राजमहल पैलेस को सील करने को लेकर अब राजघराना सड़कों पर उतर आया है. पहली बार जयपुर राजखराने की तरफ से मौजूदा सरकार के खिलाफ लोगों को राजमहल में जुटने के लिए अपील जारी किया गया है. इस विवाद से ठीक एक दिन पहले जयपुर से भूटान गईं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी जयपुर लौटी हैं. ऐसे में सरकार और राजघराने के इस संघर्ष को लेकर पूरे राजस्थान में चर्चा का विषय बना हुआ है. हैरत की बात है कि लागातार समाजिक संगठन और राजपूत संगठन सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. लेकिन बीजेपी और सरकार इसे महरानी और राजकुमारी का झगड़ा बताकर चुप्पी साधी हुई है. इस बीच खबर ये भी आई है कि बीजेपी ने इस मामले को सुलझाने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को आगे किया है.
समर्थन के लिए इश्तेहार
जयपुर के पूर्व राजघराने का अपनी पूर्व प्रजा के लिए इश्तेहार निकाला जा रहा है और हर तरफ इसे चस्पां किया गया है. हर अखबार में छपा है. इसमें राजमाता पद्मीनी देवी की तरफ से लिखा है कि सरकार ने जिस तरह से हमारे राजमहल पर तालाबंदी की है और पुरानी हवेलियों को तोड़ा है, इससे साफ है कि हमें जलील किया गया है. उन्होंने जनता से समर्थन की अपील की है.
राजमाता ने संभाला मोर्चा
दरअसल राजघराने का दर्द है कि इनके साथ ऐसा न कभी मुगलों के जमाने में हुआ था और ना ही अंग्रेजों के जमाने में. सरदार पटेल ने हमसे राजघराने से सत्ता भी सादगी पूर्वक लिया था. राजमाता सामाजिक संगठनों के विरोध बैठकों में पहुंचकर समर्थन मांग रही है और कह रही हैं कि मामला जमीन का नहीं बेइज्जती का है. पद्मिनी देवी कहती हैं कि जयपुर राजघराने ने जयपुर को इतना दिया है, उनके पति भवानी सिंह को पाकिस्तान से लड़ाई के लिए बहादुरी के लिए महावीर चक्र मिला है फिर हमें इस तरह से क्यों बेइज्जत किया गया?
तोड़फोड़ से परेशान हुईं राजमाता
गौरतलब है कि 24 अगस्त की सुबह 6 बजे जिस वक्त सरकार राजमहल को सील कर तोड़फोड़ कर रही थी, उस वक्त राजकुमारी दीया सिंह को चप्पलों में अधिकारियों के सामने भागते-दौड़ते सबने देखा था. सिफोन साड़ी में मोम की गुड़िया हमेशा लिपटी रहने वाली दीया के इस रूप को जमाने ने पहली बार देखा था. दीया सिंह बीजेपी की सवाईमाधोपुर से विधायक भी हैं. इनकी वसुंधरा राजे से काफी गहरी दोस्ती रही है और वसुंधरा हीं इन्हें राजनीति में लेकर आई थीं. सार्वजनिक रूप से राजघराने के मंच पर हर जगह वसुंधरा और राजपरिवार साथ दिखता था. ऐसे में राज्य सरकार पर सवाल उठते हैं.
दरअसल 1973 में राजमहल से जुड़ी भूमि की अवाप्ति का आदेश निकला था और 1993 में सरकार ने पारित किया था. लेकिन मामला कोर्ट में चला गया. इस बीच अचानक 23 साल बाद सरकार के इस कदम से राजघराना अचंभे में है और हाई कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक सरकार के खिलाफ पांच मामले दर्ज करवाए हैं.