किसी राज्य में जब सियासी संकट पैदा होता है तो राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर के निर्णय सबसे ज्यादा अहम हो जाते हैं. स्पीकर अमूमन सत्ताधारी दल के सदस्य होते हैं, ऐसे में उनके पद का झुकाव उसी तरफ नजर आता है. जबकि राज्यपाल को लेकर हमेशा केंद्र के दिशा-निर्देश महत्वपूर्ण समझे जाते हैं. फिलहाल, राजस्थान की मौजूदा कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में चर्चा इस बात को लेकर भी है कि इस परिस्थिति में राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर की क्या भूमिका होगी.
राजस्थान में ये तमाम हालात उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बागी रुख के चलते पैदा हुए हैं. पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली के पास गुरुग्राम में डेरा डाले हुए हैं. पायलट का कहना है कि गहलोत सरकार अल्पमत में है, जबकि अशोक गहलोत खेमे का दावा है कि उनके पास बहुमत है. हालांकि, ये बातें अभी तक सिर्फ बयानों में की जा रही हैं.
ऐसी स्थिति में राज्यपाल की भूमिका क्या होगी, इस मसले पर राजस्थान की राजनीति के जानकार श्याम सुंदर शर्मा से aajtak.in ने बात की. उन्होंने कहा, ''राज्यपाल की भूमिका तब आती है जब या तो केंद्र से कोई निर्देश मिले या बीजेपी जाकर अल्पमत की बात कहे. या फिर सचिन पायलट के लोग राज्यपाल के पास जाकर कोई पत्र दें कि हम अलग पार्टी बनाने जा रहे हैं. यानी गवर्नर हाउस का रोल तब शुरू होता है जब उनके पास कोई तथ्य पहुंचे.'' श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि जब तक नंबर कम होने की बात नहीं कही जाएगी तब तक गवर्नर का रोल नहीं आता है और राजस्थान के गवर्नर ज्यादा दखल नहीं देते हैं.
बता दें कि अब तक ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया गया है. सचिन पायलट खेमा ये जरूर कह रहा है कि उनके पास विधायकों की संख्या पर्याप्त है और अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है, लेकिन उनकी तरफ से राज्यपाल को अप्रोच नहीं किया गया है. सचिन पायलट खेमे के कांग्रेस विधायक दीपेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि उनके पास 30 विधायक हैं, लेकिन हम न कांग्रेस छोड़ेंगे, न ही बीजेपी में जाएंगे और न ही अलग पार्टी बनाएंगे.
पायलट गुट के विधायक दीपेंद्र का दावा- हमारे पास 30 MLA, फ्लोर टेस्ट हो
वहीं, दूसरी तरफ विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर भी कोई चर्चा अभी नहीं है. श्याम सुंदर शर्मा ने कहा कि अबतक न ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए कहा गया है. ऐसे में न विश्वास मत की बात है और न ही अविश्वास प्रस्ताव की कोई चर्चा है. उन्होंने कहा कि स्पीकर गहलोत पक्ष के हैं, ऐसे में जब बात वहां तक पहुंचेगी तो एक्शन भी उसी हिसाब से होगा.
गौरतलब है कि बीजेपी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने हालांकि फ्लोर टेस्ट की चर्चा जरूर की है. मालवीय ने ट्वीट कर कहा है कि अगर अशोक गहलोत के पास बहुमत है तो उन्हें तुरंत फ्लोर टेस्ट कराकर साबित करना चाहिए. लेकिन सचिन पायलट खेमे की तरफ से कोई आधिकारिक कदम नहीं उठाया गया है. दूसरी तरफ कांग्रेस के चीफ व्हिप महेश जोशी ने कहा है कि उनके पास पर्याप्त बहुमत है और उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है. अशोक गहलोत ने सीएम आवास पर विधायकों की मीडिया के सामने परेड कराकर अपना दावा भी कर दिया है.
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लेकिन अब तक न ही सचिन पायलट की तरफ से कोई ऐसा कदम उठाया गया है, जिससे राज्यपाल को कोई एक्शन लेना पड़े और न ही राज्यपाल ने खुद से इस पूरे मामले में कोई दखल दिया है. कांग्रेस बागी विधायकों के खिलाफ क्या एक्शन लेगी ये अभी क्लियर नहीं है. एक्शन लेने का प्रस्ताव जरूर विधायक दल की बैठक में पास हुआ है, लेकिन कोई एक्शन लिया नहीं गया है. यानी कहा जा सकता है कि सचिन पायलट जब तक अपने पत्ते पूरी तरह नहीं खोलते हैं तब तक बहुमत साबित करने या विधायकों की सदस्यता रद्द होने जैसा कोई समीकरण बनता दिखाई नहीं दे रहा है.