आरक्षण के लिए लंबे समय से चल रहे जाट आंदोलन को राजस्थान हाई कोर्ट ने सोमवार को बड़ा झटका दिया है. अदालत ने प्रदेश के दो जिलों के जाट समुदाय को आरक्षण सूची से बाहर कर दिया है. 1999 के एक आदेश को खारिज करते हुए धौलपुर और भरतपुर जिले के जाट समुदाय को सूची से बाहर किया है. हालांकि, अन्य जिलों में आरक्षण को मंजूरी दे दी गई है.
हाई कोर्ट ने राजस्थान सरकार को यह आदेश भी दिया कि वो एक समिति का गठन करे जो चार महीने में राज्य में ओबीसी का दर्जा पाने वाली जातियों के स्टेटस का निरीक्षण करे. आरक्षण को चुनौती देने वाली एक याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस सुनिल अंबवानी और जस्टिस अजित कुमार सिंह की बेंच ने यह फैसला सुनाया. कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट समाज ने मामले की अपील सुप्रीम कोर्ट मे करने की बात कही है.
16 साल बाद आया निर्णय
गौरतलब है कि एनसीबीसी की रिपोर्ट के आधार पर 3 नवंबर 1999 को जाटों को राज्य में आरक्षण दिया गया था. लेकिन बाद में आरक्षण मामले में याचिका दायर होने के बाद हाई कोर्ट को सुनवाई पूरी करने में 16 साल का समय लगा. जाटों को ओबीसी में आरक्षण देने के खिलाफ रतन बागड़ी और अन्य आठ लोगों ने याचिका दायर की थी. इसमें पांच याचिकाएं 1999 में और एक याचिका 2000 में दायर हुई. बाकी किर याचिकाएं इसके बाद दायर हुईं. याचिका में कहा गया कि आरक्षण संपन्नता के लिए नहीं उत्थान के लिए होता है. जाटों का पिछड़ापन अध्ययन द्वारा सामने आ सकता है, लेकिन इस पर कभी भी सही अध्ययन नहीं हुआ.