राजस्थान में पंचायत चुनाव के नतीजों ने सत्ताधारी गहलोत सरकार और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. जिला परिषद और पंचायत समिति चुनाव में मिली जीत ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद कर दिए हैं. वहीं, सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस पंचायत चुनाव में पिछड़ गई है, जो आने वाले चुनाव के साथ-साथ अशोक गहलोत के लिए भी राजनीतिक चुनौती बढ़ा सकता है. ये भले ही छोटा चुनाव रहा हो, लेकिन बड़े सियासी संदेश दे गया है.
उपचुनाव में कांग्रेस की चुनौती बढ़ी
प्रदेश के पंचायत चुनाव के नतीजे अगले साल तीन विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है. राजस्थान की सहाड़ा, राजसमंद और सुजानगढ़ विधानसभा सीट रिक्त पड़ी हैं. सहाड़ा सीट कांग्रेस के विधायक कैलाश त्रिवेदी और सुजानगढ़ सीट कांग्रेस के कैबिनेट मंत्री रहे मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद खाली हुई है जबकि राजसमंद सीट बीजेपी विधायक किरण माहेश्वरी के निधन से रिक्त हुई है. इन तीनों विधानसभा सीटों के तहत आने वाले पंचायत चुनाव में कांग्रेस को हार मिली है.
सहाड़ा विधानसभा के अंतर्गत सहाड़ा पंचायत समिति के 15 वार्डों पर चुनाव हुए. इनमें से 10 वार्ड बीजेपी के खाते में गए हैं जबकि कांग्रेस को सिर्फ 5 वार्डों में ही जीत मिली है. वहीं, भीलवाड़ा जिले में सहाड़ा विधानसभा सीट आती है, वहां के जिला परिषद के चुनावों में भी बीजेपी को एकतरफा जीत मिली है.
ऐसे ही राजसमंद जिला परिषद में भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया, यहां 25 वार्डों में से 17 पर बीजेपी को जीत मिली है जबकि कांग्रेस को महज 8 सीटें मिली हैं. वहीं, सुजानगढ़ विधानसभा सीट जिस चूरू जिले में आती है, वहां की पंचायत समिति और जिलापरिषद के चुनाव बीजेपी के पक्ष में ही गए हैं. चुरू के 27 वार्डों में से 20 पर बीजेपी और 7 पर कांग्रेस को जीत मिली है. ऐसे में यह पंचायत चुनाव उपचुनाव के लिए बड़े सियासी संदेश दे रहे हैं.
सत्ता और संगठन के लिए मुश्किल खड़ी करेंगे
पंचायत चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में सत्ता और संगठन के प्रति असंतोष बढ़ सकता है. मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में देरी से से विधायकों व नेताओं में पहले से ही बेचैनी है अब यह असंतोष में बढ़ सकती है. प्रदेश से लेकर ब्लॉक स्तर तक पिछले 6 माह से संगठन नहीं होना कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण रहे.
सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से हटाते समय प्रदेश से लेकर ब्लॉक कांग्रेस कमेटियां भंग कर दी गई थीं, जिनका गठन अब तक नहीं हुआ. ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही मिलकर सत्ता और संगठन के फैसले कर रहे थे. पंचायत चुनाव के नतीजे के बाद अब कांग्रेस के लिए सत्ता और संगठन दोनों ही स्तर मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
गहलोत और पायलट में क्या फिर बढ़ेगी अदावत
पंचायत चुनाव के नतीजे क्या अशोक गहलोत और सचिन पायलट की सियासी लड़ाई पर और कोई असर पड़ सकता है? क्या पंचायत समिति और जिला परिषद के चुनाव नतीजों को पायलट के समर्थक कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का मौका मिल गया. गहलोत के खिलाफ विद्रोह करने और बाद में सुलह समझौते के बाद भी पायलट के कुछ समर्थकों को समायोजित करने के लिए मंत्रिमंडल में अपेक्षित फेरबदल तक नहीं हुआ है.
ऐसे में अभी हाल में गहलोत ने फिर कहा था कि बीजेपी उनकी सरकार को गिराने की कोशिश कर रही है. ऐसे में साफ है कि राजस्थान में पंचायत समिति और जिला परिषद चुनाव के परिणाम से जाहिर तौर पर फिर से सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच का मतभेद साफ उजागर होगा.