगे जिसे पूर्व का अनुभव हो. इस लिहाज सेगहलोत का पलड़ा भारी लगता है क्योंकि वे दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. साल 1998 से लेकर 2003 तक और 2008 से 2013 तक वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहे. जोधपुर के सरदारपुरा सीट से जीतने वाले गहलोत ने प्रदेश में कई ऐसे काम किए जिसके लिए उन्हें याद किया जाता है.

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पायलट के पक्ष में भी कई प्लस प्वाइंट्स

पायलट के पक्ष में भी ऐसे कई प्लस प्वाइंट्स हैं, जिनका संदर्भ आलाकमान ले सकता है और पायलट को सीएम बनाने पर विचार कर सकता है. कांग्रेस ने अगर इतनी सीटें जीती हैं तो इसमें राजस्थान के युवा वर्ग का बड़ा रोल है. लिहाजा सचिन पायलट युवाओं के लिए सीएम  के दावेदारहो सकते हैं. जानकारों की मानें तो पार्टी अगर कुल सीटों का आधा पा लेती है तो सचिन पायलट का सीएम बनना ज्यादा संभावित है क्योंकि तब जोड़तोड़ के लिए पार्टी को आगे नहीं आना पड़ेगा. अगर आधी सीट न मिले तो अशोक गहलोत का रोल बढ़ जाएगा क्योंकि छोटी पार्टियों या निर्दलियोंसे जितना अच्छा वे संपर्क साध सकते हैं, शायद सचिन पायलट नहीं. इस सूरत में अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री बनना ज्यादा संभावित होगा. 

 

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